मोटिवेशनल स्टोरी: कैसे जिए आराम से

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एक बार की बात है। रामनगर में अंकुर नाम का एक लड़का रहता था। वह पढ़ने लिखने में बहुत होशियार था। उसने पढ़ाई में कई गोल्ड मैडल प्राप्त किये। उसके पिता सेठ मलमल राम जी ने उसे अच्छे संस्कार दिए थे। एक दिन अंकुर अपने पिता के साथ व्यापार के सिलसिले में कहीं जा रहा था। रास्ता एक बाजार से होकर जाता था। अंकुर ने वहां कुछ सामान खरीदने के लिए गाड़ी खड़ी कर दी। 

इस बाजार में रामू कुछ दिनों से काम की तलाश में घूम रहा था, परंतु कहीं भी बात बन नहीं रही थी। इतने में रामू की निगाह सेठ मलमल राम की गाड़ी पर पड़ी और वहीं टिक गई। रामू ने पास जाकर गाड़ी में देखा तो उसमें दो बैग रखे हुए थे। रामू ने सोचा थैलों में काफी माल होगा। उसने तिरछी निगाह से इधर-उधर देखा और फिर झट से गाड़ी में जा बैठा। 

जैसे ही रामू सेठ मलमल की गाड़ी लेकर भागा, उसने गाड़ी को पूरी रफ्तार दे दी। अंकुर और सेठ मलमल की निगाह रामू पर पड़ गई। वह चिल्लाए चोर-चोर, पकड़ो-पकड़ो। रामू को यह समझते देर ना लगी कि उसे पहचान लिया गया है। लोगों की निगाह से बचने के लिए वह हवा से बात करते हुए चला जा रहा था। 

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काफी दूर जाने के बाद, रामू ने एक सूनसान स्थान पर गाड़ी रोक दी। उसने गाड़ी से दोनों बैग निकाल लिए। रामू ने सड़क के किनारे घनी झाड़ियों में गाड़ी को छिपा दिया। रामू को एक बैग में पचास हजार रुपये और दूसरे बैग में अंकुर के सर्टिफिकेट और कुछ गोल्ड मैडल आदि मिले। 

रामू ने दोनों बैग के सामान की एक पोटली बना ली। अब वह सेठ मलमल और पुलिस की निगाह से बचने के लिए साधु के वेष में रहने लगा। वह जिस गाँव में भी जाता, वहाँ पर लोग उसका आदर-सत्कार करते। खाने-पीने को भी खूब मिलता। 

शाम होते ही भोले-भाले गाँव वाले रामू के पास आकर बैठ जाते। रामू ने कुछ संत-महात्माओं की किताबें खरीद ली और कुछ दोहों के अर्थ भी उसने याद कर लिए थे। गाँव वालों को एक दो श्लोक सुनाकर समझाता और फिर ध्यान लगाने का बहाना बनाकर मौन हो जाता।

एक गाँव से दूसरे गाँव में वेष बदलकर रहते हुए उसे दो-तीन महीने बीत गए। चलते-चलते एक दिन वह एक दूसरे गाँव में पहुंचा। रामू ने वहाँ पर लोगों को संतों के उपदेश के बारे में बताना शुरू किया। दो दिन पूरे गाँव वालों ने खूब ध्यान से उसे सुना। तीसरे दिन उसने देखा- “राहुल नाम का एक युवक जो शुरू के दो दिन बड़े प्रसन्न मन से प्रभु-कथा सुनने आता था। अब वह अंदर से कुछ परेशान लग रहा है।” 

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रामू ने इशारे से राहुल को बुलाया और उसकी परेशानी का कारण पूछा। राहुल ने कहा- “मैं जिस कार्यालय में काम करता हूँ, वहाँ अभी परसों ही मैंने एक फर्जी बिल पास करवाया है और कल ही कार्यालय का लेखा-जोखा ऑडिट किए जाने का आदेश आ गया।” 

अब मेरी नौकरी जाना तय है, ऐसे में मैं भला चैन से कैसे रह सकता हूँ। रामू ने बड़े ही सहज भाव से कहा- तुम हृदय से अपनी गलती स्वीकार करते हो। राहुल ने कहा- हाँ। तो फिर ठीक है तुम परमात्मा पर विश्वास रखो और इस बात को हमेशा याद रखो कि- “अगर कोई गलती हो जाए तो हरगिज़ उसे छुपाओ मत, जाकर कह दो, स्वयं बड़ों से लंबी बात मत बनाओ।”

अगले दिन राहुल ने कार्यालय में जाकर पूरी बात अपने अधिकारी को बता दी। राहुल ने कहा- सर! मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ। अधिकारी ने कहा- राहुल सुबह का भूला यदि शाम को घर वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। 

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तुमने तो ऑडिट होने से पहले सच्चाई बता कर मुझे ही नहीं बल्कि पूरी कंपनी को बदनाम होने से बचा लिया। आखिरकार, बिल पर हस्ताक्षर तो मेरे ही थे ना! मैं उस बिल को कैंसिल कर देता हूँ और तुम्हारी यह पहली गलती है, इसलिए मैं तुम्हें माफ करता हूँ। 

अगले दिन राहुल महात्मा बने रामू के चरणों में जाकर गिर पड़ा और बोला- आप धन्य हैं महात्माजी! रामू ने कहा- किस बात का धन्यवाद दे रहे हो भाई। राहुल ने कहा- “आपके वचनों के पालन का ही यह नतीजा है। फिर उसने अपने अधिकारी से हुई पूरी बात बता दी और कहा अधिकारी ने उसे माफ कर दिया।” 

राहुल की बात सुनकर रामू को अपने किये कर्मों पर बहुत बड़ा झटका लगा। उसने सोचा कि मैं तो अपना अपराध छुपाने के लिए महीनों से इधर-उधर भटक रहा हूँ। मैंने स्वयं इस दोहे पर क्यों नहीं अमल किया। मैं भी इसी प्रकार चैन का जीवन जी सकता हूँ। 

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रामू उसी समय उठा और रात में ही सेठ मलमल के घर जा पहुँचा। सेठ मलमल रामू को देखते ही पहचान गये और बोले- तुम! रामू बोला- “मैं आपका अपराधी हूँ। मैंने ही आपका पैसा और गाड़ी चुराई थी। मैं अपना अपराध स्वीकार करता हूँ।” मैं यह आपका पैसा वापस करने आया हूँ। आपकी गाड़ी मैंने कहीं छुपा रखी है। वह भी मैं आपको वापस कर देता हूँ। अब यदि आप चाहे तो मुझे पुलिस के हवाले कर सकते हैं।

सेठ मलमल एकटक रामू को देखते रहे। उन्हें लगा सच में इस युवक को अपनी गलती का एहसास हो गया हैं। सेठ मलमल ने कहा- नहीं बेटे यह रुपये और गाड़ी मेरे लिए कोई बड़ी चीज नहीं है। परन्तु तुमने अंकुर के सर्टिफिकेट और सभी मैडल संभाल कर रखे, इस बात से मैं खुश हूँ।

यदि इंसान अपनी गलती को हृदय से मान ले और प्रायश्चित करें तो उससे बड़ी और कोई सजा नहीं है। तुम ये अंकुर के सर्टिफिकेट व मैडल्स मुझे दे दो और ये रुपये तुम रखो और इनसे तुम कोई अच्छा काम-धंधा शुरू करो। उस दिन के बाद रामू ने अपने जीवन की राह बदल दी। और उसने किराये पर दुकान लेकर काम-धंधा शुरू कर दिया।

नैतिक शिक्षा:

दूसरों को उपदेश देने से पहले अपने आपको उस तरह बनाओ।

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