बच्चों की रात की कहानियां नैतिक शिक्षा के साथ

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बच्चों का ज्ञानवर्धन करने के लिए कहानियां एक बहुत ही शानदार माध्यम हैं। जिससे बच्चे को सही गलत का फैसला करने के लिए जिज्ञासा होती हैं। ठीक इसी प्रकार से देखा जाए तो बच्चों को छोटी-छोटी कहानियाँ बहुत पसंद आती हैं। इसलिए आज हम आपकों बच्चों को रात के समय सुनाई जाने वाली लोकप्रिय कहानियां बताने जा रहे हैं जो निम्नलिखित प्रकार से हैं।

1. सियार की गुफा – Siyar ki gufa:

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एक बार की बात हैं फुलकारी वन की गुफा में एक हायना नाम का सियार रहता था। जोकि, बहुत चतुर और बुद्धिमान था। वह अपने वन के जानवरों को नुकसान नहीं पहुंचाता था। जबकि, वह अपना शिकार करने के लिए प्रतिदिन किसी अन्य जंगल में जाता था। एक दिन फुलकारी वन में एक शेर शिकार की तलाश में आ गया। शेर को आते देख किकू बंदर ने पूरे वन के सभी जानवरों को सूचित कर दिया। सभी जानवर सुरक्षित जगह पर छिप गए।

शेर पूरे दिन वन में घूमता रहा लेकिन, उसे चूहा तक दिखाई नहीं दिया। जब शेर वापस अपने जंगल को जा रहा था तो उसे एक गुफा दिखाई दी जिसमें हायना सियार रहता था। शेर ने सोचा कि रात हो चुकी हैं, चलो इसी गुफा में आज रुक जाता हूँ। क्या पता कोई जानवर इस गुफा में रहने के लिए आए तो मैं उसे अपना शिकार बना लूँगा। कुछ समय बाद गुफा के पास हायना सियार आ पहुँचा। वह गुफा के बाहर शेर के पैरों के निशान देखकर समझ गया कि उसकी गुफा में शेर गया होगा।

सियार ने आवाज लगाई, कैसे हो गुफा भाई? लेकिन आगे से कोई आवाज नहीं आई। सियार ने कहा- “अरे! गुफा भाई तुम सो गए क्या? तुम्हारी आवाज क्यों नहीं आ रही हैं? प्रतिदिन जब मैं तुम्हारा हालचाल पूछता हूँ, तो तुम कहते हो ‘सब खैरियत हैं!’ आज क्यों नहीं बोल रहे हो? अगर तुम नहीं बोलोगे तो मैं यहाँ से चला जाऊँगा। गुफा में बैठा शेर सोचने लगा कि यह सियार गुफा में घुसने से पहले प्रतिदिन हालचाल पूछता होगा। इसलिए आज भी पूछ रहा हैं।

मेरे गुफा में होने के कारण गुफा डर गया होगा। इसलिए नहीं बोल रहा हैं, चलो मैं ही बोल देता हूँ। मुझे यहीं बैठे बिठाए शिकार भी मिल जाएगा। सुबह से मैं बहुत भूखा हूँ। सियार ने बोला गुफा भाई आखिरी बार पूछ रहा हूँ, इस बार नहीं बोले तो मैं चला जाऊंगा। सियार ने जैसे बोला- “कैसे हो गुफा भाई” आगे से शेर की आवाज आई ‘सब खैरियत हैं’। सियार को पता चल गया कि इस गुफा में शेर हैं। वह यह कहते हुए तेजी से भागा कि इस गुफा में रहते हुए मैं बूढ़ा हो गया परंतु आज तक मैंने किसी गुफा को बोलते हुए नहीं सुना।

नैतिक सीख:

चतुराई और दिमाग से काम लेने वाला कभी बड़ी मुश्किल में नहीं पड़ सकता।

2. बूढ़ा गिद्ध और बिल्ली – Budha giddh aur billi:

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किसी नदी के किनारे एक छोटा सा वन था। उस वन के पेड़, पक्षियों से भरा होता था। सारे पक्षी बहुत मिल-जुलकर रहते थे। एक दिन उस वन में कही से भटकता हुआ एक गिद्ध आ पहुँचा। जिसे देख सारी चिड़िया एक हो गई और उसे इस वन से निकल जाने के लिए कहने लगी। लेकिन, बूढ़ा गिद्ध अपने दोनों हाथों को जोड़कर सभी चिड़ियोंं से विनती करने लगा, मैं बहुत बूढ़ा हो चुका हूँ अगर मैं कही दूर किसी जंगल में रहूँगा तो मुझे इस नदी से पानी पीने के लिए आना पड़ेगा। अब मुझसे अधिक दूर तक उड़ा नहीं जाता।

आप लोग मेरा विश्वास करो मैं आप लोगों को किसी भी तरह से हानि नहीं पहुचाऊँगा। बल्कि मैं आप लोगों के न रहने पर आपके बच्चों का ख्याल भी रखूँगा। उसकी बातों का सभी चिड़ियोंं ने विश्वास कर लिया और उसे वन में रहने देती हैं। धीरे-धीरे उसे वहाँ पर बहुत अच्छा लगने लगा। चिड़ियाँ उसे खाने के लिए भी दे देती थी। इस तरह से कई महीनों तक चलता रहा।

एक दिन उस वन में एक बिल्ली आ गई। जिसे देख चिड़िया के बच्चे जोर-जोर से चिल्लाने लगे। बच्चों की आवाज को सुनकर बूढ़ा गिद्ध बाहर आया और बिल्ली को कहने लगा। जितनी जल्दी हो सके यहाँ से निकल जाओ, तुम्हारा इस वन में कोई काम नहीं हैं। लेकिन, वह बिल्ली बूढ़े गिद्ध से प्रार्थना करने लगी कि मैं किसी प्रकार से पक्षियों को नुकसान नहीं पहुंचाऊँगी। बूढ़ा गिद्ध बोला ठीक हैं, लेकिन तुम्हें सिर्फ मेरे पेड़ के नीचे रहना होगा और किसी जगह पर नहीं जाना हैं।

बिल्ली बूढ़े गिद्ध की बात मान गई उस दिन से बिल्ली गिद्ध के पेड़ के नीचे रहने लगी। देखते ही देखते बिल्ली ने बूढ़े गिद्ध का विश्वास जीत लिया। लेकिन, एक दिन बिल्ली ने किसी चिड़िया के बच्चे को पेड़ के नीचे बैठा देख लपक कर पकड़ लिया तथा उसे मारकर खा जाती हैं। अब बिल्ली बिना किसी पक्षी को खाये नहीं रह पाती थी। इस तरह से वह चिड़ियाँ के बच्चों को प्रतिदिन मार कर खाती रहती थी। जिसकी भनक बूढ़े गिद्ध को नहीं मिली। इस तरह से चिड़ियाँ के बच्चे धीरे-धीरे गायब होते चले गए।

बिल्ली को ऐहसास हो गया की अब यहाँ से चले जाने में ही भलाई हैं और वह उस वन को छोड़कर चली जाती हैं। एक दिन सभी चिड़ियाँ मिलकर अपने-अपने बच्चे को पूरे वन में खोजती हैं। लेकिन कहीं भी चिड़ियाँ के बच्चे नहीं मिलते। सभी चिड़ियोंं ने सोचा, चलो बूढ़े गिद्ध से पूंछते हैं। जैसे ही सभी चिड़िया उस बूढ़े गिद्ध के पेड़ के पास गई तो उन्होंने पेड़ के नीचे हड्डियों का ढेर लगा हुआ देखा। सभी चिड़ियोंं ने बूढ़े गिद्ध पर हमला कर दिया और उस गिद्ध को मार डाला।

नैतिक सीख:

किसी अंजान व्यक्ति पर भरोसा करने का नतीजा खुद को भुगतना पड़ता हैं।

3. चतुर लोमड़ी और बकरी – Chtur lomadi aur bakari:

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एक लोमड़ी बहुत उछल-कूद करते हुए जंगल जा रही थी, अचानक वह बीच रास्ते में एक गड्ढे में जा गिरी। गड्ढा ज्यादा गहरा नहीं था। वह बार-बार बाहर निकलने का प्रयास करने लगी लेकिन वह उस गड्ढे से बाहर नहीं निकल पाई। कुछ समय बाद उसी रास्ते से एक बकरी गुजरती हैं। जिसे देख लोमड़ी कहती हैं- बहन कहाँ जा रही हो? बकरी कहती हैं- “मैं नदी से पानी पीने जा रही हूँ।”

लोमड़ी को एक तरकीब सूझती हैं, वह जोर-जोर से हँसने लगती हैं। बकरी लोमड़ी से पूछती हैं बहन आप इतनी तेज-तेज क्यों हँस रही हो? लोमड़ी बोली- गंगा जैसा निर्मल जल छोड़कर गंदगी वाला पानी पीने जा रही हो। देखो मैं, यहाँ पर पानी पीने के लिए आई थी। अगर तुम चाहो तो तुम भी साफ और निर्मल पानी पी सकती हो।

बकरी बोली हाँ, हाँ क्यों नहीं? मैं भी शुद्ध पानी पीना चाहती हूँ। लोमड़ी ने अपना हाथ बकरी को पकड़ाया और बकरी गड्ढे में आ गिरी। लोमड़ी ने बकरी के ऊपर चढ़कर छलांग लगा दी और वह गड्ढे से बाहर आ गई। बकरी को समझ में आ गया कि वह मूर्ख बन गई। बाहर निकलकर लोमड़ी बोली मूर्ख बकरी तुम्हें एक बार जरूर सोचना चाहिए था कि जमा हुआ पानी साफ होता हैं कि बहता हुआ पानी साफ और शुद्ध होता हैं। यह कहते हुए लोमड़ी तेजी से जंगल की तरफ भाग निकली।

नैतिक सीख:

बिना बिचारे जो करें सो पाछे पछताए।

और पढ़ें: 5 नैतिक शिक्षा से भरपूर हिंदी कहानियाँ

4. बारहसिंघा और शेर – Barhsingha aur sher:

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किसी नदी में एक बारहसिंघा पानी पी रहा था। उसने परछाई में देखा कि उसके सिंह राजा के मुकुट के समान हैं। बारहसिंघा मन ही मन बहुत खुश होता हैं। लेकिन इतने में उसकी नजर अपने पैरों पर पड़ती हैं। जिसे देख वह बहुत दुखी हो जाता हैं। वह अपने आप से कहता हैं मेरे पैर बकरी के पैर की तरह क्यों हैं। वह अपने आप को कोसने लगता हैं कि भगवान को हमें घोड़े की तरह पैर देना चाहिए था।

जब वह पानी पीकर बाहर निकला तो उसने अपने तरफ दबे पाँव एक सिंह को आते देखा। वह घबरा जाता हैं तथा छलांग लगाते हुए जंगल की तरफ भागता हैं। कुछ दूर जाने के बाद जंगल की झाड़ियों में उसके सींग फँस जाते हैं। जिसे वह बहुत निकालने की कोशिश करता हैं। लेकिन, वह निकाल नहीं पाता। जिसकी वजह से उसके पास शेर आकर खड़ा हो जाता हैं।

बारहसिंघा शेर से अपनी जान की भीख माँगने लगता हैं। शेर अपना रूप श्रीकृष्ण के रूप में बदलता हैं। जिसे देख बारहसिंघा आश्चर्यचकित हो जाता हैं। भगवान श्रीकृष्ण बारहसिंघा से कहते हैं- “हमें हमेशा अपने हर एक अंग के ऊपर नाज करना चाहिए” क्योंकि, हमें जैसा भी भगवान ने बनाकर भेजा हैं उसी रूप में हमें अपने आप को स्वीकार करना चाहिए। हमें कभी भी अपने किसी अंग का तिरस्कार नहीं करना चाहिए बल्कि हमें उस पर नाज करना चाहिए।

इतना कहते हुए भगवान श्रीकृष्ण अदृश्य हो जाते हैं। बारहसिंघा अपनी सोच के ऊपर बहुत शर्मिंदगी महसूस करता हैं। अब से वह अपने हर एक अंग से प्यार करने लगता हैं।

नैतिक सीख:

जिस तरह समाज में रहने के लिए हमें हर तरह के लोगों की जरूरत पड़ती हैं। ठीक उसी तरह हमें अपने शरीर के हर एक अंग की जरूरत होती हैं। क्योंकि हमारा शरीर बिना किसी एक अंग के अधूरा हैं।

5. लोमड़ी और बगुला – Lomdi aur bagula:

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किसी नदी के किनारे एक लोमड़ी और बगुला रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। जिसके कारण बगुला नदी से मछलियों को पकड़कर लोमड़ी को खिलाता तथा लोमड़ी उसे नदी के बाहर की कुछ चीजे खिलाती थी। एक दिन लोमड़ी ने बगुले से कहा- “कल आप हमारे यहाँ दावत पर आइए। मैं आपकों अपने हाथों से अच्छा पकवान बनाकर खिलाऊँगी। बगुला लोमड़ी की बातों को मान जाता हैं।

अगले दिन जब वह लोमड़ी के घर पर पहुंचता हैं तो लोमड़ी उसे एक थाली में सूप पीने के लिए देती हैं। लेकिन, सूप थाली की सतह पर फैला होने के कारण बगुला अपनी चोंच से सूप नहीं पी पाता हैं। बगुला बहुत भूखा था, उसके साथ ऐसे व्यवहार को देखकर वह बहुत दुखी हो जाता हैं। बगुला लोमड़ी से कहता हैं चलता हूँ दोस्त! कहकर उड़ जाता हैं।

बगुला नदी पहुँचकर सोचता हैं कि लोमड़ी ने उसके साथ ठीक नहीं किया, उसने मेरा अपमान किया हैं। अब बगुला लोमड़ी को मजा चखाना चाहता था। अगले दिन लोमड़ी से बगुले ने कहा – “दोस्त कल तुम मेरे यहां दावत पर आना मैं तुम्हें कुछ अच्छे पकवान खिलाऊँगा।” उसकी बातों को सुनकर लोमड़ी बहुत खुश होती हैं।

लोमड़ी अपने घर पहुँचकर सोचती हैं, अब मैं कल तक कुछ नहीं खाऊँगी। जिससे अधिक भूख लग सके और कल अपने दोस्त के घर भरपेट भोजन करूंगी। अगले दिन भूखी लोमड़ी बगुले के पास पहुंची। बगुले ने मछली बनाई थी, जिसकी खुशबू इतनी अच्छी थी की लोमड़ी के मुहँ से पानी टपक रहा था। बगुले ने लोमड़ी को एक लंबे गिलास में कुछ पकी हुई मछलियों को डालकर खाने के लिए दिया।

लेकिन गिलास इतना गहरा था की उसका मुहँ नीचे तक नहीं जा पा रहा था। बगुला उसे खाने की विधि बताते हुए अपनी चोंच गिलास में डालकर सभी मछलियों को खा गई। अब लोमड़ी को ऐहसास होने लगा जैसा करोगे, वैसा भरोगे। उसने अपने किए पर बगुले से माँफी मांगी। बगुला उसे माँफ कर देता हैं। फिर से उन दोनों के बीच दोस्ती हो जाती हैं।

नैतिक सीख:

अगर आप मान सम्मान पाना चाहते हैं तो, पहले आपको दूसरों को सम्मान देना पड़ेगा।

6. पहले मैं, पहले मैं – Phle main, phle main:

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दो जंगलोंं के बीच एक गहरी खाई थी। खाई में नीचे पानी का तेज बहाव रहता था। जिसके कारण एक जंगल से दूसरे जंगल में कोई जानवर नहीं जा पाते थे। एक बार किसी अंजान व्यक्ति ने एक जंगल से दूसरे जंगल को जोड़ने के लिए खाई के ऊपर एक पेड़ को रख दिया। उस पेड़ के ऊपर से कोई एक व्यक्ति ही एक जंगल से दूसरे जंगल को जा सकता था। जबकि कोई व्यक्ति उस लकड़ी के ऊपर से एक दूसरे को पार नहीं कर सकता था।

एक दिन एक बकरी जंगल के इस पार से उस पार जा रही थी। इतने में उस पार से इस पार के लिए एक बकरी और भी आ रही होती हैं। दोनों की मुलाकात खाई के बीचों-बीच लकड़ी के रास्ते में हो जाती हैं। दोनों बकरियाँ एक दूसरे को पीछे हटने के लिए कहती हैं। लेकिन, दोनों ही पीछे हटने के लिए तैयार नहीं होती हैं।

देखते ही देखते दोनों में तू तू, मैं मैं होने लगती हैं। जिसके कारण दोनों अपने सिंह से एक दूसरे के ऊपर वार कर देती हैं। दोनों बकरियों का सींग एक दूसरे के सींग में फसने के कारण दोनों खाई में जा गिरती हैं। पानी का बहाव तेज होने के कारण दोनों पानी में बह जाती हैं।

नैतिक सीख:

परिस्थितियों के अनुसार कभी-कभी पीछे हट जाने में ही भलाई होती हैं।

7. प्यासा कौवा – Pyasa kauva:

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एक बार की बात हैं एक कौवा आसमान में उड़ रहा था, जोकि बहुत प्यासा था। उड़ते-उड़ते उसे एक कुआँ दिखाई दिया। कौए ने सोचा चलो इस कुएं पर अपनी प्यास बुझा लेता हूँ। कौवा कुएं पर आकर देखता हैं कि वह कुंआ तो सूखा होता हैं। कौवा दुखी हो जाता हैं उसकी प्यास और बढ़ती जाती हैं। कौवा फिर से उड़ान भरता हैं। उड़ते-उड़ते काफी दूर आगे निकल आता हैं नीचे देखता हैं तो नदियाँ तालाब सब सूखे हुए होते हैं।

कौवा सोचता हैं अब तो प्यास के कारण जान निकल जाएगी। कुछ दूर और आगे जाने के बाद उसे एक नीम के पेड़ के नीचे एक घड़ा रखा हुआ दिखाई देता हैं। कौए के मन में एक आस जागी। वह सोचता हैं कि उसे यहाँ पर पीने के लिए पानी जरूर मिल जाएगा। लेकिन, जब वह घड़े के ऊपर जाकर बैठा तो देखा कि घड़े में पानी तो हैं लेकिन उसकी चोंच वहाँ तक नहीं पहुँच पा रही हैं। कौवा भगवान को कोसने लगता हैं, वह कहता हैं- हे भगवान, अब हमारी परीक्षा मत लो, मुझे पानी पीने का जतन बताओ।

कौवा बहुत मायूस हो जाता हैं, उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। तभी कौवे की नजर घड़े के आसपास पड़े छोटे-बड़े पत्थरों पर पड़ती हैं। कौवा बिना देर किए एक-एक करके पत्थरों को घड़े में डालना शुरू कर देता हैं। देखते ही देखते घड़े का पानी ऊपर आना शुरू हो जाता हैं। इस तरह से कौवे को पीने के लिए पानी मिल जाता हैं। कौवा भगवान का शुक्रिया अदा करता हैं और वह वहाँ से उड़ जाता हैं।

इन्हें भी देखें: 10 मजेदार कहानियां इन हिन्दी – Top 10 Best Stories in Hindi

नैतिक सीख:

बुद्धिमानी के साथ लिया गया फैसला सफलता की ओर ले जाता हैं।

8. अंगूर खट्टे हैं – Angur khtte hain:

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पहाड़ियों में घनश्याम नाम का एक माली रहता था। जिसने अपनी झोपड़ी के किनारे चहरदीवार के अंदर फल-फूल के पेड़-पौधे लगाए हुए थे। माली की झोपड़ी हर मौसम में फलों और फूलों से भरी रहती थी। उसकी झोपड़ी के आस-पास से जो भी गुजरता था। वहाँ के मनमोहक दृश्य तथा पेड़ों पर लगे फल और फूलों को देख मंत्रमुग्ध हो जाता था।

माली के बगीचे में आम, केला, संतरे, अंगूर जैसे अनेकों फलों के पेड़ लगे हुए थे। इन्ही पेड़ों के साथ-साथ किस्म-किस्म के फूल भी लगे हुए थे। माली अपना जीवन यापन फलों और फूलों को बेचकर करता था। एक बार कहीं से एक लोमड़ी माली के घर के पास आ पहुंची। लोमड़ी ने लटकते हुए अंगूर के गुच्छे देखे और उसके मुंह में पानी आ गया।

लोमड़ी मन ही मन सोचती हैं कि आज तो मैं पेट भरकर अंगूर खाऊँगी। लोमड़ी इधर-उधर देखती हैं, जब उसे आसपास कोई नहीं दिखता तो वह अंगूर की बेल के नीचे जाती हैं और अंगूर को तोड़ने के लिए उछलती हैं। लेकिन, अंगूर के गुच्छे ऊपर होने के कारण वह अंगूर नहीं तोड़ पाती हैं। इस तरह से लोमड़ी कई बार अंगूर तोड़ने का प्रयास करती हैं। लेकिन वह एक भी अंगूर नहीं तोड़ पाती। अंत में थक हार कर लोमड़ी अपने आप को समझाने के लिए कहती हैं- “अच्छा हुआ मुझे अंगूर नहीं मिला, मुझे पता हैं कि ये अंगूर खट्टे हैं।” यह बोलती हुई लोमड़ी तेजी से जंगल की तरफ भाग जाती हैं।

नैतिक सीख:

किसी भी व्यक्ति या वस्तु में कमियाँ निकालने से अच्छा हैं, आपको अपनी कमियों को देखना चाहिए।

9. शेर और चूहा – Sher aur chuha:

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किसी जंगल में एक शेर रहता था। जिससे जंगल के सभी जानवर बहुत डरते थे। शेर दूर-दूर के जंगलों में शिकार करने जाया करता था। उसकी खूंखार दहाड़ से सभी सुरक्षित स्थान पर चले जाते थे। एक दिन शेर जंगल में किसी जानवर का शिकार करके धूप सेकते-सेकते सो गया। कही से एक चूहा उसके पास आया और उसकी पूँछ के सहारे उसके ऊपर चढ़ गया। वह चूहा उसके ऊपर चढ़कर उछल-कूद करने लगता हैं। जिसमें उसको बहुत मजा आ रहा था। अचानक शेर नीद से जाग जाता हैं। वह चूहे को अपने पंजों में दबोच लेता हैं।

चूहा अपने जीवन की भीख माँगने लगता हैं। वह कहता हैं- “हे राजन मुझे छोड़ दो कभी मैं आपकी मदद जरूर करूंगा” शेर जोर-जोर से हँसने लगता हैं। वह कहता हैं- “तुम इतने छोटे प्राणी हो तुम मेरी क्या मदद करोगे” फिलहाल मैंने अभी-अभी भोजन किया हैं। इसलिए आज मैं तुम्हें छोड़ता हूँ। लेकिन एक बात ध्यान रखना, आगे से कभी मेरे सोने में विघन डाला तो मैं तुम्हें खा जाऊंगा। इस तरह से शेर चूहे को छोड़ देता हैं। चूहा तेजी से भागकर अपने बिल में घुस जाता हैं।

कुछ दिन बाद शिकारियों ने शेर को पकड़ने के लिए उसी जंगल में जाल बिछा दिया। उस दिन शेर अपना शिकार करके मस्ती से झूमता चला आ रहा था। जैसे ही उसने जाल में पैर रखा, शिकारियों ने उस जाल को खींच लिया। जिससे शेर जाल में पूरी तरह से फँस गया। शिकारी बहुत खुश हुए। वे शेर को ले जाने के लिए गाड़ी लाने चले जाते हैं।

शेर जोर-जोर से दहाड़ने लगता हैं। उसकी आवाज सुनकर चूहा अपने दोस्तों के साथ तेजी से भागते हुए जंगल की तरफ आते हैं। चूहा शेर की पूँछ पकड़कर जाल को चारों तरफ से काटना शुरू कर देते हैं। देखते ही देखते चूहे पूरे जाल को काटकर शेर को जाल से मुक्त कर देते हैं। शेर जाल से निकलकर चूहे का धन्यवाद करता हैं। चूहा कहता हैं- “महाराज मैंने आप से वादा किया था कि कभी न कभी आपके बुरे वक्त में काम जरूर आऊँगा। फिर आपने मुझे जीवनदान दिया था। आज मैंने आप से किया हुआ वादा निभा दिया।

शेर ने चूहे से शुक्रिया किया। वह चूहे से कहता हैं आज से तुम हमारे दोस्त हो, तुम चाहे तो मेरे ऊपर उछलो-खेलों कूदो मैं तुम्हें मना नहीं करूंगा। चूहे ने राजा शेर सिंह का शुक्रिया अदा किया। इतने में दोनों देखते हैं कि शिकारी शेर को ले जाने के लिए गाड़ी लेकर आ रहे होते हैं। शेर को खुला देखकर शिकारी घबरा जाते हैं। वे वापस अपने घरों को भाग जाते हैं।

नैतिक सीख:

किसी भी इंसान को कम नहीं समझना चाहिए कौन, कब , कहाँ काम आ जाए, इसे कोई समझ नहीं सकता।

10. बगुला और भेड़िया – Bagula aur bhediya:

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एक भेड़िया शिकार करके उसके मांस को खा रहा था। लेकिन वह बहुत डरा हुआ था कहीं राजा शेर सिंह मेरे पास न आ जाए, नहीं तो वह मेरा शिकार कर लेंगे। इसी सोच में वह जल्दी-जल्दी मांस खा रहा था। अचानक भेड़िए के गले में मांस के साथ हड्डी जाकर फँस गई। अब भेड़िया कुछ खा नहीं पा रहा था। उसके गले का दर्द धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा था। उसने सोचा अगर गले से हड्डी नहीं निकली तो मेरी जान भी जा सकती हैं।

उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वह क्या करें? एकाएक उसके दिमाग में आता हैं कि अगर वह बगुले के पास जाए तो वह अपनी लंबी चोंच उसके गले में डालकर हड्डी निकाल सकता हैं। वह तुरंत भागते हुए नदी के किनारे पहुंचा। बगुले को देखकर भेड़िया रोते हुए कहता हैं। बगुले भाई मेरे गले में एक हड्डी फंस गई हैं। कृपया अपनी लंबी गर्दन वाली चोंच से हड्डी को बहार निकाल दो, मैं आपका आभारी रहूँगा।

बगुला कहता हैं तुम्हारा क्या भरोसा मेरी गर्दन अपने मुंह के अंदर पाकर दबोच लिया तो मैं क्या करूंगा। भेड़िया बगुले को विश्वास दिलाता हैं वह ऐसा किसी भी हाल में नहीं करेगा। बल्कि, इसके बदले में उसे बहुत बड़ा इनाम भी देगा। उसका दर्द और बढ़ता ही जा रहा था। उसकी हालत देख बगुले को भेड़िया के ऊपर दया आ जाती हैं। वह अपनी चोंच उसके मुहँ में डालकर उसके गले की हड्डी निकाल देता हैं।

भेड़िया राहत की साँस लेता हैं और वह वहाँ से जाने लगता हैं। बगुला कहता हैं- भेड़िया भाई तुमने हड्डी निकालने के बदले इनाम देने की बात कही थी। मेरा ईनाम कहाँ हैं? बगुला बदले हुए स्वर मे बोला – “भूल गए तुम, तुम्हारी गर्दन मेरे मुहँ में थी, मैंने तुम्हें जीवनदान दे दिया” मैं चाहता तो तुम्हें खा सकता था। तुम्हारे लिए इससे बड़ा इनाम क्या होगा। ऐसा कहते हुए भेड़िया जंगल की तरफ भाग जाता हैं।

नैतिक सीख:

हमें किसी भी इंसान की मदद बहुत सोच समझकर करनी चाहिए।

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