1. भोला कबूतर और स्वार्थी कौवा
एक घर के आँगन में एक चतुर कौवा और एक भोलू कबूतर रहा करते थे। कबूतर भोला-भाला और सीधा-साधा था। जबकि, कौवा बहुत चालाक था। कौवे का स्वभाव भी खराब था। वह स्वार्थी और अहंकारी था तथा कभी किसी के सुख-दुख में साथ नहीं देता था। जबकि, इसके विपरीत कबूतर दयालु, परोपकारी और सदा दूसरों के सुख-दुख में साथ देता था।
एक दिन कबूतर को खाने के लिए कुछ नहीं मिला। वह भूखा ही इधर-उधर देखता रहा। तभी, कौवा एक रोटी लेकर आया तो कबूतर ने सोचा कि संभवतः थोड़ी बहुत रोटी उसको दे देगा। लेकिन, कौवे ने तो कबूतर से पूछा तक नहीं और चुपचाप पूरी रोटी खा गया। थोड़े दिनों बाद एक दिन कौवे को खाने के लिए कुछ नहीं मिला और कबूतर को रोटी मिल गई थी।
भूख से व्याकुल कौवे ने जैसे ही कबूतर के मुँह में रोटी देखी तो वह झट से कबूतर के पास आकर बोला- मित्र, आज मेरी तबीयत बहुत खराब हो रही है। अब तो उठने बैठने की हिम्मत भी नहीं हो रही हैं। ऐसे लगता हैं, जैसे मेरे पेट में कोई बार-बार चिल्ला रहा हैं। “मैं कहीं से दवाई लाकर तुम्हें देता हूँ, कबूतर ने बड़ी सहजता से कहा। नहीं, नहीं मित्र दवाई की कोई आवश्यकता नहीं है।
मेरी पीड़ा तो रोटी से दूर हो सकती है। लेकिन, तुम्हारे पास तो एक ही रोटी है, इसे तुम खाओगे या मैं? कौवे ने बड़ी चतुराई से कहा। भोला-भाला कबूतर कौए की बातों में आ गया। अगले ही पल वह अपनी रोटी उसे देते हुए बोला- लो मित्र, पहले तुम खा लो यह रोटी ताकि तुम्हारी पीड़ा दूर हो सके। मैं तो भूख को सहन कर लूंगा।
कौवा तो बस इसी ताक में था। उसने झट से कबूतर की रोटी को पकड़ लिया और मन ही मन बहुत खुश होने लगा कि उसने कितनी चालाकी से कबूतर की रोटी प्राप्त कर ली। उसी पेड़ के नीचे बैठा कुत्ता यह सब देख रहा था जो पहले से रोटी पाने की फिराक में था। लेकिन दोनों पक्षियों की नजरों में वह नहीं आया था। जैसे ही कौए ने रोटी पकड़ी उसने उछलकर कौवे को धर दबोचा।
कौवा चिल्लाता ही रह गया- “अरे मैंने चालाकी से यह रोटी प्राप्त की है इसे ले लो मुझे छोड़ ….”। लेकिन अब क्या दूसरे के भोलेपन का नाजायज फायदा उठाने की सजा से वह बच नहीं सका। कबूतर यह सोचते हुए उड़ गया कि ‘ईश्वर जो भी करता है अच्छा ही करता है, यदि मेरी रोटी मेरे पास होती तो आज मृत्यु निश्चित थी। लेकिन, कौवे ने मेरे साथ धोखा किया इसलिए यह सजा उसे मिल गई।
नैतिक शिक्षा:
स्वार्थी लोग बहुत जल्द अपने आपको मुश्किलों में फंसा पाते हैं।
2. लालची राजा और हंस

बात बहुत पुरानी हैं। विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के महल में एक बहुत सुंदर बाग था। उस बाग में एक स्वच्छ नीले पानी वाला सरोवर था। उस सरोवर में सुंदर-सुंदर हंस रहते थे। वे हंस राजा को बारी-बारी से प्रतिदिन एक सुनहरा पंख देते थे। जिसे राजा अपनी तिजोरी में रख लेता था। एक बार उसी सरोवर में किसी जंगल से भटकता हुआ एक बड़ा हंस आया। जिसे उस सरोवर में रह रहे हंसो ने उतरने नहीं दिया।
सभी हंसो ने उस बड़े हंस से कहा कि हम तुम्हें यहां उतरने नहीं देंगे। हम लोग यहाँ रहने की कीमत चुकाते हैं। जिसके बदले में राजा को हम लोग बारी-बारी से प्रतिदिन रोज एक पंख भेंट करते हैं। इसलिए, तुम्हें इस सरोवर में नहीं रहने देंगे। बड़े हंस ने मधुर आवाज में कहा- “आप लोग गुस्सा मत हो। मैं भी आप लोगों की तरह बारी आने पर अपने पंख राजा को दे दिया करूंगा।
लेकिन, सरोवर के सभी हंसो ने एक स्वर में कहा- नहीं, नहीं हम तुम्हें यहाँ नहीं रहने देंगे। वह हंस भी जबरदस्ती पर उतर आया। उसने कहा- अगर मैं इस सरोवर में नहीं रहूँगा तो कोई नहीं रहेगा। वह उड़ते हुए राजा कृष्णदेव राय के पास पहुँचा। ” महाराज की जय हो! आपके सरोवर में रहने वाले हंस मुझे रहने नहीं दे रहे है। मेरे वहाँ रहने से आपको ही फ़ायदा होगा।
महाराज, मेरा पंख आपके सरोवर में रहने वाले सभी हंसो से बड़ा हैं। हंस ने राजा को भड़काते हुए और कहा- ”महाराज! जब मैंने कहा कि मैं महाराज के पास जा रहा हूँ तो सभी हंसो ने कहा- “हम लोग किसी महाराज से नहीं डरते, वैसे भी वह डरपोक राजा हैं।” हंस की बातों को सुनते ही राजा गुस्से से लाल पीला हो गया।
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राजा ने तुरंत अपने सैनिकों को आदेश दिया कि सरोवर में रहने वाले सभी हंसो को मौत के घाट उतार दो। इन हंसो की इतनी हिम्मत की अपने राजा के बारे में ऐसी गंदी सोच रखे। अब मुझे उनके पंखों की भी जरूरत नहीं हैं। उन से बड़े हंस का पंख अब हमें मिलेगा। राजा के सिपाही तुरंत सरोवर की तरफ दौड़ पड़े।
सिपाहियों को अपने पास आते देख एक बूढ़े हंस ने कहा कि अब हमें जल्द से जल्द यहाँ से निकलना होगा। तभी सभी हंसो ने एक साथ किसी और तालाब के लिए उड़ान भर दी। दरबार वापस आकर सिपाहियों ने राजा को सरोवर के बारें में बताया कि अब वहाँ कोई हंस नहीं बचे हैं। राजा ने जंगल से आए हंस से कहा- जाओ अब तुम्हारे लिए पूरा सरोवर खाली हो गया।
जंगल से आया हंस बोला, “क्षमा करें, महाराज! आपका न्याय मुझे पसंद नहीं आया। इस तरह तो कल यदि मुझसे भी बड़ा कोई हंस आ गया तो आप मुझे भी मरवा डालेंगे।” यह कहकर उसने अपने पंख फड़फड़ाये और उड़ गया। लालच के कारण राजा को सब हंसो से हाथ धोना पड़ा।
नैतिक शिक्षा:
किसी के बहकावे में आकर गुस्से में लिया हुआ फैसला हानिकारक होता हैं।
3. राजा और जौहरी:

रामगढ़ में एक जौहरी रहता था। वह बड़ा गुणी और पारखी था। किसी चीज को एक बार देखकर ही उसका सही मूल्य बता देता था। इसी कारण उसके पास दूर-दूर से लोग अपनी वस्तु का वास्तविक मूल्य जानने के लिए आते रहते। धीरे-धीरे उसकी चर्चा वहाँ के राजा के कानों तक पहुँची। राजा ने जौहरी के गुण की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। राजा ने उसे अपने दरबार में उपस्थित होने का आदेश दिया।
राजा के आदेश पर जौहरी दरबार में उपस्थित हुआ। राजा ने जौहरी को बैठने के लिए आसन दिया। फिर अपने बगल में बैठे राजकुमार की ओर इशारा करके कहा- मैं यह जानना चाहता हूं कि मेरे राजकुमार की वास्तविक कीमत क्या है? राजा का आदेश सुनकर जौहरी बहुत असमंजस में पड़ गया। उसने कभी किसी व्यक्ति का मूल्यांकन नहीं किया था। वह मन ही मन सोचने लगा कि मैं राजकुमार की कीमत क्या बताऊँ? अगर कीमत कम हुई तो राजा नाराज होकर दंडित कर देगा। अधिक होने पर क्या होगा, कुछ पता नहीं।
जौहरी कुछ देर तक किसी सोच-विचार में पड़ा रहा। फिर बोला- राजन काम थोड़ा मुश्किल है। इसके लिए आप मुझे एक सप्ताह का समय दें। ठीक है, एक सप्ताह की मोहलत दी जा रही है। लेकिन, एक सप्ताह बाद आकर राजकुमार की सही कीमत नहीं बतायी तो लोगों को ठगने के आरोप में मृत्युदंड दिया जाएगा। राजा ने कहा।
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राजा की बात सुनकर जौहरी अपने घर वापस आया दो-तीन दिनों तक वह यही सोचता रहा कि आखिर राजकुमार की सही कीमत कैसे बताई जाए। जौहरी को परेशान देख उसके पिता ने उसकी परेशानी का कारण जानने के लिए पूछा- बेटा क्या बात है तुम परेशान नजर आ रहे हो। जौहरी ने अपनी समस्या बतायी तो उसके पिता बोले- तुम व्यर्थ में चिंता मत करो। राजकुमार का मूल्य बताना बहुत आसान है।
कल तुम राजा के सम्मुख जाकर कहना, “राजन! राजकुमार के माथे पर में जो रेखाएं भाग्य ने खींच दी है। उसकी कीमत तो कोई नहीं लगा सकता। परंतु यदि इन्हें हटा दिया जाये तो राजकुमार की सही कीमत दो कौड़ी की भी नहीं है।”
दूसरे दिन जौहरी दरबार में उपस्थित हुआ तो राजा ने पूछा- राजकुमार की सही कीमत मालूम कर ली। जौहरी ने बोला- हाँ, राजन! “सही कीमत क्या है? राजा ने पूछा। जौहरी ने राजकुमार के माथे पर अंगुलियाँ रखकर पिता द्वारा कही बातों को दोहरा दिया।
राजा सोचने लगा की जौहरी ने सही कहा है भाग्य की कीमत कोई नहीं लगा सकता, जिसके कारण मेरा बेटा राजकुमार बन सका। परंतु आम आदमी की तरह इसे काम करके जीना पड़े तो शायद ही दो कौड़ी ही कमा सके। जौहरी के मूल्यांकन से राजा बहुत खुश हुआ। उसके गुणों की प्रशंसा की और उसे ढेर सारा ईनाम देकर विदा किया।
नैतिक शिक्षा:
सोच समझकर और धैर्य के साथ लिया गया फैसला निर्णायक होता हैं।