1. धोबी और उसके बच्चे की कहानी – Story of the washerman and his child:

एक समय की बात हैं अवधपुर नामक गाँव में रामू नाम का एक धोबी अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता था। धोबी अपने बीते हुए ख्यालों में हमेशा खोया रहता था। जिसके कारण वह बहुत अंधविश्वासी हो गया था। वह तंत्र विद्या में अधिक विश्वास रखता था। धोबी को अपने बेटे से बहुत अधिक लगाव था। जिसके कारण उसका बेटा भी उसी की तरह अंधविश्वासी होता जा रहा था। लेकिन धोबी की पत्नी बहुत ही समझदार और बुद्धिमान औरत थी। वह चाहती थी कि उसका बेटा उसके पति की तरह अंधविश्वासी न बने। इसलिए, वह अपने बच्चे को पिता से दूर रखने की कोशिश करती रहती थी।
एक बार धोबी का बेटा एक सपना देखता हैं, जिसमें वह अपने आप को मरा हुआ पाता हैं। रात में सोते-सोते अचानक वह उठता हैं और जोर-जोर से चिल्लाने लगता हैं,” मैं मर गया, मैं मर गया”। उसकी आवाज सुन उसके माता-पिता उसके पास आते हैं और उसके चिल्लाने की वजह पूछते हैं। वह अपने स्वपन में देखी हुई सारी बातों को बता देता हैं। उसके माता-पिता अपने बच्चे को समझाते हैं कि वह एक स्वपन हैं, जोकि सच नहीं होता। “तुम जिंदा हो” उसे यह ऐहसास दिलाने की कोशिश करते हैं। लेकिन, उनका बेटा अपने माता-पिता की बात नहीं मानता और जोर-जोर से चिल्लाता रहता हैं।
सुबह धोबी और उसकी पत्नी अपने बच्चे को आसपास के लोगों से बात करवाते हैं कि जिंदा लोग एक दूसरे से बात कर सकते हैं। लोग उसके हाथों में खुजली करते हैं, और कई तरह से उसे यह ऐहसास दिलाते हैं कि वह जिंदा हैं। लेकिन, वह लड़का किसी की बात नहीं मानता एक ही रट लगाया रहता हैं कि वह मर चुका हैं। अब धोबी और उसकी पत्नी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपने बच्चे का भ्रम कैसे दूर करें?
वह दोनों अपने बच्चे को दिमाग के डॉक्टर को दिखाने के लिए ले गए। डॉक्टर बच्चे को उसकी दिल की धड़कन सुनाकर, उसे जिंदा होने का प्रमाण भी देते हैं। लेकिन, उसका भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब बच्चे के माता-पिता उसको लेकर ऐसी जगह पर गए जहाँ पर किसी व्यक्ति की मृत्यु हुई थी। उस व्यक्ति को दिखाते हुए उसके माता-पिता ने बच्चे के अंगूठे पर पिन चुभा दी, जिसके कारण बच्चे के अंगूठे से खून की एक बूंद बाहर आ जाती हैं। जबकि, ठीक ऐसे ही उस मरें हुए व्यक्ति के साथ भी किया। लेकिन उस व्यक्ति के अंगूठे से खून नहीं निकला।
इस तरह से उसके माता-पिता अपने बच्चे को यह समझाने की कोशिश कर रहे थे कि जिंदा व्यक्ति के शरीर से खून निकलता हैं। जबकि, मरे हुए व्यक्ति के शरीर से खून नहीं निकलता। इस तरह से अब बच्चे को विश्वास हो गया कि वह जिंदा हैं और उसने अपनी जिद्द को छोड़ दिया। इस कहानी का मुख्य उदेश्य यह हैं कि हमें अपनी जिद्द पर ही नहीं अड़े रहना चाहिए। हमें और लोगों की बात भी माननी चाहिए और समझना चाहिए की मेरा हित और अनहित किसमें हैं।
2. किसी भी काम को समय से न करना – Not doing any work on time:

कुछ समय पहले की बात हैं। मोहित की वार्षिक परीक्षा होने वाली थी। लेकिन, मोहित अभी खेल-कूद में ही लगा रहता था। वह अपना अधिकतर समय खेल के मैदान में बीताता था। उसके दोस्त उसे समझाते थे कि परीक्षा आने वाली हैं पढ़ाई कर लो, लेकिन मोहित यह कहकर दोस्तों की बात को टाल देता था कि अभी परीक्षा आने में दो तीन महिने बाकी हैं। जब परीक्षा आएगी तब हम पढ़ाई कर लेंगे, अभी से पढ़ाई करेंगे तो सब कुछ भूल जाएंगे। इसके बाद वह फिर से खेलने में लग जाता था।
अब परीक्षा होने में सिर्फ एक सप्ताह बाकी रह गए थे। मोहित ने अब खेलना बंद कर दिया और पढ़ाई में लग गया। मोहित दिन रात एक करके पढ़ाई करने लगा। जिसके कारण उसे खाने-पीने का भी ध्यान नहीं रहता था। अगले दिन परीक्षा थी, मोहित ने जब परीक्षा हॉल में पेपर को देखा तो उसके पैरों तले जमीन खिसक गई। क्योंकि, मोहित को उस पेपर में एक भी प्रश्न का जबाब नहीं आता था। जबकि, उसने जो पढ़ा था उसके दिमाग से भी निकल गया।
जब परीक्षा का परिणाम आया तो मोहित फेल हो गया। अब वह उसी खेल के मैदान में जाकर रोता और अकेले बैठा रहता। उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा। एक दिन उसका एक दोस्त उसी रास्ते से जा रहा था। मोहित को उस खेल के मैदान में अकेले बैठा देख उसके पास अपनी साईकिल रोककर पूछने लगा, “मोहित तुम यहाँ अकेले क्यों बैठे हो?” मोहित ने अपनी परीक्षा की बात अपने दोस्त को बताई।
उसका दोस्त मोहित को समझाता हैं कि हम कभी भी किसी रास्ते को एक दिन यदि तय करना चाहे, तो क्या यह संभव हैं? हमें अपनी मंजिल प्राप्त करने के लिए हर दिन चलना पड़ता हैं। ठीक इसी प्रकार आपने परीक्षा से पहले पढ़ाई करने का फैसला करके गलत किया। अगर आपने थोड़ी-थोड़ी करके अपनी तैयारी की होती तो उसका परिणाम भी अच्छा होता।
इसलिए हम लोग थोड़ा-थोड़ा करके पूरे साल पढ़ाई करते हैं और परीक्षा के समय उसको एक दो बार फिर से पढ़ते हैं। जिससे हमें वह याद हो जाता हैं। मोहित दोस्त के सामने अपनी गलतियों को स्वीकार करता हैं और फिर कभी ऐसा न करने का वचन देता हैं।
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3. माँ से किया हुआ वादा – Promise made to mother:

हरितपुर गाँव में एक कुम्हार रहता था। जिसका नाम भरत था, उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक बेटा था। कुम्हार बुजुर्ग हो चुका था जिसकी वजह से वह मिट्टी के बर्तन बनाने में भी असमर्थ था। जबकि, अपने घर को चलाने के लिए कुम्हार की पत्नी घर पर कपड़े सिलने का काम करती थी। किसी तरह से कुम्हार का घर चलता था। कुम्हार का बेटा जिसका नाम हेमंत था वह प्रतिदिन स्कूल जाता और पढ़ाई करता था।
एक दिन सुबह-सुबह कुम्हार की पत्नी कपड़े सिल रही थी। हेमंत अपनी माँ के पास जाता हैं और कहता हैं कि अब वह स्कूल नहीं जाएगा। उसकी माँ उससे स्कूल न जाने का कारण पूछती हैं। हेमंत कहता हैं मेरे फटे-पुराने कपड़ों तथा गरीब होने के कारण स्कूल के सभी बच्चे मुझे चिढ़ाते हैं। मेरे साथ कोई बैठना तथा खेलना नहीं चाहता, स्कूल में मेरा कोई दोस्त भी नहीं हैं। इस तरह से हेमंत अपनी माँ के सामने रोने लगता हैं और कहता हैं कि “माँ मैं अब आप के काम में हाथ बंटा दिया करूंगा और घर पर ही रहूँगा।
हेमंत की बात सुन उसकी माँ का दिल भर आया और वह कहने लगी, बेटा हम गरीब हैं तो क्या हुआ हम किसी के आगे हाथ नहीं फैला रहे हैं। जिस तरह लोग फूल को खुशबू के आधार पर चुनते हैं। ठीक उसी तरह कपड़े की कोई अहमियत नहीं होती हैं। अहमियत कपड़े पहनने वाले की होती हैं। बेटा अगर यह तुम्हारा कपड़ा, अगर अमीर घर के बच्चे पहन ले तो लोग बोलेंगे कि यह एक फैशन हैं, और आप पहन रहे हो तो लोग गरीब बोल रहे हैं। यहाँ पर कपड़े पहनने वाले की अहमियत हैं न की कपड़े की।
इस प्रकार हेमंत को उसकी माँ समझाते हुए कहती हैं “बेटा तुम मन लगा कर पढ़ाई करो, अपनी क्लास में प्रथम स्थान हासिल करो, लोग तुम्हारे पास अपने आप आने लगेंगे”। यह बोलते हुए वह मायूस हो जाती हैं, उसकी आँखों में आँसू भर आते हैं। माँ कहती हैं, “बेटा हमें बहुत उम्मीद थी कि हमारा बेटा एक दिन हमारी गरीबी को खत्म करेगा, हमारे भी अच्छे दिन आएंगे। लेकिन, तुम्हारी बातों को सुन, अब मुझे यह लग रहा हैं कि हम गरीब पैदा हुए थे और गरीब ही मर जाएंगे।”
हेमंत अपनी माँ की बात सुनकर, माँ के गले से लिपट जाता हैं और वादा करता हैं, “माँ मैं स्कूल जाऊंगा और पढ़ाई करूंगा जिससे हमारे घर की स्थिति जरूर बदलेगी। उस दिन से हेमंत अपनी पढ़ाई में और अधिक मन लगाने लगता हैं।” हेमंत की कक्षा में अगर बच्चे उसके ऊपर कमेंट करते, तो हेमंत उस पर ध्यान नहीं देता और हंस कर टाल देता। अब हेमंत सिर्फ पढ़ाई पर ध्यान देने लगा था। इस बार परीक्षा का परिणाम घोषित हुआ, हेमंत ने अपने स्कूल में प्रथम स्थान हासिल किया।
स्कूल में एक सम्मान समारोह आयोजित किया गया, जिसमें हेमंत और उसकी माँ को भी बुलाया गया। इस समारोह में हेमंत को स्कूल में प्रथम स्थान हासिल करने के लिए पुरस्कृत किया गया। उसकी माँ ने अपने बेटे की सराहना में खूब तालियाँ बजाई। समारोह संपन्न होता हैं। हेमंत ने अपना मेडल अपनी माँ को देते हुए कहा- “माँ आपका सपना कभी टूटने नहीं दूंगा”। इस तरह से माँ ने हेमंत को अपने गले से लगा लिया और दोनों की आँखों में खुशी के आँसू छलक आए।
4. चिड़िया और कोहरे की कहानी – Story of bird and fog:

दूर पहड़ियों के पास एक पेड़ पर चिड़िया और उसके बच्चे घोंसले में रहते थे। ठंड का समय था, बर्फ पड़ रही थी। अधिक धुंध होने के कारण आसपास कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। जिसके कारण कोई भी पक्षी अपने घोंसले से बाहर नहीं आ रहे थे। धीरे-धीरे इस तरह से एक दो दिन बीत गए। लेकिन, अब चिड़िया सोचने लगी अगर मैं बाहर नहीं गई तो हमारे बच्चे भूखे कब तक रहेंगे। मुझे उड़ना ही होगा, लेकिन उसके बच्चे उसे बाहर जाने से माना कर रहे थे। वह बच्चों को समझा कर उड़ गई।
चिड़िया उड़ते-उड़ते बहुत दूर किसी पहाड़ी पर निकल आई, देखा तो वहाँ पर सूर्य की रोशनी भी पड़ रही थी। ठंड और धुंध भी कम थी। चिड़िया कुछ समय धूप सेकने के बाद खाना एकठ्ठा करके अपने बच्चों के पास उड़ चली। जब वह खाना लेकर वापस लौटी तो दूसरी चिड़िया ने उसे देख पूछा “इतनी ठंड और कोहरे में कहाँ गई थी”? उसने जबाब दिया अपने बच्चे के लिए खाना लाने गई थी।
चिड़िया बहुत ही मीठे स्वर में बोली कोहरा तथा धुंध हमें यही सीखाता हैं कि कुछ दूर चलो आगे का रास्ता अपने आप दिखने लगेगा। ठीक इसी प्रकार आगे चलते-चलते एक समय ऐसा आएगा कि आपको पूरा रास्ता दिखने लगेगा। यह कहते हुए चिड़िया वहाँ से उड़कर अपने घोंसले में बच्चों के पास चली गई। उसकी बातें सुन आसपास की चिड़िया भी अपने घोंसले से निकलकर खाना लाने के लिए उड़ जाती हैं। इसलिए, कहा जाता हैं लोग उसकी सराहना करते हैं जो किसी भी परिस्थियों में पीछे नहीं हटता, बल्कि उसका डटकर सामना करता हैं।
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5. लालच का अंत बुरा होता हैं – Greed ends badly:

एक बार की बात हैं, चंदनपुर गाँव में एक बनिया रहता था। जिसका नाम धनीराम था। जोकि, बहुत लालची था। वह हमेशा पैसों के बारें में ही सोचता रहता था। जब भी उसे कोई धन मिलता, उसे वह अपनी तिजोरी में एकठ्ठा करके रख देता था। एक बार वह कुछ सामान बेचकर वापस अपने घर आ रहा था। रात अधिक हो चुकी थी उसके पीछे कुछ कुत्ते पड़ गए। जिससे बचने के लिए वह तेजी से भागने लगा। जिसके कारण उसके पैसों को पोटली रास्ते में ही गिर गई।
अगले दिन वह पैसोंं की पोटली को उस गाँव के मुखिया के लड़के को मिल गई। जिसे उसने अपने पिता को दे दिया। मुखिया बहुत ईमानदार तथा नेक इंसान था। अगली सुबह धनीराम अपने गाँव के मुखिया के पास आता हैं और अपनी खोई हुई पोटली के बारे में बताता हैं। मुखिया धनीराम को वही पोटली देते हुए बोला- ” यह लो आपकी अमानत जोकि, मेरे बेटे को रास्ते में गिरी हुई मिली थी।
धनीराम पैसोंं की पोटली को खोलता हैं और सिक्कों को गिनता हैं उसके अंदर लालच आ जाता हैं। सिक्कों को गिनने के बाद बोलता हैं कि इस पोटली में सौ सिक्के थे। लेकिन अभी इसमें पचास सिक्के ही हैं। मेरे पचास सिक्के आपने रख लिए, पचास सिक्के मुझे और दो। मुखिया धनीराम को बहुत समझाने की कोशिश करता हैं कि इस पोटली में सिर्फ पचास सिक्के ही थे। लेकिन, धनीराम मुखिया की एक भी बात नहीं मानता। वह अपने राज्य के राजा के पास जाता हैं और सारी बातें बताता हैं।
राजा ने मुखिया और उसके लड़के को दरबार में बुलाया। दोनों से पोटली में रखे सिक्कोंं के बारे में पूँछा। उन दोनों ने जबाब दिया कि इस पोटली में सिर्फ पचास सिक्के ही थे। लेकिन धनीराम सौ सिक्कोंं के बारे में बोल रहा हैं। राजा ने अपना फैसला सुनाते हुए धनीराम से कहा कि आपके हिसाब से कितने सिक्के कम हैं। धनीराम ने बोला पचास सिक्के कम हैं। राजा ने धनी राम से कहा कि इसका मतलब इस पोटली के असली मालिक आप नहीं हो। जब तक इसका असली मालिक नहीं मिल जाता, यह पोटली अभी इस लड़के के पास ही रहेगी।
धनीराम जोर-जोर से चिल्लाने लगा और बोलने लगा यह थैली मेरी ही हैं। जिसमें पचास ही सिक्के थे। लेकिन राजा ने धनीराम की एक न सुनी। अब धनीराम को अपने द्वारा किए गए लालच पर पछतावा होने लगा। इसलिए, कहा जाता हैं कि लालच का अंत बहुत बुरा होता हैं।