बच्चों की रात की कहानियां : Children’s Night Stories

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1. एकता में बल होता हैं: कैदी रहीम और जेलर की कहानी

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एक समय की बात हैं, रहीम नाम का एक कैदी किसी कारणवश जेल में बंद था। जोकि, बहुत बुद्धिमान और ज्ञानवान था। जिसके कारण रहीम की बातें उस जेल के अधिकतर कैदी मानते थे। एक बार उस जेल के जेलर ने कहा हम आप सभी लोगों के बीच एक प्रतियोगिता आयोजित करेंगे। इस प्रतियोगिता में जो भी टीम विजयी होगी। हम उस टीम को एक दिन के लिए पिकनिक पर ले जाएंगे। इसके अलावा हम उस टीम के लोगों को पुरस्कृत भी करेंगे।

सभी कैदियों के अंदर उस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए बहुत अधिक उत्सुकता थी। अगले दिन सुबह जेलर सभी कैदियों को एक खुले मैदान में ले गए। उन कैदियों को दो ग्रुप में बाँट दिया और मैदान में रखे ईंट के चट्टानों को दिखाते हुए कहा, इस ईंट को इस स्थान से दूसरे स्थान पर जो भी टीम जल्दी पहुंचाएगी उसे हम विजयी घोषित करेंगे। दोनों टीमें अपनी-अपनी चट्टान से एक-एक ईंट ले जाने लगी। “ब” टीम ने बताए गए स्थान पर ईंट को सबसे पहले पहुंचा दिया।

दोनों टीमों को जेलर ने फिर से आदेश दिया कि अब इन सभी ईंटों को उसी पहले स्थान पर दुबारा से रखना हैं। कैदी बहुत थक चुके थे, वें चिंतित होकर एक दूसरे से बात करने लगे। क्योंकि, पहली बार में ही ईंट इतनी ज्यादा थी कि उसको एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना बहुत मुश्किल भरा काम था। लेकिन, दोनों टीमों ने एक बार फिर से जोश भरा और ईंटोंं को दूसरे छोर पर रख दिया और हताश होकर बैठ गए।

लेकिन, जेलर ने फिर से कहा अब इस ईंट को उसी पुराने स्थान पर फिर से रख दो, टीम “ब” ने तो तुरंत रखने से माना कर दिया। जबकि, “अ” टीम के रहीम नाम के व्यक्ति ने अपना दिमाग चलाया और सोचने लगा। हम कुछ तो गलती कर रहे हैं, जिसकी परीक्षा जेलर हमसे ले रहा हैं। रहीम ने अपना दिमाग लगाया और एक स्थान से दूसरे स्थान तक अपने ग्रुप के लोगों को लाइन से खड़ा कर दिया।

एक-एक करके एक दूसरे को ईंट पकड़ाते गए इस तरह से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ईंट आसानी से पहुंच गई और कैदियों को थकावट भी नहीं आई। इस बार जैसे ही जेलर ने ईंट को फिर से उसी स्थान पर रखने के लिए बोला। फिर से टीम ने ठीक वैसे ही किया, यह सब देख जेलर ने टीम “अ” को विजयी घोषित किया और अपने किए हुए वादे को भी पूरा किया।

नैतिक सीख: हम अगर एक होकर किसी भी काम को करेंगे तो उसका परिणाम बहुत जल्दी और अच्छा होगा।

2. कभी हार न मानना: बहरे मेंढक की कहानी

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एक वन में दो मेंढक रहते थे। दोनों में बहुत गहरी दोस्ती थी। दोनों हमेशा एक साथ रहते तथा एक साथ खेलते कूदते। एक बार दोनों खेलते-खेलते एक गहरे गड्ढे में गिर गए। गड्ढा इतना गहरा था कि दोनों उसमें से नहीं निकल पा रहे थे, निकल न पाने के कारण जोर-जोर से चिल्ला भी रहे थे। उन दोनों मेंढकोंं की आवाज सुनकर आसपास के कुछ और मेंढक गड्ढे के पास एकठ्ठा हो गए।

उन दोनों को देख सभी मेंढक बोलने लगे, तुम दोनों अब इस गड्ढे से कभी बाहर नहीं निकल सकते क्योंकि गड्ढा बहुत गहरा हैं, इसलिए तुम दोनों निकलने का प्रयास भी मत करो। हम लोग आपकों ऊपर से ही कुछ खाने-पीने के लिए दे दिया करेंगे। सभी मेढकों की बातें सुन पहले वाला मेंढक यह सोचने लगा कि मेरा अंतिम समय आ गया हैं। अब हम यहाँ से नहीं निकल सकते तथा यहाँ से अब हमें निकलने का प्रयास भी नहीं करना चाहिए।

जबकि, दूसरा मेंढक प्रतिदिन उस गड्ढे से ऊपर चढ़ने की कोशिश करता और गिर जाता, ऐसा वह हमेशा करता था। लेकिन, पहला वाला मेंढक उसे ऐसा करने से माना भी कर रहा था। फिर भी, वह दिन प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी और ऊचांइयों पर चढ़ता जा रहा था। जबकि, पहले वाला मेंढक दिए जाने वाले खाने पर आश्रित रहता और हमेशा चिंता में डूबा रहता। जिसके कारण सोच-सोच कर अब वह बहुत कमजोर हो चुका था। इस कारण से, एक दिन उस मेंढक की मृत्यु हो जाती हैं।

उसे देख दूसरे मेंढक ने सोचा कि अब मुझे अपने संघर्ष में कोई कमी नहीं छोड़नी चाहिए और मुझे यहाँ से किसी भी हाल में निकलना ही होगा। इस बार उसने अपनी पूरी ताकत गड्ढे से निकलने में लगा दी। अंततः वह मेंढक उस गड्ढे से बाहर निकल गया। जब वह बाहर आया तो एक मेंढक ने उसे इशारों से पूँछा कि आप गड्ढे से बाहर कैसे निकले। जबकि, हम लोग ऊपर से यह बोल रहे थे कि तुम कभी भी इस गड्ढे से बाहर नहीं निकल सकते।

उस मेंढक ने इशारों से समझाते हुए कहा कि आप लोग जब हमें ऊपर से बता रहे थे। तब मुझे लगा कि आप लोग गड्ढे से निकलने के लिए हमें प्रोत्साहित कर रहे हैं। क्योंकि, मुझे सुनाई नहीं देता हैं।

नैतिक सीख: हमें अपने आप पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए, दूसरों की नकारात्मक बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए, इसके अलावा किसी के कहने के आधार पर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।

इन्हें भी देखें: तीन मूर्ख ब्राह्मण और शेर – Three Foolish Brahmins and Lion

3. सब एक समान हैं: गरीब और अमीर बच्चों की कहानी

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किसी स्कूल में मोहन नाम का एक बच्चा पढ़ता था। जोकी, बहुत बुद्धिमान था। क्योंकि, उसकी स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उसके गरीब माता-पिता घर पर उसे व्यवहारिक शिक्षा भी देते थे। एक बार उसके स्कूल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें वह गरीब लड़का और अमीर घर के लड़के भी भाग ले रहे थे। अपना-अपना किरदार निभाने के लिए स्टेज के पीछे सभी बच्चे तैयार हो रहे थे।

तभी एक लड़के ने मोहन से कहा कि तुम्हारी औकात क्या है जो हमारे साथ इस कार्यक्रम में भाग ले रहे हो। तुम एक गरीब परिवार से हो तुम्हारे कपड़े भी कितने फटे-पुराने हैं। तुम कहां और हम कहां, यह बोलकर उसके सभी दोस्त मोहन पर एक साथ हंस पड़े। वहीं खड़े एक अध्यापक ने उन सभी बच्चों का व्यवहार देख कर उनके पास गए और सभी बच्चों को समझाने लगे। इसमें गरीबी और अमीरी की कोई बात नहीं है। आप सभी लोग इस विद्यालय में एक समान हो।

आप लोगों का काम दर्शकों का मनमोहित करना और उन्हें ज्यादा से ज्यादा आनंद पहुंचाना हैं, न की आप लोगों को अपने पहनावें और बाहरी रूपों का दिखावा करना हैं। उन सभी बच्चों को और समझाते हुए अध्यापक ने कहा कि मोहन आपके साथ ही पढ़ता है, जो आपको पढ़ाया जाता है वही मोहन भी पढ़ता है। यहां तक कि मोहन और आप लोगों के अध्यापक भी एक हैं। फिर एक दूसरे से इतनी नफरत क्यों है। सभी बच्चों को अध्यापक की बात समझ में आ जाती हैं।

कार्यक्रम शुरू होता है मोहन अपनी अच्छी-अच्छी बातों से दर्शकों को आनंदित कर देता है। लोगों को मोहन का किरदार बहुत अच्छा लगता है। इस तरह से मोहन को सबसे अच्छा किरदार निभाने के लिए पुरस्कृत भी किया जाता है। इस तरह कार्यक्रम सम्पन्न होता हैं और सभी बच्चे मोहन के पास आकर उसके साथ किए व्यवहार के लिए माफी मांगते हैं।

नैतिक सीख: जीवन में बाहरी दिखावा महत्वपूर्ण नहीं है। असली अहमियत उस रोशनी की है जिसके माध्यम से हम दूसरे के चेहरे पर मुस्कान ला सके।

4. पिता की छाया: लकड़हारा और उसके बच्चे की कहानी

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मीतपुर नाम गाँव में एक लकड़हारा रहता था। जिसका काम जंगल से लकड़ियों को काटना तथा बाजार में बेचना था। लकड़हारे के साथ उसकी पत्नी और उसका एक बच्चा रहता था, जिसका नाम प्रेम था। जोकि, बहुत बुद्धिमान तथा पढ़ने लिखने में होशियार और चतुर-चालाक था। प्रेम स्कूल से आकर घर पर भी खूब मन लगा कर पढ़ाई करता था। लकड़हारा और उसकी पत्नी, अपने बच्चे की पढ़ाई के प्रति रुचि देखकर उसे बड़ा आफ़िसर बनाने की चाहत में थे।

इसलिए, लकड़हारा अपने काम-काज में अपने बच्चे को कभी शामिल नहीं करता था। धीरे-धीरे लकड़हारे का बच्चा बड़ा हो रहा था। इसके साथ-साथ वह पहले से और ज्यादा बुद्धिमान और चतुर चलाक होता जा रहा था। लकड़हारा और उसकी पत्नी अपने बच्चे की उन्नति देख बहुत खुश रहते थे। अब उन्हें लगने लगा था कि हमारा बच्चा एक दिन हमारा नाम जरूर रौशन करेगा। कुछ साल बाद लकड़हारे के बच्चे ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली।

गाँव के कुछ लोग लकड़हारे को सलाह देने लगे कि आप अपने बच्चे की शादी कर दो उसका घर बसा दो। फिर, लकड़हारे ने अपने बच्चे से पूछा तो उसके बच्चे ने अभी शादी नहीं करनी हैं, बोलकर बात को टाल देता हैं। और वह आगे की पढ़ाई में लग जाता हैं। इस तरह से लकड़हारे का बच्चा आगे चलकर एक बड़ा अधिकारी बनता हैं। जोकि, गाँव से दूर एक शहर में रहने लगता हैं।

एक बार लकड़हारा अपने बच्चे से मिलने उसके दफ्तर में जाता हैं और देखता हैं कि उसका लड़का कुर्सी पर बैठा होता हैं। लकड़हारा अपने बच्चे के दोनों कंधों पर अपने हाथ रखते हुए बोलता हैं। बेटा कैसे हो, कैसी चल रही हैं आपकी नौकरी। बेटा बहुत गौरवान्वित महसूस करता हैं और अपने पिता को सब अच्छा-अच्छा बताता हैं। फिर उसके पिता उससे पूछते हैं बेटा इस दुनिया में सबसे महान इंसान कौन हैं। “बेटे ने कहा- मैं”, लकड़हारा सोच में पड़ गया और उसे ऐसे जबाब मिलने की उम्मीद नहीं थी।

वह सोचने लगा की मैंने अपने बच्चे को बहुत मुश्किल से पढ़ाया और होनहार बनाया और आज मेरा बेटा बोल रहा हैं, इस दुनिया में सबसे महान इंसान मैं हुँ। फिर उसके पिता ने वहाँ से जाने के लिए कदम बढ़ाया, लकड़हारे के दिमाग में फिर से वही प्रश्न आया और दुबारा बेटे से पूँछा।बेटा इस दुनिया में सबसे महान इंसान कौन हैं।

बेटे ने कहा- आप, लकड़हारा कुछ समझ नहीं पाया उसने पूछा “अभी तो तुम बोले थे कि इस दुनिया में सबसे महान इंसान “मैं ” हूँ ” बेटा मुस्कुराते हुए बोला। “पिता जी जब आपने मुझसे यह प्रश्न पहली बार पूछा था तब उस समय मेरे कंधे पर आपका हाथ था। इसलिए मैंने अपने आपको इस दुनिया का सबसे महान व्यक्ति बताया था। क्योंकि, जिस पिता का हाथ बेटे के कंधे पर हो उससे महान इंसान कोई और नहीं हो सकता। बेटे की संस्कार भरी बात को सुनकर उसका पिता प्रफुल्लित हो गया और अपने बेटे को गले से लगा लिया।

नैतिक सीख: पिता का सहारा लेकर बच्चा किसी भी मुकाम को हाशिल कर सकता हैं। पिता ही एक ऐसा इंसान हैं जो अपने बच्चे को जीवन जीने की कला सीखता हैं।

और देखें: एक अद्भुत संघर्ष की कहानी: “असफलता से सफलता तक का सफर”

5. अटूट विश्वास: बच्चा और बारिश की कहानी

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लोकपुर गाँव में एक बार सूखा पड़ गया। खेत खलिहान, नदी- तालाब और कुएं सब सूख गए थे। अब उस गाँव के लोगों को पानी के लिए बड़ी समस्या हो चुकी थी। एक दिन पूरे गाँव के लोग इकठ्ठा होकर पानी के जतन के बारें में सोचने लगे। किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ, उसी गाँव में उस गाँव के एक सबसे बुजुर्ग व्यक्ति रहते थे, जिसका नाम रामदास था। सभी ने कहा चलो उनके पास चलते हैं वही हमें इस समस्या का हल बता सकते हैं। पूरे गाँव वाले मिलकर उस व्यक्ति से मिलने चले गए।

गाँव वालों की समस्या सुन बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा मुझे एक ऐसे व्यक्ति के बारें में जानकारी हैं जो इस समस्या का निदान दिला सकता हैं। उसने दूर किसी व्यक्ति के बारें में बताते हुए कहा वहाँ जाओ और अपनी समस्या बताओ मुझे पूर्ण विश्वास हैं। इस गाँव में बारिश होगी। सभी गाँव वाले उस व्यक्ति के पास गए। वह व्यक्ति उस समय अपने घर के अंदर पूजा कर रहा था।

सभी गाँव वाले बाहर इंतजार कर करने लगे। तभी सबकी नजर उन्ही लोगों के बीच एक लड़के पर पड़ी जो अपने साथ एक छाता लेकर आया था। सभी ने उस बच्चे से पूछा की आप अपने साथ छाता क्यों लाए हो। बच्चे ने बहुत ही मीठे शब्दों में बोला कि जब बारिश होगी तो हम पानी से भीगे न इसलिए मैं अपने साथ छाता लेकर आया हूँ। वहाँ खड़े सभी लोग उसका विश्वास देख आश्चर्यचकित रह गए।

नैतिक सीख: हमारा विश्वास अटूट होना चाहिए चाहे वह किसी भी प्रकार का क्यों न हो तभी हमें हमारे कार्यक्षेत्र में सफलता मिल सकती हैं।

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