1. साधु और लकड़हारे की कहानी – Story of sages and the woodcutter:
एक समय की बात ईश्वरपुर नामक गाँव में एक लकड़हारा रहता था। जोकि, बहुत गरीब था, किसी तरह से उसका और उसके परिवार का जीवन लकड़ियाँ बेचकर व्यतीत होता था। लकड़हारा प्रतिदिन लकड़ियाँ काटता और एकठ्ठा करता। दूसरे दिन उसे बाजार जाकर बेच आता, जिससे उसे कुछ पैसे मिल जाते थे। उन्ही पैसों से उसके घर का गुजारा बहुत मुश्किल से चलता था।
अचानक से एक रात लकड़हारे के घर पर चार साधु महात्मा आए। जिन्हें देख लकड़हारा आश्चर्यचकित हो उठा। सभी साधुओं ने एक-एक करके अपना नाम लकड़हारे को बताया। पहले साधु ने बोला मेरा नाम धन हैं, दूसरे ने बोला मेरा नाम वैभव हैं, तीसरे ने बोला मेरा नाम सफलता हैं, और चौथे ने बोला मेरा नाम श्रम हैं। आज रात हम लोग आप के घर पर भोजन करना चाहते हैं।

लकड़हारे ने साधु महात्मा से बोला महाराज हम बहुत गरीब हैं। हमारे पास आप सभी को खिलाने का पर्याप्त भोजन नहीं हो पाएगा। आप बताओ हमें क्या करना चाहिए, साधुओ ने कहा ठीक हैं, आपके के पास हम सभी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन नहीं हैं तो कोई बात नहीं, हम चारों में से कोई एक आज आपके घर पर भोजन करेगा। लेकिन ध्यान रहें, हम चारों में से जिसे आप अपने घर पर आमंत्रित करोगे वह अपने नाम जैसा प्रभाव लेकर आपके घर में आएगा। आप हमें बताओ सबसे पहले किसको आमंत्रित करना चाहते हो।
लकड़हारा चिंता में पड़ गया और सोचने लगा पहले किसको आमंत्रित करें? क्योंकि धन, वैभव, सफलता और श्रम चारों ही हर किसी के लिए जरूरी होता हैं। लकड़हारा कुछ समय के लिए अपने घर में गया और अपने पत्नी से पूछा, दोनों ने आपस में कुछ देर विचार विमर्श करने के बाद निश्चय किया कि जिसकी वजह से हमारा घर चलता हैं, उस साधु को हमें पहले बुलाना चाहिए।
फिर लकड़हारा अपने घर से बाहर आया और सबसे पहले श्रम आमंत्रित किया। जैसे ही श्रम ने घर के अंदर अपने कदम रखे, बाकी के तीनों साधु धन, वैभव, और सफलता भी अंदर आने लगे। यह सब देख, लकड़हारे ने साधुओं से पूँछ कि महाराज मै कुछ समझा नहीं, अभी तो आपने कहा था कि कोई एक भोजन के लिए आएगा। फिर तीनों साधुओं ने लकड़हारे को समझाया कि जिस घर में श्रम रहता हैं, जिस घर में मेहनत और लगन होती हैं। वहाँ पर हम तीनों धन, वैभव और सफलता अपने आप आ जाते हैं।
नैतिक शिक्षा: श्रम के द्वारा आप धन, वैभव और सफलता के अलावा और बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं। इसलिए, हमें श्रम, मेहनत से पीछे नहीं भागना चाहिए।
2. कुम्हार और उसकी गुस्सैल पत्नी की कहानी – The story of the potter and his angry wife:

किसी गाँव में एक कुम्हार और उसकी पत्नी रहते थे। कुम्हार अपना घर चलाने के लिए मिट्टी के बर्तन बनाता और बेचता था। जिससे उसके परिवार का जीवन यापन होता था। कुम्हार बहुत ही नेक, शांत और सहनशील इंसान था। जबकि, कुम्हार की पत्नी बहुत गुस्सैल थी। उसे हर किसी बात में गुस्सा आ जाता था। वह समझ नहीं पाती थी की उसे इतना गुस्सा क्यों आता हैं। बाद में उसे महसूस होता था कि उसने अपना कितना नुकसान कर लिया हैं। कितने लोगों से अपने रिश्ते खराब कर लिए हैं।
उसकी इस आदत को कुम्हार बहुत अच्छे से जनता था। एक बार कुम्हार घड़ा बना रहा था, तभी कुम्हार की पत्नी,अपने पति से बोली,”देखो मुझे हर बात-बात में गुस्सा आ जाता हैं”। जिसे आप समझ जाते हो, लेकिन कोई और नहीं समझ सकता कि यह मेरी बीमारी हैं। यही वजह हैं कि आज मेरी पड़ोस की औरत से झगड़ा हो गया। आप ही कुछ करो। मेरे इस गुस्से का इलाज कराओ।
अगली सुबह कुम्हार अपनी पत्नी को एक बहुत ही प्रसिद्ध वैद के पास लेकर गया। वैद ने कुम्हार की पत्नी की बातें बहुत ध्यान से सुनी। उसकी बातों को सुनकर वैद कुछ देर शांत होकर बैठ गया और सोचने लगा। तभी कुम्हार की पत्नी ने वैद से पूँछ,”क्या यह मेरी बीमारी ठीक नहीं हो सकती”? आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हो। वैद ने बोला ठीक इसी प्रकार की बीमारी मुझे भी थी। जिसकी दवा मैं कही से लाया था।
मैं उसी दवा के बारें में सोच रहा था कि वह दवा कहां रखी हैं। फिर वैद उठकर अपने घर में जाता हैं और कुछ समय बाद दवा की पुड़िया के साथ घर से बाहर निकलता हैं। कुम्हार की पत्नी को दवा देते हुए बोलता हैं कि यह कुछ दवाएं हैं। जिसे आपको जब भी गुस्सा आए इस दवा को मुँह में रखकर चूसना हैं, ध्यान रहे इसे चबाना नहीं हैं, सिर्फ चूसते रहना हैं।
एक सप्ताह बाद कुम्हार और उसकी पत्नी वैद के पास फिर से आए। कुम्हार की पत्नी वैद के चरणों में पड़ गई। वैद ने पूछा,”क्या हुआ आप ऐसा क्यों कर रही हो, मुझे विस्तार से बताओ”। कुम्हार की पत्नी ने बोला आप की दावा ने तो कमाल कर दिया जिसकी वजह से हमारे कई सारे रिश्ते टूटते-टूटते बच गए। आज मैं अपने पति के साथ झगड़ रही थी तभी मेरी सासू माँ आ गई। जैसे ही मैंने उनको देखा आपकी दावा खा ली और मैं बिल्कुल शांत हो गई।
इस प्रकार से मेरे रिश्ते बिगड़ते-बिगड़ते बच गए। ठीक यही घटना मेरे पड़ोसी के साथ हुई, मुझे गुस्सा आ ही रहा था कि मैंने वह दवा खाई और मेरी लड़ाई होते-होते रह गई। अब जब भी मुझे गुस्सा आता हैं या कोई मुझ पर गुस्सा करता हैं तो मैं यह गोलियां खा लेती हूँ, जिसका मुझे बहुत लाभ मिल रहा हैँ। वैद ने हँसते हुए कुम्हार की पत्नी से कहा, यह दवा नहीं हैं, यह तो सिर्फ मीठी गोलियां हैं।
आपके रिश्ते ठीक हो रहे हैं जिसका कारण ये मीठी गोलियां नहीं हैं। समाधान आपका शांत रहना हैं, आपकों जब भी गुस्सा आता हैं उस समय आप शांत हो जाए, गुस्से में कोई निर्णय न लें, अपने आपको शांत होकर सोचने दें कि क्या सही हैं और क्या गलत हैं।
नैतिक सीख: गुस्से में अपने आप को शांत रखे, गुस्से में लिया गया निर्णय हमेशा नुकसान पहुंचाता हैं।
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3. राजा और मूर्तिकार की कहानी – Story of the king and the sculptor:

एक बार की बार हैं, उधमपुर नामक राज्य में एक राजा रहता था। जोकि, अपनी रानी को बहुत ज्यादा प्यार करता था। राजा अपनी रानी के बिना एक पल भी नहीं रह पता था। धीरे-धीरे समय बीतता गया राजा रानी दोनों बूढ़े हो गए। लेकिन उन दोनों के बीच प्यार और बढ़ता गया।कुछ समय बाद रानी की तबीयत खराब रहने लगी। राजा अपनी रानी का इलाज बड़े से बड़े वैद से करा रहा था। लेकिन, बीमारी ठीक नहीं हो रही थी। जिसके कारण एक दिन रानी की मृत्यु हो जाती हैं। उस दिन से राजा बहुत दुखी रहने लगा।
राजा के अधिकारियों ने सोचा क्यों न एक रानी की प्रतिमा बनवाकर दरबार में लगा दी जाए जिसे देखकर राजा अपने गम को थोड़ा बहुत भुला सकें। राज्य की सबसे बड़ी नदी के किनारे से एक बड़ा और शानदार पत्थर मँगवाया गया। इसके साथ ही पूरे राज्य में यह घोषणा कर दी गई की इस पत्थर से रानी की प्रतिमा जो भी बनाएगा उसे सौ स्वर्ण मुद्राएं दी जाएंगी। राजा के दरबार में बड़े-बड़े मूर्तिकार आए और एक-एक करके किसी ने एक बार कोशिश की किसी ने दो बार कोशिश की।
लेकिन, उस पत्थर को कोई काट नहीं सका। उस राज्य के सबसे बड़े मूर्तिकार को बुलाया गया। उसने पत्थर देखा और राजा से कहा,”मैं यह प्रतिमा बना दूंगा। मूर्तिकार ने अपने हथौड़े से पत्थर को लगभग सौ बार तोड़ने की कोशिश की लेकिन वह पत्थर नहीं टूटा। उस मूर्तिकार ने कहा कि इस पत्थर से मूर्ति नहीं बन पाएगी, यह बोलते हुए पत्थर को वपास कर दिया। राज्य के सभी लोग निराश हो गए। क्योंकि, वह राज्य का सबसे बड़ा मूर्तिकार था।
सभी सोचने लगे कि इस मूर्तिकार से यह मूर्ति नहीं बन पाई तो कोई और नहीं बना सकता। तभी वही पर बैठा एक छोटा मूर्तिकार राजा के सामने आया और उसने राजा से कहा,” महाराज एक प्रयास मैं भी करना चाहता हूँ, अगर आप की इजाजत हो तो”। राजा ने सोचा कि चलो इसको भी एक मौका दे देते हैं। उस मूर्तिकार ने जैसे ही उस प्रतिमा पर अपनी पहली हथौड़ी मारी पत्थर टूट गया और वह धीरे-धीरे रानी की प्रतिमा बनाने लगा। राजा ने सोचा, काश! राज्य के सबसे बड़े मूर्तिकार ने हार न मानी होती, एक और कोशिश की होती।
लेकिन अगर मूर्तिकार के नजरिए से सोचे तो क्या प्रयास का कोई अंत होना चाहिए या फिर अंतहीन प्रयास करते रहना चाहिए। यह बहुत ही विचारणीय विषय हैं जिस पर अपना-अपना अलग अलग मत हैं। आपका क्या मत हैं, हमें कमेन्ट बॉक्स में जरूर बताए।
नैतिक शिक्षा: हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए, हमे यही सोच रखनी चाहिए कि एक और प्रयास करके देखते हैं।
4. विश्वाश का फल – Vishwas ka Phal:

एक समय की बात हैं एक बहुत ही धनवान सेठ रात को ढाई बजे अपने कमरे में टहल रहा था। उसे नीद नहीं आ रही थी और वह बेचैन हुए जा रहा था। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसके साथ क्या हो रहा हैं। रात बहुत ज्यादा हो चुकी थी वह किसी और को जगाना नहीं चाह रहा था। उसने सोचा चलो मंदिर घूम आते हैं, थोड़ा मन भी बहल जाएगा। उसने चुपचाप अपनी गाड़ी निकाली और घर से थोड़ी दूर एक मंदिर के लिए निकल गया।
जब वह मंदिर की चौखट पर पहुंचा तो देखता की वहाँ पर एक आदमी बहुत परेशान हालत में बैठा था। जिसके कपड़े फटे थे, पैर में चप्पल नहीं थी। वह आदमी बस मंदिर की मूर्ति को देखे जा रहा था। सेठ ने कहा की रात के ढाई बज रहे हैं तुम यहाँ क्या कर रहे हो। उस आदमी ने कहा मेरी बीबी बहुत बीमार हैं और वह अस्पताल में भर्ती हैं। मेरे पास पैसे भी नहीं हैं, मुझे समझ में नहीं आ रहा हैं कि मैं क्या करूँ।
उस आदमी की बात सुन सेठ ने अपनी जेब से कुछ पैसे निकाले और उसे देते हुए यह कहा,” ये पैसे लो और तुम सबसे पहले अपनी बीबी का इलाज कराओ और उसने अपना पता और फोन नंबर भी दिया। गरीब आदमी ने सेठ का धन्यवाद किया और यह कहते हुए वहाँ से जाने लगा। हालाँकि, आपने मुझे अपना पता दिया हैं। लेकिन, मेरे पास उसका पता हैं, जिसने रात के ढाई बजे आपको मेरी मदद करने के लिए भेजा हैं। वाकई, ऐसी घटनाएं दिल को झकझोर देती हैं और हमें याद दिलाती हैं कि वह कही न कही हैं तो जरूर। जो हमें जूझते हुए देखकर मुस्कुरा रहा हैं।
नैतिक शिक्षा: परिस्थितियाँ कैसी भी हो हमें भगवान से विश्वास नहीं हटाना चाहिए।
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5. बिना विचारे लिया गया निर्णय – Decision taken without thinking:

एक बार की बात हैं एक गाँव में राहुल नाम का एक लड़का रहता था। जिसने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली थी, अब उसे शहर से नौकरी के लिए बुलावा आया। वह अपना सारा समान लेकर, ट्रेन से उस शहर के लिए चल दिया। अगली शाम जब वह स्टेशन पर उतरा तो उस स्टेशन पर सिर्फ एक ऑटो वाला खड़ा था। रामू उसके पास गया और अपनी कंपनी का पता दिखाते हुए पूछा कि यह पट कहाँ पर होगा।
ऑटो वाले ने बोला, बाबूजी यह जगह यहाँ से दस किलोमीटर दूर हैं, चलिए मैं आपको छोड़ देता हूँ। रामू ने आटो वाले से किराया पूछा उसने दो सौ रुपये बताया। रामू ने बोला मैं इतना नहीं दूंगा मैं आपको सिर्फ सौ रुपए दूंगा। ऑटो वाले ने मन कर दिया। रामू एक तरफ पैदल-पैदल जाने लगा। आटो वाले ने उसे दुबारा रोकने की कोशिश की, लेकिन रामू नहीं माना। अब रामू को चलते-चलते रात हो चुकी थी कुछ दूर और आगे जाने के बाद वही ऑटो वाला फिर से उसे मिला। राहुल अब बहुत परेशान हो चुका था। उसने बोला चलो कोई बात नहीं दो सौ रुपये ले लो और मुझे छोड़ दो।
ऑटो वाले ने बोला, अब चार सौ रुपये लगेंगे, राहुल झल्ला उठा और बोलने लगा कि आप मेरी मजबूरी का फायदा उठा रहे हो। उसके बाद आटो वाले ने कहा नहीं बाबूजी यह बात नहीं हैं, बात यह हैं कि जिस तरफ आपको जाना था आप ठीक उल्टी दिशा में आ गए हैं। अब हमें फिर से स्टेशन होते हुए आप के ऑफिस जाना पड़ेगा।
ऑटो वाले की बात सुनते ही राहुल ने चुपचाप अपना सामान उठाया और ऑटो में बैठ गया। आटो वाला उसे उसके सही पते पर छोड़ने के लिए चल पड़ा। कहा जाता हैं कि अपने पाँव पर चलना, मेहनत करना, हार न मानना यह सब सही हैं। लेकिन अगर दिशा गलत हो जाए तो वही मेहनत हमें गर्त में ले जाती हैं। हमें पीछे भी धकेल सकती हैं, इसलिए अपनी सही दिशा चुनिए ,मेहनत करिए और आगे बढ़िए।
नैतिक शिक्षा: हम मेहनत तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन क्या हमने कभी यह आकलन किया कि हम किस दिशा में मेहनत कर रहे हैं। हमें मेहनत के साथ-साथ सही दिशा का भी ध्यान रखना चाहिए।