परिचय:
अकबर और बीरबल की कहानी लोग चतुराई और बुद्धिमत्ता के लिए सुनना पसंद करते हैं। क्योंकि, बादशाह अकबर अक्सर किसी भी समस्या का निस्तारण करने के लिए बीरबल को सबसे पहले प्राथमिकता देते थे। बीरबल अकबर के दरबार में उनके नौ रत्नों में सबसे बुद्धिमान और हाजिर जबाब थे। वे किसी भी समस्या का हल बुद्धिमानी और चतुराई के बल पर आसानी से निकाल देते थे।
अकबर बीरबल के किस्से:
जब बादशाह अकबर किसी मुश्किल घड़ी में फँसते थे तो उन्हें उनके सबसे करीबी मंत्री बीरबल की याद आती थी। बीरबल ही उनके दरबार में एक ऐसे मंत्री थे जोकि, किसी भी समस्या का हल चुटकियों में निकाल देते थे। इसी कड़ी में आज हम आपको एक ऐसी कहानी के बारें में बताने जा रहे हैं। जिसमें एक आम के पेड़ पर दो लोग अपना हिस्सा जता रहे थे। जिसका बीरबल ने बहुत ही चतुराई भरे अंदाज में निस्तारण कर दिया।
एक पेड़ दो हिस्सेदार:
हरीनगर गाँव में सुरेश और महेश एक दूसरे के पड़ोसी थे। सुरेश बहुत ही सीधा-साधा और शांत रहने वाला व्यक्ति था। जबकि, महेश अपने आप को बहुत ज्ञानवान समझता था। दोनों के घर के बीचों-बीच एक आम का पेड़ था। हर सीजन में वह पेड़ आमों से लदा होता था। जिसका आम पूरा गाँव खाता था। दोनों को कभी परेशानी नहीं होती थी।
और किस्से देखें: अकबर बीरबल की मजेदार और प्रेरणादायक कहानियां हिंदी में
सुरेश और महेश का विवाद:
एक दिन महेश ने सुरेश को उस पेड़ से आम तोड़ने के लिए मना कर दिया। सुरेश ने महेश को समझाया इस पेड़ को मैंने दस सालों से खाद-पानी देकर इतना बड़ा किया, आज जब यह फल दे रहा हैं तो तुम्हें मुझे रोकने का अधिकार नहीं हैं। क्योंकि यह पेड़ मैंने लगाया हैं, जोकि मेरा हैं।
सुरेश की बातें सुनने के बाद महेश उससे झगड़े पर उतारू हो गया। सुरेश ने कहा- “तुम जो भी कहना चाहते हो राजा के दरबार में चलकर कहो वहीं हमारा तुम्हारा फैसला होगा।”
न्याय के लिए गुहार:

सुरेश और महेश बादशाह अकबर के दरबार में पहुँचे। सुरेश ने राजा के सामने कहा- “महाराज! मेरा पड़ोसी महेश मेरे लगाए आम के पेड़ को अपना बता रहा हैं और मुझे आम तोड़ने से मना कर रहा हैं, कृपया मुझे इंसाफ दिलाओ।” बादशाह अकबर महेश से कहते हैं तुम ऐसा क्यों कर रहे हो? महेश कहता हैं- “जहाँपनाह! यह पेड़ मेरे और सुरेश के घर के बीचों बीच मैंने लगाया था जोकि मेरा हैं। इसलिए, मैं सुरेश को आम तोड़ने से मना कर रहा हूँ।
दोनों की बातों को कई तरह से सुनने के बाद बादशाह अकबर ने बीरबल को इस झगड़े का निस्तारण करने के लिए कहा। बीरबल ने दोनों को यह कहते हुए घर जाने के लिए कहा कि अगले सप्ताह इसी दिन फिर से आना, तब हम अपना फैसला सुनाएंगे। तब तक तुम दोनों किसी भी प्रकार की लड़ाई नहीं करोगे।
बीरबल की चतुराई:
एक दिन बीरबल ने सुरेश और महेश के घर पर किसी अंजान व्यक्ति को भेजकर कहलवाया की आम की चोरी हो रही हैं। उस दिन सुरेश और महेश दोनों अपने-अपने खेतों में काम करने के लिए गए थे। वह व्यक्ति वही छिपकर दोनों के आने का इंतजार करने लगा।
जब महेश अपने घर पर आया तो उसकी पत्नी ने बताया की आम के पेड़ पर कोई आम चोरी करने चढ़ा था। महेश ने अपनी पत्नी से कहा- “खाना लाओ मुझे बहुत भूख लगी हैं फिर देखूँगा, वैसे भी यह पेड़ कौन सा अपना हैं।”
इन्हें भी पढ़ें: अकबर और बीरबल की कहानियाँ – Hindi stories Akbar Birbal
उधर सुरेश की पत्नी ने जब उसे आम चोरी होने की बात कही तो वह लाठी लेकर आम के पेड़ की तरफ भागा। उसकी पत्नी चिल्लाते हुए बोली- “खाना खाते हुए जाओ। लेकिन, सुरेश यह कहते हुए तेजी से आम के पेड़ की तरफ भागा कि उसकी दस साल की मेहनत बर्बाद हो जाएगी। अगले दिन दोनों बादशाह अकबर के दरबार में फिर से पहुँचे।
बीरबल का फैसला:
राजा के सामने बीरबल ने कहा जहाँपनाह! सारी फ़साद की जड़ आम का पेड़ हैं। क्यों न आम के पेड़ को ही काट दिया जाए। उसने महेश से पूछा आपकी क्या राय हैं। महेश ने बीरबल से कहा श्रीमान आपको जो उचित लगे मुझे आपका फैसला मंजूर हैं।
लेकिन, जब बीरबल ने सुरेश से पूछा तो सुरेश ने कहा श्रीमान बीरबल, आप चाहे तो इस पेड़ को महेश को दे दें। लेकिन कृपया करके इस पेड़ को न काटा जाए। जिसे मैंने बहुत ही मेहनत से पाल-पोष कर बड़ा किया है।
बादशाह अकबर का न्याय:
बीरबल ने बीते हुए कल की आम चोरी की घटना भी महाराज से बताते हुए कहा- जहाँपनाह! अब दूध का दूध और पानी अलग हो चुके हैं। अब आप अपना आखिरी फैसला सुना सकते हैं। बादशाह अकबर ने महेश को सुरेश के आम के पेड़ पर कब्जा जताने के जुर्म में दो महीने के लिए कारावास में डलवा दिया।