दगाबाज नाई और निर्दोष ब्राम्हण – Dagabaj naai aur nirdosh bramhan

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एक समय की बात हैं राजा रणजीत सिंह ने अपने राज्य को व्यवस्थित ढंग से बसाया था। उनके राज्य में एक गाँव ऐसा था, जिसमें हर वर्ग के लोग जैसे- कुम्हार, लोहार, पंडित, नाई और धोबी जैसे अनेकों जाति के लोग रहते थे। जिनका काम प्रतिदिन राजा के महल में अपने-अपने कर्म के अनुसार काम करना होता था। जिसके बदले में राजा सभी को कुछ न कुछ जरूर देता था। इस तरह से राजा का राज्य बहुत अच्छी तरह से चल रहा था। जिसके कारण राजा राज करते थे और प्रजा सुख भोगते थे।

राजा के द्वारा बसाए गए गाँव में पंडित और नाई का घर पास-पास में था। नाई अपने पड़ोसी पंडित से जलता था। क्योंकी, पंडित सुबह-सुबह राजा के दरबार में जाता और कथा सुनाकर चला आता था। जिसके बदले में राजा, पंडित को प्रतिदिन एक सोने का सिक्का देता था। उसके बाद वह और कई जगहों पर कथा सुनाने चला जाता था। जिससे उसकी आमदनी और अधिक हो जाती थी। जबकि, नाई का पूरा दिन राजा से लेकर उनके दरबारी और मंत्रियों के दाढ़ी और बाल काटने में ही बीत जाता था। जिसकी वजह से उसे कहीं और जाने का मौका नहीं मिल पाता था।

एक दिन नाई अपना दिमाग लगाता हैं। वह ब्राम्हण से कहता हैं, “पंडित जी! कल जब मैं राजा के बाल काटने गया था तो वे आपके बारें में कह रहे थे कि पंडित जब कथा सुनाता है तब उसके मुँह से बदबू आती हैं।” इसलिए, आप जब भी राजा को कथा सुनाने जाते हो, तब अपनी नाक और मुँह पर कपड़ा बांधकर जाया करो। पंडित बहुत सीधा और भोला था। वह नाई की बातों को मान जाता हैं। उधर नाई राजा से कहता हैं- “महाराज! आपका पंडित बहुत दुष्ट हैं। वह आज मुझसे कह रहा था कि राजा के मुँह से बहुत गंदी दुर्गंध आती हैं। इसलिए, कल से मैं नाक और मुँह पर कपड़ा बांध कर कथा सुनाने जाया करूंगा।

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नाई की बात सुनकर राजा गुस्से से लाल पीला हो गया। वह कहने लगा की तुच्छ प्राणी पंडित की इतनी हिम्मत कि मुझे ऐसा कहे। अगले दिन पंडित अपने मुँह और नाक पर कपड़ा बांधकर कथा सुनाने पहुँचता हैं, कथा खत्म होती हैं। उस दिन राजा पंडित को दो सोने का सिक्का देते हुए एक पत्र भी देता हैं और कहता हैं इसे जल्द से जल्द कोतवाल के पास पहुँचा दो। पंडित को दी गई सजा के बारें में जानने के लिए नाई बाहर प्रतीक्षा में खड़ा था। जब पंडित बाहर निकल कर आया तो वह नाई से कहता हैं- “तुम्हारी सलाह सही थी, देखो आज महाराज ने मुझे दो सोने के सिक्के दिए हैं।”

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नाई पंडित की बातों को सुनकर अंदर ही अंदर जल गया। लेकिन, नाई बहुत चालाक था वह ब्राम्हण से कहता हैं- “पंडित जी अब तो आपको प्रतिदिन दो सोने के सिक्के मिलेंगे, आपको सलाह मैंने दी थी। इसलिए एक सोने का सिक्का मेरा भी बनता हैं। पंडित बहुत भोला और सीधा था, वह नाई को एक सोने का सिक्का देते हुए कहता हैं- “इस पत्र को जल्दी से कोतवाल के पास पहुँचा दो और बता देना की राजा रणजीत सिंह ने भिजवाया हैं।”

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नाई सोने का सिक्का पाने के बाद भागते हुए कोतवाल के पास पहुंचता हैं। वह पत्र को कोतवाल को देते हुए- “कहता हैं कि यह पत्र महाराज रणजीत सिंह ने भेजा हैं। कोतवाल पत्र को खोलकर देखता हैं। उस पत्र में लिखा था कि पत्र देने वाले का दाहिना हाँथ काट लिया जाए। कोतवाल तुरंत अपने सिपाहियों से उसके दाहिने हाँथ को कटवा देता हैं।

प्रतिदिन की भांति पंडित अगले दिन भी राजा के दरबार में कथा सुनाने पहुँचा। ब्राम्हण का हाथ सही सलामत देख राजा ने पंडित से पूरी घटना के बारें में पूँछा। पंडित ने सही-सही पूरी बात को बता दिया। राजा पंडित की बुद्धिमानी देख बहुत प्रसन्न हुआ। दगेबाज को अपने किए की सजा मिल ही गई। बेचारा निर्दोष भोला ब्राम्हण बच गया।

नैतिक शिक्षा:

दूसरे के लिए गड्ढा खोदने वाला खुद-ब-खुद एक दिन उसी गड्ढे में गिरता हैं।

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