राज्य का उत्तराधिकारी कौन – Rajya ka uttradhikari kaun

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किसी राज्य में उदयभान सिंह नाम का एक राजा रहता था, उसके दो बेटे थे। राजा बहुत न्यायप्रिय और परोपकारी था। उसे अपने राज्य की जनता से बहुत अधिक लगाव था। समय बीतता गया, राजा धीरे-धीरे बुढ़ा होता जा रहा था। अब उसे अपने दोनों बेटों में से किसी एक को राज्य का उत्तराधिकारी चुनना था। जोकि, उसके लिए बहुत मुश्किलों भरा काम लग रहा था। राजा अपने दरबार के मंत्रियों से सलाह लेता हैं।

सभी मंत्रियों ने राजा को अपने-अपने सुझाव दिए। लेकिन, राजा किसी के सुझाव से सहमत नहीं हुआ। उन्ही मंत्रियों में से एक मंत्री ने कहा- “महाराज अपने राज्य में एक महात्मा रहते हैं। उनके पास जो भी जाता हैं, उसे समस्या का समाधान जरूर मिलता हैं। इसलिए, हे राजन! आपको एक बार उन महात्मा से जरूर मिलना चाहिए। हमें विश्वास हैं कि महात्मा जी आपको कोई न कोई रास्ता जरूर बताएंगे।”

राजा अपने घोड़े पर सवार होकर महात्मा से मिलने पहुँचता हैं। वह आश्रम पहुंचकर अपनी पूरी बात महात्मा को बताते हैं। महात्मा जी राजा से दोनों राजकुमारों को अपने आश्रम में कुछ दिन के लिए छोड़ने को कहते हैं। राजा अपने दोनों बेटों को महात्मा के आश्रम में भिजवा देते है। आश्रम में दोनों राजकुमारों को अपना-अपना विश्राम कक्ष दिखाया जाता हैं। कुछ समय बाद महात्मा दोनों राजकुमारों से बारी-बारी उनके विश्राम कक्ष में मिलते हैं। और उन्हें वहाँ रहने के नियमों के बारें बताते हैं।

दोनों राजकुमारों के विश्राम कक्ष के बीच में एक झोपड़ी बनी हुई थी। जिसमें राजा छिपकर अपने राजकुमारों के वर्ताव को देखता था। राजा का बड़ा बेटा आश्रम में भेजे जाने से बहुत नाराज होता हैं। वह आश्रम में रहने के किसी भी नियम को नहीं मानता था। जबकि, उसका छोटा भाई सुबह उठकर अपने विश्राम कक्ष की सफाई करना, नहाना-धोना, पूजा-पाठ करना सभी तरह के नियमों का पालन करता था।

एक बार महात्मा जी दोनों भाइयों को किसी वन में घूमने के लिए भेजते हैं। दोनों कुछ दूर चलते हैं तो उन्हें एक लहुलुहान चिड़िया गिरी हुई दिखाई देती हैं। उसे देख छोटा भाई जल्द उसे उठाकर पानी पिलाता हैं। उसके घावों पर पट्टी भी करता हैं। जबकि बड़ा भाई उसे ऐसा करने से मना करता हैं। लेकिन वह उस चिड़िया को राहत पहुंचता हैं।

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फिर दोनों राजकुमार वन में थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो उन्हें भिखारी का भेष बदलकर राजा और महात्मा मिलते हैं। वें दोनों राजकुमारों से कहते हैं- “हम दोनों सगे भाई है, हमारे पिता जी की कल मृत्यु हो गई। इसलिए, हम दोनों अपनी संपत्ति का बटवारा करने के लिए राजा के पास जा रहे हैं। कृपया हमें राजा के दरबार तक पहुंचने का सही मार्ग बताए।”

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राजा का बड़ा बेटा उन दोनों भिखारियों से कहता हैं- “तुम लोग उस राजा के पास जा रहे हो जो अभी तक अपने राज्य का उत्तराधिकारी नहीं चुन सका, उससे तुम न्याय की कामना करते हो। और वह जोर-जोर से हँसने लगा।” वही पास खड़े उसके छोटे भाई ने बड़े भाई को समझाते हुए कहा कि हमें किसी के बारे में ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए। वह दोनों भिखारियों से पूंछता हैं कि- “तुम्हारे पिता के पास क्या-क्या संपत्ति थी।”

दोनों भिखारी अपनी पूरी संपत्ति का विवरण राजकुमारों को देते हैं। तभी बड़ा भाई दोनों को जमीन का आधा-आधा हिस्सा बँटवारा करने के लिए कहता हैं। इसके अलावा, उसके खेत में एक आम का पेड़ भी था। जिसमें बड़े-बड़े आम लगे हुए थे। उसका बँटवारा करते हुए राजा का बड़ा बेटा कहता हैं- “यह पेड़ जिसके जमीन के हिस्से में हैं उसी का होगा या फिर इस पेड़ को काट दो और लकड़ियों को आधा-आधा बाँट लो। लेकिन दोनों भिखारी उस पेड़ को काटना नहीं चाहते थे।

राजा का छोटा बेटा अपने बड़े भाई से इजाजत मांगते हुए कहता हैं- “तुम दोनों इस पेड़ की देखरेख करो और जो फल और सूखी लकड़ियाँ मिले उसे आधा-आधा बाँट लिया करो। उसकी बात दोनों भिखरियों को अच्छी लगती हैं। जिसपर वे दोनों सहमत हो जाते हैं और वपास अपने घर चले जाते हैं।

दोनों राजकुमारों को वन से वापस लौटते समय रास्ते में खून से बने पदचिन्ह दिखाई देते हैं। जिसे देख छोटा भाई बहुत अचंभित होता हैं। वह उन पदचिन्हों का पता लगाने के लिए उसी तरफ आगे जाने लगता हैं। उसे उस तरफ आगे जाते देख बड़ा भाई उसे वहाँ जाने से मना करते हुए कहता हैं- “वहाँ मत जाओ! हो सकता हैं, कोई जंगली लुटेरे होंगे। वहाँ जाने से तुम फँस सकते हो।” छोटा भाई उससे कहता हैं- “भईया! हम क्षत्रिय हैं, हम किसी से नहीं डरते, हमारे पूर्वज जंगल में ही शिकार किया करते थे। यह कहते हुए, वह आगे चला जाता हैं।

बड़ा भाई उसे उसी वन में अकेला छोड़ आश्रम वापस आ जाता हैं। वन में उसका छोटा भाई देखता हैं कि उसके पिता कुछ डाकुओं से अकेले लड़ रहे होते हैं। और वह बुरी तरह से घायल हो चुके होते हैं। वह तुरंत अपनी तलवार निकालकर डाकुओं को परास्त कर देता हैं। और अपने पिता को लेकर आश्रम पहुँचकर महात्मा से सारी घटना के बारे में बताता हैं।

महात्मा राजा और उनके दोनों राजकुमारों को लेकर राजमहल चले गए। महल के पास पहुँचकर दोनों राजकुमार बहुत आश्चर्यचकित हुए। क्योंकि, पूरे राज्य में यह खबर फैली हुई होती हैं कि आज उनके राज्य में एक नया उत्तराधिकारी बनने जा रहा हैं। दरबार लगा होता हैं, राजा महात्मा जी को कुछ कहने के लिए आदेश देते हैं।

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महात्मा जी राजा और दोनों राजकुमारों के समक्ष आश्रम में नियमों के बारे में बताते हुए कहते हैं कि- “जो व्यक्ति खुद नियम न माने तो उसके बनाए नियमों को राज्य के लोग कैसे पालन कर सकते हैं? चिड़िया का उदाहरण देते हए महात्मा जी ने कहा- “जो इंसान जीवों पर दया नहीं करना जानता वह राज्य की जनता के ऊपर दया कैसे दिखा सकता हैं? भिखारी का उदाहरण देते हुए महात्मा जी कहते हैं- “जिसे सही और गलत का न्याय करना नहीं आता, वह अपने राज्य की जनता का न्याय कैसे कर सकता हैं?

अंत में महात्मा जी ने खून के पदचिन्हों का उदाहरण देते हुए कहा- “जो कायर की तरह रणक्षेत्र छोड़कर भाग जाए वह राजा नहीं हो सकता।” इसलिए, हें राजन! मैं अपना परम शिष्य आपके छोटे बेटे को मानता हूँ। अब राज्य का उत्तराधिकारी चुनना आपके हाथ में हैं। वहाँ बैठे सभी दरबारी और मंत्रियों ने राजा के छोटे बेटे को उत्तराधिकारी बनाने के लिए अपने-अपने मत प्रकट किए। इस तरह राजा अपने राज्य का उत्तराधिकारी अपने छोटे बेटे को चुनता हैं।

नैतिक सीख:

प्रेम, दया, नियम कानून के दायरे में रहते हुए इंसान, लोगों के ह्रदय में वास करने लगता हैं।

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