एक दिन एक व्यापारी बादशाह अकबर के दरबार में आया। उसने महाराज के सामने न्याय करने की मांग की। वह कहता हैं, महाराज! मैं एक व्यापारी हूँ। मेरा काम दूर-दराज़ के देशों से माल खरीदना और बेचना होता हैं। कुछ दिन पहले मैं किसी एक देश की यात्रा पर गया हुआ था।
वहाँ मुझे एक राजहंस पसंद आया। जोकि, देखने में बहुत सुंदर लग रहा था। उसके पंख सुनहरे थे। वह पक्षी इतना सुंदर था कि मैं उसकी सुन्दरता को अपनी जुबान से नहीं बता सकता। मैंने अपने देश में ऐसा राजहंस पहले कभी नहीं देखा था। उस राजहंस के लिए मैंने सौदागर को मुंह मांगा दाम देकर खरीदा था।
महाराज! मैंने सोचा था कि यह राजहंस हमारे राज्य के राजा को बहुत पसंद आएगा। मैं उस राजहंस को अपने घर ले आया। उसे एक पिंजरे में बंद करके अपने कमरे में टाँग दिया। जहाँ वह हमेशा टंगा रहता था। आज जब मैं वापस अपने घर गया तो मुझे पिंजरा खाली मिला। मुझे पूरा विश्वास हैं कि हंस को मेरे नौकरों ने मार डाला।
बादशाह अकबर ने उसके नौकरों को बुलाने का फरमान जारी किया। कुछ समय बाद दरबारी नौकरों को लेकर दरबार में पेश हुए। बादशाह अकबर ने नौकरों से अच्छे से पूछ-ताछ की। लेकिन, राजहंस के बारें में कुछ पता नहीं चल सका। राजा ने व्यापारी से कहा तुम्हारा नौकरों पर इल्जाम लगाना गलत हैं। इनमें से किसी व्यक्ति ने तुम्हारे राजहंस को नहीं मारा हैं। तुम्हें किसी और पर संदेह हो तो बताओ?
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राजा की बात सुनकर व्यापारी उदास हो गया। उसने बीरबल से कहा- “यह कैसा न्याय हैं, मैं पूरे आशा और विश्वास के साथ दरबार में आया था कि मुझे न्याय मिलेगा। लेकिन, मुझे यहाँ न्याय नहीं मिल रहा हैं। मैं कहाँ जाऊँ? बीरबल ने कहा तुम्हें न्याय इसी दरबार में मिलेगा। बीरबल ने व्यापारी के नौकरों को दुबारा से बुलवाया।
बीरबल नौकरों के चारों ओर चक्कर लगाते हुए कहता हैं- ”क्यों! तुम लोग पक्षी को मारकर खा गए और पंख पगड़ी में छिपा कर दरबार में आए हो। तुम्हारी चतुराई और हिम्मत को मैं सलाम करता हूँ। लेकिन, तुम इतनी देर तक जहाँपनाह के आँखों में धूल झोंकते रहे। तुम्हें अपनी जान की थोड़ी सी परवाह नहीं। बीरबल इतना बोलते हुए थोड़ा आगे बढ़ा ही था कि एक नौकर अपनी पगड़ी की तरफ हाथ फेरने लगा।”
बीरबल तुरंत पलटा और कहा महाराज! गुनहगार यही व्यक्ति हैं। इसने राजहंस को मार डाला। बादशाह अकबर ने अन्य नौकरों को घर जाने की अनुमति दे दी। लेकिन, संदेह वाला व्यक्ति अभी अपना गुनाह स्वीकार नहीं कर रहा था। जब बीरबल ने उसके ऊपर कोड़े बरसाने की बात कही तो उसने अपना गुनाह स्वीकार कर लिया।
बीरबल के न्याय को देख राजा बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने बीरबल की बुद्धि और चतुराई के लिए सौ सोने की मुद्राएं देने की घोषणा की।
नैतिक सीख:
सोच-विचार कर धैर्य के साथ लिया गया फैसला निर्णायक होता हैं।