बच्चों को कहानियां सुनाने का प्रमुख कारण बच्चे का बिना किसी आधुनिक उपकरण के बौद्धिक विकास करना होता हैं। इसके अलावा कहानी सुनाने से बच्चे के अंदर जिज्ञासा पैदा होती हैं। जिसके कारण बच्चा रुचिपूर्ण तरीके से कहानी सुनने में अपना मन लगाता हैं। इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि कहानियां बच्चों का ज्ञानार्जन करने का एक बहुत सरल और आसान माध्यम हैं। इसलिए आज हम बच्चों के लिए नई कहानियां लेकर आए हैं जोकी, निम्नलिखित प्रकार से हैं।
1. गुण अपने अपने – Gun apne apne:

मोहन नाम का एक लड़का था, जिसे मीठी चीजों को खाना बहुत पसंद था। वह प्रतिदिन बिना मीठा खाए नहीं रह पाता था। उसे अधिक मीठा खाते देख उसके माता पिता बहुत चिंतित रहते थे। मोहन को उसके माता-पिता कई बार समझा चुके थे कि अधिक मीठा खाने से आपके दाँत खराब हो जाएंगे। इसके अलावा आपके पेट में कीड़े भी पड़ सकते हैं। लेकिन, मोहन जिद्द करके मीठा खा ही लेता था।
एक बार रात में वह अपने माता-पिता से छिपकर रसोईघर में गया। उसने रसोई की लाइट बिना जलाए एक सफेद डिब्बा निकाला। वह डिब्बा नमक का था। जिसे उसने चीनी समझकर अपने मुँह में डाल लिया। अचानक वह थू… थू… करते हुए बाथरूम में जाकर अपने मुँह को अच्छे से धुला। वहीं रखे चीनी के डिब्बे ने नमक के डिब्बे को ताना मारते हुए कहा कि नमक भाई हम दोनों देखने में एक तरह से ही दिखते हैं। लेकिन, तुम्हारे गुण के कारण एक बच्चा कितना दुखी हुआ, जबकि मेरी मिठास से वह बहुत प्रसन्न हो जाता है।
नमक, चीनी की बातों का स्वागत करते हुए बोला “मेरे भाई, जहाँ पर तुम्हारी जरूरत हैं, वहाँ तुम अच्छे हो, और जहाँ पर मेरी जरूरत हैं मैं अच्छा हूँ। उस बच्चे ने गलती से मुझे मुहँ में डाल लिया इसलिए, थू… थू… कर रहा था। चीनी, नमक से घमंड में बोली- “ये तुम्हारी मूर्खतापूर्ण बातें मुझे नहीं सुनना, मैं हर जगह अच्छी हूँ।” नमक ने चीनी से कहा- “फिर एक काम करते हैं, आज तुम मेरी जगह पर आ जाओ और मैं तुम्हारी जगह पर। फिर देखते हैं क्या होता हैं।” चीनी उसकी बातों को मान गई। दोनों ने अपनी-अपनी जगह बदल ली।
जब रात का खाना बना तो दाल और सब्जी में नमक की जगह चीनी डल गई। जब सभी लोग खाने की मेज पर बैठे तो खाने के पहले निवाले को खाते ही थू… थू… करते हुए खाने की मेज से उठ गए। घर के लोगों ने अपने रसोइए को बुलाकर भला-बुरा खूब सुनाया। उसने अपने मालिक से गलती की माँफी मांगी। इधर, नमक ने चीनी से कहा- “देखा, तुमने कहाँ पर किसका महत्त्व हैं।” इसलिए, तुम्हें यह जानना जरूरी हैं कि हर किसी का अपना-अपना एक अलग गुण और स्वभाव होता हैं। जहाँ जो शोभा देता हैं, वहीं उसका उपयोग किया जाता हैं।
कहानी से सीख:
हर किसी चीज का अपना-अपना महत्त्व हैं।
2. मानसिक गुलामी – Mansik gulami:

रोहन अपनी कक्षा में पढ़ने में बहुत कमजोर था। वह स्कूल जाने के नाम पर तरह-तरह के बहाने करने लगता था। क्योंकि, वह सोचता था कि पढ़ाई उसके बस की बात नहीं हैं। उसे सबसे ज्यादा डर इस बात का लगा रहता था कि वह कहीं फेल न हो जाए। किसी तरह रोहन ने अपनी परीक्षा खत्म की। परीक्षा परिणाम में वह असफल घोषित हुआ। उसके माता-पिता को बहुत चिंता होने लगी। वे सोचने लगे कि इसी तरह से अगर रोहन डरता रहा तो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाएगा।
एक दिन रोहन और उसके पापा बाजार जा रहे थे। दोनों ने बीच रास्ते में देखा कि एक जगह कई हाथी एक मामूली जंजीर से खूटे में बंधे हुए हैं। रोहन अपने पापा के साथ हाथी के महावत के पास गया। रोहन के पापा महावत से पूंछते हैं कि- इतना विशालकाय हाथी मामूली सी जंजीर से कैसे बंधे हैं? जबकि अगर ये चाहे तो इसे एक झटके में तोड़ सकते हैं।
महावत दोनों को समझाते हुए कहता हैं कि इन हाथियों को छोटी सी उम्र से ही इन जंजीर से खूटों में बाँधा जाता रहा हैं। उस समय इनके पास ज्यादा ताकत न होने की वजह से इस जंजीर को चाहकर भी नहीं तोड़ पाते थे। इसलिए, इन्हें यकीन हो गया कि वे इस जंजीर को नहीं तोड़ सकते। धीरे-धीरे हाथी बड़े हो गए। लेकिन उनका यह विश्वास बना रहा कि वें इस जंजीर को नहीं तोड़ सकते हैं, तथा कभी तोड़ने का प्रयास भी नहीं करते।
महावत ने दोनों से कहा कि हम हाथियों की तरह सिर्फ पहली मिली असफलता के कारण अपने मन में यह मानकर बैठ जाते हैं कि मुझसे नहीं होगा या फिर यह मैं नहीं कर सकता। वें ठीक हाथियों की तरह अपनी बनाई मानसिकता के जंजीर में फँसकर रह जाते हैं। इसलिए हमें यह ध्यान रखना चाहिए की असफलता जीवन का एक हिस्सा हैं, जो हमें और अच्छा करना सिखाती हैं। लेकिन हमें हाथी की तरह मानसिक बंधन में बंधकर नहीं रहना चाहिए।
अब रोहन के पिता अपने बच्चे से पूछते हैं, तो रोहन आपने आज यहाँ पर क्या सीखा? रोहन कहता हैं हमें मानसिक तौर पर मजबूत होना चाहिए। तथा पिछली असफलताओ से सीखते हुए नए लक्ष्य की तरफ बढ़ना चाहिए।
कहानी से सीख:
हमें पिछली असफलतों से सीख कर आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।
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3. गरीब और अमीर दोस्त – Garib aur amir dost:

मोहित और सर्वेश दोनों बहुत अच्छे मित्र थे। मोहित के पिता गाँव के प्रधान के साथ-साथ बहुत अमीर थे। जबकि, सर्वेश के पिता उस गाँव के एक किसान थे। मोहित और सर्वेश हमेशा एक साथ रहते थे जिसके कारण स्कूल में भी उनकी दोस्ती की चर्चा अधिक होती थी। एक बार मोहित और सर्वेश दोनों को एक साथ बुखार आ गया। सर्वेश के पिता उसे गाँव के एक डॉक्टर के पास ले गए। डॉक्टर ने सर्वेश का चेकअप करके उसे दवाइयाँ दी। डॉक्टर ने उसके इलाज का खर्च 500 रुपए बताया।
सर्वेश के पिता डॉक्टर के सामने हाथ जोड़कर कहने लगे हमारे पास कुछ पैसे कम हैं। डॉक्टर ने सर्वेश के पिता से तेज आवाज में कहा- “आगे से पूरा पैसा लेकर आया करो।” इतने में मोहित को लेकर उसके पिता भी आ जाते हैं। मोहित डॉक्टर के पास अपने दोस्त सर्वेश को देखकर उससे बात करना चाहा, लेकिन वह किसी कारण वश अपने दोस्त सर्वेश से बात नहीं कर पाया।
मोहित के पिता को देखकर डॉक्टर अपनी सीट से खड़ा हो जाता हैं, और कहता हैं- “कैसे आना हुआ प्रधान जी? बताओ मैं आपकी कैसी मदद कर सकता हूँ। मोहित के पिता अपने बच्चे को दिखाते हुए कहते हैं- “मेरे बच्चे को कल रात से बुखार आ गया। कृपया आप इसका इलाज करो।” डॉक्टर कहता हैं- “प्रधानजी आपने यहाँ आने का कष्ट क्यों किया, मुझे संदेशा भिजवा देते तो मैं आपके घर आकर बच्चे को देख लेता।
डॉक्टर ने मोहित का अच्छे से इलाज किया। मोहित के पिताजी ने डॉक्टर से दवाइयों और फीस के कुल पैसे पूछे। डॉक्टर ने पैसा लेने से मना करते हुए कहा- “कोई बात नहीं प्रधानजी आपका बच्चा हमारा बच्चा हैं।” जब मोहित घर पर आया तो बुखार की हालत में बिना किसी से बताए अपने मित्र सर्वेश के घर जाकर उसका हालचाल लिया। इसके अलावा, उसके पिता को कुछ पैसे भी दिए।
जब वह वापस घर लौटा तो उसे अपने मित्र की और चिंता होने लगी। इस तरह से धीरे-धीरे उसकी तबीयत और खराब होती चली गई। अब गाँव के डॉक्टर ने उसके पिता को उसे शहर के किसी बड़े अस्पताल में ले जाने की सलाह दी। मोहित के पिता के पास पैसों की कमी नहीं थी। वह अपने बच्चे को एक बड़े अस्पताल ले गए। वहाँ पर डॉक्टर ने बहुत अच्छी तरह से देख-भाल की।
लेकिन, मोहित के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हो रहा था। एक दिन मोहित के मित्र सर्वेश ने सोचा कि उसके घर जाकर मैं अपने दोस्त की खबर ले आता हूँ। उसने मोहित के घर जाकर पता किया तो उसे पता लगा उसका दोस्त ज्यादा बीमार हैं। जिसके कारण वह शहर के एक बड़े अस्पताल में भर्ती हैं। उसी दिन सर्वेश अपने दोस्त से मिलने उस अस्पताल में गया।
सर्वेश को स्वस्थ देखकर उसका दोस्त मोहित बहुत खुश हुआ। दोनों एक दूसरे के गले लग जाते हैं। इस तरह से दोनों की आँखों में खुशी के आँसू भर आते हैं। उन दोनों को देख डॉक्टर समझ जाता हैं कि अभी तक कोई दवा मोहित को क्यों नहीं ठीक कर पा रही थी।
इस तरह से प्रतिदिन सर्वेश अपने दोस्त से मिलने आता रहा। देखते-देखते उसका दोस्त बहुत जल्द ठीक हो गया। जब मोहित अपने पिता के साथ अस्पताल से घर जा रहा था तो उसके पिता ने डॉक्टर को धन्यवाद किया। डॉक्टर ने कहा- “धन्यवाद मुझे नहीं, मोहित के दोस्त को दो जिसके कारण आपका बेटा ठीक हो सका। इस तरह से डॉक्टर ने मोहित के पिता को पूरी बातें बता दी।
मोहित के पिता ने सर्वेश को अपने घर बुलाकर उससे कहा- “आज से आपकी पढ़ाई का खर्च मैं उठाऊँगा।” लेकिन तुम दोनों दोस्त ये दोस्ती जीवन पर्यंत निभाना। मोहित और सर्वेश एक दूसरे के गले लग गए।
कहानी से सीख:
दोस्ती में कोई स्वार्थ नहीं होता।
4. पैसे का सही उपयोग – Paise ka sahi upyog:

एक बार राजा मनसिंह का दरबार लगा हुआ था। राजा अपने सिंघासन पर विराजमान थे। उनके सामने और दोनों तरफ दरबारी और मंत्री बैठे हुए थे। राजा अपने सभी दरबारी और मंत्रियों से कहता हैं कि इस बार हमें राजकोष के पैसे को कहाँ पर निवेश करना चाहिए? राजा के सामने बैठे एक पक्ष के मंत्री ने कहा कि- “महाराज, हमें इस वर्ष राजकोष के धन को सैन्य शक्ति बढ़ाने में लगाना चाहिए। जिससे राज्य की सुरक्षा को और अधिक मजबूत बनाया जा सके। इसके अलावा अगर हमारी सैन्य शक्ति बढ़ेगी तो हम अपने पड़ोसी राज्यों पर कब्जा कर सकते हैं और उनसे हम कर भी वसूल सकते हैं।
राजा मनसिंह के सामने बैठे दूसरे पक्ष के मंत्री ने कहा कि- महाराज, राजकोष का उपयोग जनकल्याण के लिए होना चाहिए। जिससे हमारे राज्य के लोग सुखी, संतुष्ट, बलशील और योद्धा बनकर हमारी मदद करेंगे। जिसके कारण हम कभी भी किसी युद्ध में पराजित नहीं होंगे। इसके अलावा आपको किसी अन्य राज्य से सैनिकों को बुलवाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। आपका पूरा राज्य बलशाली योद्धाओं से भरा रहेगा। इस तरह से दोनों पक्षों में बहस होने लगी।
अंत में राजा को निर्णय लेने के लिए दोनों पक्षों ने आग्रह किया। राजा ने कुछ देर विचार विमर्श करने के बाद अपना निर्णय सुनाते हुए कहता हैं कि युद्ध सदियों से होते आ रहे हैं। जिसका परिणाम सबको पता हैं। हमें किसी के अधिकार का हनन नहीं करना चाहिए। लेकिन अगर कोई हमारे राज्य पर अपना अधिकार जमाना चाहेगा तो उसके लिए हमारे सैनिक और राज्य के निवासी ही पर्याप्त होंगे। इसलिए इस बार राजकोष का पैसा राज्य तथा राज्य के वासियों की उन्नति में लगेगा।
कहानी से सीख:
हमें अमन चयन और शांति का मार्ग अपनाना चाहिए।
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5. बुद्धिमान दूधवाला – buddhiman doodhwala:

रामगढ़ नामक गाँव में महेश नाम का एक दूधवाला था। जिसके पास 2 भैंस और 3 गाय थी। उन्ही के दूध को बेचकर उसके घर का खर्च चलता था। महेश सुबह जब अपने जानवरों से दूध निकालता तो उसके घर दूध लेने वालों की भीड़ लग जाती थी। महेश कभी भी दूध में पानी नहीं मिलाता था। जिसके कारण उसके दूध की माँग अधिक रहती थी। उसका दूध प्रतिदिन घर से ही बिक जाता था।
एक दिन तेज बारिश हुई उस दिन कुछ ही लोग उसके घर पर दूध लेने आए बाकी का दूध बच गया। वह जल्दी से अपने काम निपटाकर दूध को बेचने के लिए बाजार निकल गया। वह अपने साथ तीन छोटे बड़े बर्तन में दूध को लेकर जा रहा था। बीच रास्ते में उसे एक व्यक्ति मिला जोकि बाजार से दूध लेने के लिए जा रहा था। वह व्यक्ति महेश से पूंछता हैं- “क्या मुझे एक लीटर दूध मिल जाएगा?
महेश उस व्यक्ति से कहता हैं- ‘हाँ जरूर! जब उसने अपने बर्तन को नीचे रखा तो देखा कि दूध नापने वाला मग घर पर ही भूल गया हैं। वह व्यक्ति दूधिया से कहता हैं तो रहने दो, मैं बाजार जाकर ही दूध ले आता हूँ। दूधिया उस व्यक्ति को रोकते हुए कहता हैं- मैं आपको एक लीटर दूध दे रहा हूँ। वह उस व्यक्ति से कहता हैं मेरे पास आठ लीटर, पाँच लीटर और तीन लीटर के बर्तन हैं।
दूधिया सबसे पहले आठ लीटर वाले बर्तन में सारे दूध डाल देता हैं। फिर वह आठ लीटर वाले दूध से तीन लीटर वाले बर्तन को पूरा भर देता हैं। फिर उस पूरे दूध को पाँच लीटर वाले बर्तन में डाल देता हैं। फिर से आठ लीटर वाले बर्तन से तीन लीटर वाले बर्तन को पूरा दूध से भरता हैं। एक बार फिर तीन लीटर वाले दूध को पाँच लीटर वाले में डालता हैं। अब पाँच लीटर का बर्तन पूरी तरह से भर जाता हैं। जबकि तीन लीटर वाले बर्तन में एक लीटर दूध बच जाता हैं। जिसे दूधिया उस व्यक्ति को दे देता हैं। दूधिया की बुद्धिमानी देख वह व्यक्ति बहुत आश्चर्यचकित होता हैं।
कहानी से सीख:
बुद्धिमानी के साथ लिया गया फैसला हमेशा सार्थक होता हैं।