बहुत समय पहले की बात हैं। राहतनगर में ‘क्रोधीराम’ नाम का एक गुस्सैल व्यापारी रहता था। जिसे बात-बात में गुस्सा आ जाता था। उस व्यापारी से ग्राहक और उसके परिवार के सभी लोग बहुत डरते थे। अगर व्यापारी को उसके व्यापार में घाटा लग जाता था तो वह अपने गुस्से को अपने परिवार के लोगों के ऊपर निकालता था। व्यापारी जब बोलना शुरू करता था तो वह किसी और की बातों को नहीं सुनता था।
धीरे-धीरे अपने गुस्से के कारण वह बहुत चिड़चिड़ा हो गया। जिससे वह अपने आसपास रखी चीजों को भी उठा-उठा कर फेंकने लगता था। एक बार व्यापारी रात्रि का भोजन कर रहा था। खाने में उसे बाल मिला, जिससे वह बहुत क्रोधित हो गया। उसने अपनी पत्नी को अपने पास बुलाकर उसे कड़ी आवाज में समझाया कि यह तुम्हारी पहली और आखिरी गलती हैं।
आगे से अगर मेरे खाने में एक भी बाल मिला तो मैं तुम्हें कड़ी से कड़ी सजा दूंगा और इस घर से बाहर निकाल दूंगा। उसकी पत्नी उससे दबी आवाज में कहती हैं – “आगे से ऐसी गलती नहीं होगी, कृपया मुझे माँफ कर दें।” क्रोधीराम की पत्नी ने फिर से उसे दूसरी थाली में भोजन लाकर दिया। कुछ समय बाद एक बार क्रोधीराम की पत्नी उसे खाना परोस कर, कुछ समान लाने रसोई में चली जाती हैं। क्रोधीराम अचानक देखता हैं कि उसके खाने में बाल पड़ा हुआ हैं।
वह गुस्से से लाल-पीला होकर चिल्लाते हुए उठता हैं और उसे सजा देने के लिए उसको गंजी करवाना चाहता हैं। जिसके लिए वह गाँव के नाई को बुलाने के लिए चला जाता हैं। उसकी पत्नी ने सोचा अगर आज मैंने हिम्मत से काम नहीं लिया तो अनर्थ हो जाएगा। क्रोधीराम की पत्नी ने इस घटना की खबर अपने भाइयों तक पहुँचवा दी। जब तक क्रोधीराम नाई को लेकर आता, उसके भाइयों ने उसे बचाने की योजना बना ली।
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जब क्रोधीराम नाई को लेकर घर पहुँचा तो देखता हैं कि उसके घर के सामने एक चिता बनी हुई थी तथा दाह-संस्कार करने का समान भी रखा हुआ था। उसने अपने घर पर लोगों को इकट्ठा हुए देख पत्नी के भाइयों से पूँछा – “इतने सारे लोग यहाँ क्या करने के लिए आए हुए हैं?” उसके भाइयों ने बताया कि किसी भी इंसान की पत्नी को गंजी तभी करते हैं, जब उस औरत का पति मर चुका हो। आपकों अपनी पत्नी को गंजी करने से पहले इस चिता पर बैठना होगा।
उन लोगों को बातों को सुनकर क्रोधीराम हक्का-बक्का हो गया। वह सभी के सामने दोनों हाथों को जोड़कर नतमस्तक हो गया और अपनी गलतियों को कबूलने लगा। व्यापारी ने कहा – “मेरे व्यापार में बहुत अधिक नुकसान हो जाने से, मैंने अपना धैर्य खो दिया था। जिससे मैं बहुत ज्यादा क्रोधित हो गया” जिसकी सजा मैं अपनी पत्नी को देने जा रहा था। आप लोग मुझे माँफ कर दो।
मैं आप लोगों को वचन देता हूँ कि आगे से अब मैं कभी भी किसी के ऊपर गुस्सा नहीं करूंगा। उसकी बातों को सुनकर वहाँ के लोगों ने क्रोधीराम को माँफ कर दिया।
नैतिक सीख:
हमें कभी भी अपनी गलतियों को दूसरों के ऊपर नहीं थोपना चाहिए।