तेनालीराम की कहानियां | Tenaliram Ki Kahani

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हम अपने बच्चे के दिमाग को विकसित करने के लिए उसे चतुर तेनालीराम की कहानियां सुना सकते हैं। तेनालीराम जोकि, विजयनगर राज्य के महाराज कृष्णदेव राय के दरबार में एक महान विद्वान पंडित और कवि थे। राजा हमेशा तेनालीराम की सलाह जरूर लेते थे। क्योंकि, तेनालीराम हाजिर जवाब थे। वह हर फैसला बहुत सोच समझकर करते थे। कहानीज़ोन के इस लेख में आज हम आपको चतुर तेनालीराम की 5 कहानियां सुनाने जा रहे हैं, जोकि इस प्रकार से हैं।

1. तेनालीराम की कहानी – माली और सुनहरा पौधा:

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एक बार की बात हैं, विजय नगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय किसी अन्य राज्य में गए हुए थे। वहाँ पर उन्होंने एक खूबसूरत फूल का पौधा देखा, जिसे वह अपने साथ ले आए। राजमहल पहुंचकर, राजा ने उस पौधे को माली को देते हुए कहा- “इस पौधे को मेरे विश्राम कक्ष के सामने उपवन में लगा दो, जिसे मैं खिड़की से देख सकूँ। इसके अलावा, राजा माली से कहता हैं कि “इस पौधे की जिम्मेदारी तुम्हें अपनी जान से ज्यादा बढ़कर करनी हैं। अगर गलती से इस पौधे को नुकसान हुआ तो मैं तुम्हें मृत्यु दंड दूंगा।”

माली उस पौधे की देखभाल बहुत अच्छे ढंग से करता था। जिसे राजा अपने विश्रामकक्ष से हमेशा देखा करता था। राजा कोई भी कार्य उस पौधे को देखे बिना नहीं करता था। अगर वह कही गया भी होता था तो उसका मन उसी पौधे पर ही लगा रहता था। एक दिन जब सुबह-सुबह महाराज की आँखें खुली और उन्हे वह पौधा वहाँ नहीं दिखाई दिया तो वह गुस्से से लाल-पीले हो गए।

राजा ने माली को बुलाकर उस पौधे के बारें में पूछा तो माली ने कहा कि, “वह पौधा मेरी बकरी खा गई।” माली की बात सुनकर राजा ने उसे मृत्यु दंड की सजा सुनाई। इस बात की खबर माली की पत्नी को जब पता चली। वह भागी-भागी राजा के पास आकर अपने पति के जीवन के लिए भीख मांगने लगी। लेकिन, राजा क्रोधित होने के कारण उस पर तरस नहीं खाता। माली की पत्नी दुखी मन से अपने घर को वापस लौट जाती हैं।

माली की मृत्यु दंड की खबर उसके पड़ोसी को पता चलती हैं। वह माली के घर जाकर सच्चाई जानने की कोशिश करता हैं। माली की पत्नी पूरी घटना को उससे बताती हैं। वह माली की पत्नी को सलाह देता हैं कि तुम्हारे पति को फांसी से सिर्फ एक व्यक्ति ही बचा सकता हैं, वह हैं ‘पंडित तेनालीराम’ तुम उनके पास जाकर मिल सकती हो।

माली की पत्नी पंडित तेनालीराम के पास गई और अपने पति को बचाने का आग्रह किया। तेनालीराम उसको विश्वास दिलाते हुए एक काम करने के लिए कहता हैं। अगले दिन माली की पत्नी ने अपनी बकरी को बीच चौराहे पर डंडे से पीट-पीट कर अधमरा कर देती हैं। उसे ऐसा करते देख वहाँ पर भीड़ इकट्ठा हो जाती हैं। इस बात की खबर राजा तक भी पहुँच जाती हैं कि एक औरत ने एक बेजुबान जानवर को मार-मार कर अधमरा कर दिया।

राजा माली की पत्नी से पूछता हैं कि, तुमने इस जानवर को इतनी बुरी तरह से क्यों मारा? वह कहती हैं महाराज! ‘यही बकरी हैं, जिसके कारण मेरा घर उजड़ने वाला हैं, मेरे बच्चे अनाथ होने वाले हैं और मैं विधवा होने वाली हूँ। राजा ने उस औरत से कहा- “तुम क्या कहना चाहती हो साफ-साफ बताओ।” माली की पत्नी ने कहा महाराज! यही वह बकरी हैं जो आपके सुनहरे फूल को खा गई जिसकी सजा मेरे पति को मिल रही हैं।

जबकी, सजा इस बकरी को मिलनी चाहिए थी। इसलिए मैं इस बकरी को पीट रही हूँ। जिससे इस तरह की हरकत आगे से कोई और बकरी न करें। उस औरत की पूरी बात राजा की समझ में आ गई। उसने भी सोचा कि बकरी की सजा माली को क्यों दी जाए। वह अपने सिपाहियों से माली को छोड़ने के लिए कहता हैं।

इसके आलवा राजा माली की पत्नी से पूछता हैं कि ‘तुम्हारे पति को बचाने का जतन किसने बताया था।’ माली की पत्नी ने कहा महाराज! आपके सजा सुनाने के बाद जब मेरी फ़रियाद दरबार में नहीं सुनी गई तो, मैंने पंडित तेनालीराम से सलाह लिया उन्होंने मुझे यह मार्ग बताया था। राजा एक बार फिर तेनालीराम की बुद्धिमानी पर खुश हुआ और उसे कुछ सोने के सिक्के दिए।

2. तेनालीराम की कहानी – राजा और भिखारी:

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सर्दियों का मौसम था, विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय अपने दरबारियों और मंत्रियों के साथ राज्य भ्रमण पर निकले थे। ठंड अधिक थी जिसके कारण सभी लोग अच्छे गर्म उनी कपड़े पहने हुए थे। कुछ दूर आगे चलने के बाद राजा को एक बुजुर्ग भिखारी दिखाई दिया, जिसके हाथ में एक कटोरा था। वह ठंड के कारण काँप रहा था। उसे देख राजा का दिल पसीज गया। वह उदारता दिखाते हुए अपनी शॉल भिखारी को दे देता हैं।

राजा के दरबारी तथा अन्य मंत्री जोर-जोर से उनकी जय-जय कार करने लगे। लेकिन, उनके साथ में चल रहे तेनालीराम ने राजा की जय-जय कार नहीं की। तेनालीराम को चुप देख एक राजपुरोहित ने कहा- “केवल तुम ही चुप हो बाकी सभी जय-जयकार कर रहे है, क्या तुम राजा के द्वारा दिखाई गई दया पर खुश नहीं हो? राजपुरोहित के कहने पर भी तेनालीराम ने राजा के बारे में कुछ नहीं कहा।

राजपुरोहित तेनालीराम की चुप्पी के बारे में राजा कृष्णदेव राय को बढ़ा-चढ़ा कर भड़काता रहा। दरबार पहुँचकर राजा ने तेनालीराम की चुप्पी के बारें में जानने की कोशिश की। लेकिन, तेनालीराम फिर भी कुछ नहीं बोल। “राजा ने गुस्से में आकर उसे अपने राज्य से बाहर निकल जाने के लिए कहता हैं। वह तेनालीराम से कहता हैं, राज्य से बहार जाते हुए कोई एक समान तुम अपने साथ ले जा सकते हो।”

तेनालीराम ने राजा से बहुत ही मधुर आवाज में कहा, महाराज! मुझे कल आपके द्वारा भिखारी को दिया हुआ शॉल चाहिए। राजा तेनालीराम की बातों को सुनकर कहता हैं, “तेनाली, तुम मूर्खों जैसी बातें क्यों कर रहे हो, तुम्हारा दिमाग तो ठीक हैं न, तुम ही बताओ मैं कैसे उसे अपना दिया हुआ शॉल वापस मांगू। चूंकि शॉल का मामला तेनालीराम के दंड से जुड़ा था। इसलिए, राजा ने अपने सिपाहियों को भेजकर भिखारी को शॉल के साथ लेकर आने का आदेश दिया।

राजा भिखारी से कहते हैं, कल जो शॉल मैंने तुम्हें दिया था, तुम मुझे वापस कर दो, मैं तुम्हें उसके अलाव कुछ बहुमूल्य वस्त्र दूंगा। राजा की बात को सुनकर भिखारी टाल-मटोल करने लगा। राजा उसे फटकार लगाते हुए कहते हैं। “तुम जो भी कहना चाहते हो साफ-साफ कहो। भिखारी ने जवाब दिया महाराज! “मैं कई दिनों से भूखा था। इसलिए, कल आपके द्वारा दिए गए शॉल को बेचकर मैंने भरपेट भोजन कर लिया।”

उसकी बातों को सुनकर राजा क्रोधित हो उठे। भिखारी को अपने दरबार से निकल जाने के लिए कहा। भिखारी के दरबार से बाहर जाने के बाद राजा तेनालीराम से साफ-साफ पूंछता हैं कि तुम कल खुश क्यों नहीं थे?

क्षमा करें महाराज, कल भिखारी को शॉल की नहीं बल्कि उसके पेट भरने के लिए भोजन की जरूरत थी, तेनालीराम ने कहा। महाराज मैं भिखारी को शॉल देने से आपको मना नहीं कर सकता था। तेनालीराम की बात राजा को अच्छी लगी। इसलिए, राजा अपने मंत्रियों को आदेश देता हैं कि इस तरह की व्यवस्था करो को अपने राज्य में किसी भी व्यक्ति को भीख मांगने की जरूरत न पड़ें।

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3. तेनालीराम की कहानी – उबासी की सजा:

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एक बार महाराज कृष्णदेव राय अपनी पत्नी महारानी तिरुमाला का मन बहलने के लिए उन्हें एक हास्यप्रद मनोरंजक कहानी सुना रहे थे। महारानी को कहानी सुनते-सुनते अचानक उबासी आ गई। जिसके कारण राजा का मन खिन्न हो जाता हैं और वह उठकर चले जाते हैं। इस तरह से राजा को अपनी महारानी से बात किए हुए कई दिन बीत गए। महारानी राजा से कई बार माफी भी मांग चुकी थी। लेकिन, राजा महारानी को माँफ नहीं कर रहे थे।

एक दिन महारानी तिरुमाला, पंडित तेनालीराम को संदेश भिजवाती हैं कि “महारानी उनसे तत्काल मिलना चाहती हैं। संदेश पाकर तेनालीराम महारानी से मिलने उनके पास जाता हैं। महारानी तेनालीराम को राजा और अपने बीच की अनबन के बारें में बताती हैं। तेनालीराम महारानी को विश्वास दिलाते हैं कि बहुत जल्द राजा आपसे माँफी मांगेंगे, यह कहकर वह चला जाता हैं।”

तेनालीराम ने दरबार में पहुंचकर देखा कि राजा इस साल राज्य में दिए जाने वाले चावल की अच्छी किस्म का चुनाव कर रहे थे। उनके सामने कई तरह के चावल के बीज रखे हुए थे। राजा चाहता था कि इस मौसम में अच्छी किस्म के चावल का बीज लोगों को दिया जाए, जिससे लोगों के खेतों में अच्छी पैदावारी हो सके। जिसके कारण राज्य की आय भी बढ़ सके।

राजा तेनालीराम को अच्छे किस्म के चावल के बीज की परख करने के लिए कहता हैं। वह कुर्सी से उठकर राजा के सामने रखे चावल के बीजों में से एक मुट्ठी भरकर बीज लेते हुए कहता हैं, “महाराज! यह बीज हमारे राज्य के खेतों के लिए अच्छा हो सकता हैं। जिसे लगाने से फसल की पैदावार अधिक भी होगी।

लेकिन, एक सबसे बड़ी समस्या यह हैं कि इस बीज को लगाने वाले, सींचने वाले और काटने वाले को कभी उबासी न आई हो और न कभी आए। तेनालीराम की बातों को सुनकर राजा उसके ऊपर भड़क जाता हैं। वह कहता हैं कि संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं हैं जिसे उबासी न आई हो। तभी तेनालीराम कहता हैं- “महाराज मुझे क्षमा करें! मैं महल जाकर महारानी को बता देता हूँ की उबासी आना अपराध नहीं हैं। यह सबको आती हैं।

तेनालीराम की बात को सुनकर राजा को सारी कहानी समझ आ गई। वह तेनालीराम को कहता हैं कि तुम रहने दो, मैं स्वयं जाकर यह बात महारानी को बता दूंगा। राजा महारानी के पास जाकर जोर से उबासी लेते हुए कहते है कि “उबासी लेना अपराध नहीं हैं।” इस तरह दोनों के बीच की शिकायतें दूर हो जाती हैं।

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4. तेनालीराम की कहानी – घड़े में मुंह:

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तेनालीराम की बुद्धिमानी से राजा कृष्णदेव राय के दरबार के सभी मंत्री उससे जलते थे। क्योंकि, राजा हमेशा तेनालीराम से ही कोई राय सलाह लिया करते थे। एक दिन तेनालीराम को दरबार में पहुँचने में देरी हो गई। उसके पहले सभी मंत्रियों ने राजा को तेनालीराम के खिलाफ बारी-बारी से भड़का दिया। दरबार लगा हुआ था सभी मंत्री अपनी-अपनी कुर्सी पर बैठे थे।

कुछ समय बाद तेनालीराम भी दरबार में पहुंचे। वह राजा को प्रमाण करके अपनी सीट पर बैठने वाला ही था कि राजा गुस्से से भरी आवाज में तेनालीराम को फटकार लगाते हुए कहता हैं। “तेनाली तुम इस राज्यसभा से निकल जाओ, कल से तुम मुझे अपनी शक्ल मत दिखाना”। अगले दिन दरबार फिर लगा। लेकिन, चुँगलखोर दरबारी राजा से कहने लगे, “महाराज आपके मना करने के बावजूद तेनालीराम दरबार में हाजिर हैं।”

राजा मंत्रियों की बात सुनकर क्रोधित हो जाते हैं। और देखते हैं कि तेनालीराम ने कुर्सी पर बैठकर अपने सिर में एक घड़ा डाल रखा हैं। जिससे उसका मुँह नहीं दिख रहा हैं। उसकी हरकते देख राजा कहता हैं- “तेनालीराम तुमने मेरे आज्ञा का पालन नहीं किया। जिसके लिए तुम्हें कोड़े खाने पड़ेंगे।”

राजा की बात सुनकर तेनालीराम ने कहा, “महाराज! कल आपने मुझे हुक्म दिया था कि, “तुम मुझे अपना मुंह मत दिखाना।” क्या आपको मेरा मुँह दिख रहा हैं। तेनालीराम और मजाकिया अंदाज में कहता हैं, “हे भगवान कही यह कुम्हार का मटका फूटा हुआ तो नहीं हैं। नहीं तो मुझे कोड़े खाने पड़ेंगे।”

तेनालीराम की बातों को सुनते ही राजा की हंसी छूट गई। इस तरह से चतुर तेनालीराम को राजा ने कहा कि “चलो अब नाटक बंद करके राज्य के कार्यभार को संभालो”। इस तरह से तेनालीराम से जलने वाले मंत्रियों को एक बार फिर मुँह की खानी पड़ी।

5. तेनालीराम की कहानी – राजा और किसान:

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एक बार विजय नगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के अन्य मंत्री राजा से मिलकर कहते हैं, महाराज! कभी राज्य भ्रमण के लिए हम लोगों को भी अपने साथ ले चले। आप हमेशा तेनालीराम को ही अपने साथ ले जाते हैं। राजा ने अपने मंत्रियों को विश्वास दिलाया कि वह बहुत जल्द उन लोगों को भी अपने साथ राज्य भ्रमण पर ले जाएंगे।

एक दिन राजा अपना भेष बदलकर अपने राज्य के लोगों की प्रतिक्रिया जानने के लिए कुछ मंत्रियों के साथ साधु का रूप बनाकर चल पड़ें। राजा घूमते-घूमते एक गाँव के किनारे खेत में पहुंचे। जहाँ पर कुछ किसान काम कर रहे थे। राजा ने किसान से पानी मांगकर पिया और कहने लगा क्या हालचाल हैं। आपके गाँव में किसी प्रकार की कोई दिक्कत तो नहीं हैं।

राजा और पूछता हैं, आपके राज्य के राजा कैसे हैं? उसकी बात को सुनते ही एक बुजुर्ग व्यक्ति अपने गन्ने के खेत में गया और मोटा सा गन्ना एक ही झटके में उखाड़ लाया। वह उस गन्ने को राजा को दिखते हुए कहता हैं, “हमारे राज्य के राजा इस गन्ने की तरह हैं। उसकी बातों को सुनकर राजा हड़बड़ा गया और उसे कुछ समझ नहीं आया कि यह बुजुर्ग व्यक्ति गन्ने के माध्यम से राजा को क्या समझाना चाहता हैं।”

राजा ने अपने साथी से पूँछा, तो उसने एक दूसरे से विचार विमर्श करने के बाद कहा- “महाराज! इस व्यक्ति के कहने का अर्थ हैं कि इस राज्य के राजा गन्ने की तरह कमजोर हैं। जिसे चाहे जो भी एक झटके में उखाड़कर फेंक दे। अपने साथी का जवाब पाकर राजा क्रोध से लाल पीला हो गया।

तभी राजा ने अपनी कड़क आवाज में उस व्यक्ति को कहा- “तुम मुझे जानते नहीं हो, मैं कौन हूँ? अगर मुझे गुस्सा आ गया तो मैं तुम्हारा तहस-नहस कर सकता हूँ।” राजा की कड़क आवाज सुनकर दूसरे खेत में काम कर रहा एक अन्य बूढ़ा व्यक्ति राजा के पास आया और राजा से बड़ी नम्र आवाज में कहा, “महाराज! हमारे पड़ोसी का कहना हैं कि हमारे राज्य के राजा गन्ने के समान कोमल और रसीले हैं। लेकिन, वें दुश्मनों के लिए कठोर भी हैं।

तभी वह बूढ़ा व्यक्ति अपनी दाढ़ी मूँछ निकालते हुए महाराज को प्रणाम करता हैं। तेनालीराम को देख राजा ने कहा तेनाली तुम यहाँ भी मेरा पीछा नहीं छोड़े। तेनालीराम ने कहा, महाराज आज तो आपसे अनर्थ ही हो जाता। जिसके कारण आप गुस्से में आकर एक निर्दोष किसान को मौत के घाट उतार देते। इस तरह राजा तेनालीराम की बुद्धिमानी की वाह-वही करने लगा।

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