5 Hindi Stories for Childrens – बच्चों के लिए हिंदी कहानियाँ

You are currently viewing 5 Hindi Stories for Childrens – बच्चों के लिए हिंदी कहानियाँ
Image sources: bing.com

1. बड़ों की बातों को अनदेखा न करें:

एक जंगल में एक बकरी अपने बच्चे के साथ रहती थी। उसका नाम गोलू था। वह बहुत शरारती था। उसे सारा दिन बाहर खेलना अच्छा लगता था। एक दिन वह खेलते-खेलते जंगल की ओर निकल गया। बकरी ने गोलू को बाहर नहीं देखा तो वह परेशान हो गई। वह फटाफट जंगल की ओर भागी।

उसे डर था कि गोलू कहीं घने जंगल में न चला जाए। क्योंकि, वहाँ हर वक्त जंगली जानवर शिकार की तलाश में घूमते रहते हैं। तभी गोलू की नजर उसकी माँ पर पड़ी। गोलू बोलता हैं- माँ, माँ आपने मुझे खोज ही लिया। जब बकरी उसके पास गई तो देखा कि गोलू पेड़ों की झुंड में छिपा हुआ था।

गोलू अपनी माँ को पास देखकर खुशी से उछल पड़ा। उसकी माँ उसे गुस्से से फटकार लगाते हुए बोली- “गोलू! तुम्हें कितनी बार मना किया हैं इस तरफ मत आया करो। लेकिन, तुम हो कि समझते नहीं हो। किसी दिन तुम खुद मुसीबत में फँसोगे और मुझे भी फंसा दोगे।

लेकिन, शरारती गोलू को चैन कहाँ। वह अगले ही दिन अपनी माँ को सोते देख फिर उसी घने जंगल की तरफ निकल पड़ा। गोलू ने जैसे ही जंगल में प्रवेश किया ही था कि एक भेड़िए की नजर गोलू के ऊपर पड़ गई। उसके लिए मानो आज का भोजन हो गया और उसके मुंह से पानी टपकने लगा।

वह गोलू को अकेला देखकर झट से उसके पास पहुँचा। गोलू ने जैसे ही भेड़िए को अपने पास आते देखा। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी माँ अपने दोस्त जंगली कुत्ते को अपने साथ लेकर उसके पास पहुँची। इतने में शिकारी कुत्ता तेजी से भेड़िए की तरफ छलांग लगाते हुए उसके पीछे पड़ गया और दूर तक उसका पीछा किया।

गोलू, भेड़िए को देखकर सहम गया था। उसने अपनी माँ से वादा किया कि वह बिना बताए अकेले कही नहीं जाएगा।

नैतिक शिक्षा:

हमें अपने बड़े बुजुर्गों की बात माननी चाहिए।

2. सफलता मेहनत से मिलती हैं:

success-comes-with-hard-work
Image sources: bing.com

रिंकू अपने परिवार का एकलौता बच्चा था। उसका ध्यान खेलकूद में अधिक रहता था। जिसके कारण उसके माता-पिता बहुत अधिक चिंतित रहते थे। वे लोग रिंकू को कई बार समझा चुके थे कि पढ़ाई-लिखाई में भी ध्यान दिया करो। लेकिन, वह अपने माता-पिता की बातों को टाल देता था।

एक दिन सुबह-सुबह रिंकू के पापा उसे समझाते हुए बोले- “बेटा कल तुम्हारे स्कूल से तुम्हारी शिकायत के लिए फिर से फोन आया था।” तुम स्कूल में मन लगा कर पढ़ाई क्यों नहीं करते हो? रिंकू अपने पापा से सॉरी बोलकर अपने दोस्तों के साथ खेलने के लिए निकल गया।

इन्हें भी देखें: Top 5 Hindi Stories with Moral – हिन्दी नैतिक कहानियां

रिंकू की मम्मी के दिमाग में एक विचार आया। उसने उसके टेबल पर एक छड़ी और चिट्ठी रख दी। जब रिंकू वापस घर को लौटा तो उसने अपनी टेबल पर रखी चिठ्ठी खोलकर देखी तो उसमें लिखा था। “प्रिय रिंकू! मुझे पता हैं कि तुम्हारा मन पढ़ाई में नहीं लग रहा हैं। लेकिन तुम खबराओ मत, तुम इस जादुई छड़ी को अपने पास रखकर पढ़ाई करोगे तो तुम्हें सब कुछ याद हो जाएगा और अपनी कक्षा में प्रथम भी आओगे।” -तुम्हारी प्यारी दीदी!

उस दिन से रिंकू उस छड़ी को अपने साथ लेकर जीतोड़ मेहनत करने लगा और वह जो भी पढ़ता उसे याद भी हो जाता था। इस तरह से उसका आत्मविश्वास और बढ़ने लगा। इस बार उसने अपनी कक्षा में प्रथम स्थान भी हासिल किया। परीक्षा परिणाम लेकर वह अपनी माँ के पास आकर कहता हैं- “देखो मम्मी मैंने इस जादू की छड़ी की वजह से अपनी कक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया हैं।

उसकी माँ ने कहा- “वह कोई जादू की छड़ी नहीं हैं वह मामूली छड़ी हैं, जिसे मैंने तुम्हें सुधारने के लिए रखा था। तुमने अपनी मेहनत के बल पर अपनी कक्षा में प्रथम स्थान हासिल किया हैं। रिंकू ने कहा- माँ मैं समझ गया, मेहनत से सफलता मिलती हैं, न की जादू की छड़ी से। अब से मैं अपनी पढ़ाई में खूब मेहनत करूँगा।

नैतिक शिक्षा:

किस्मत और भाग्य के भरोसे बैठने से सफलता नहीं मिलती।

3. दान-पुण्य और परोपकार:

charity-and-philanthropy
Image sources: bing.com

गंगापुर गाँव में एक सेठ रहता था। जिसका नाम राधेश्याम था। उसकी गिनती उसके गाँव के सबसे अमिर लोगों में होती थी। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी। लेकिन, वह दान के नाम पर कभी भी एक रुपये भी नहीं खर्च करता था। उस गाँव के कई लोग उसे समझा चुके थे कि हमें अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान में भी खर्च करना चाहिए। लेकिन, उसने किसी की बातों पर ध्यान नहीं दिया।

गर्मी का मौसम था। एक रात सेठ राधेश्याम अपने घर के दरवाजे पर चारपाई डालकर सोया था। उस रात उसने स्वप्न देखा कि जो व्यक्ति दान-पुण्य करता हैं वह अगले जन्म में राजा बनेगा। जबकि, जो हमेशा पैसे की चाहत रखता हैं तथा दान-पुण्य के नाम पर एक रुपया नहीं खर्च करता, वह भिखारी बनेगा।

और कहानी पढ़ें: 10 Stories with Moral in Hindi: हिन्दी नैतिक कहानियां

अचानक उसे घर में से कुछ गिरने की आवाज आई। उसने घर में जाकर देखा कि एक चोर उसके घर के कीमती सामानों की एक बड़ी पोटली बनाकर ले जाने के लिए अपने सिर पर रख रहा था। जोकि भारी होने की वजह से नीचे गिर गई। सेठ राधेश्याम उस पोटली को उठवाने में चोर की मदद करने लगे।

चोर को डर से काँपते देखकर उन्होंने कहा- “डरो मत भाई, तुम यह सब सामान खुशी-खुशी ले जा सकते हो। लेकिन, तुम भी मेरी तरह लगते हो। मैंने अपने कमाए धन में से किसी के लिए एक पैसा नहीं निकाला, इसलिए मेरा धन मुझ पर भार जैसा हैं। अगर तुम भी मेरी तरह नहीं करते, पोटली से थोड़ा सामान निकाल देते तो तुम्हारे लिए यह पोटली उठाना आसान हो जाता।

सेठ की बातों को सुनकर चोर प्रायश्चित करता हैं। वह कहता हैं कि मैं आपका सामान यहीं छोड़ रहा हूँ। मुझे क्षमा कर दीजिए। और वह वहाँ से जाने लगता हैं। सेठ ने कहा कि तुम्हें एक बात पर ही माँफ किया जा सकता हैं। इस पोटली में से कुछ धन ले लो और कोई काम-धंधा शुरू करो।

इस तरह मेरा धन परोपकार में लग जाएगा और तुम्हारा जीवन सुधर जाएगा। चोर ने सेठ के कहेनुसार ही किया और उस दिन दे सेठ अपनी कमाई का कुछ हिस्सा दान-पुण्य और गरीबों की सहायता में खर्च करने लगे।

नैतिक सीख:

जीवन का मकसद सिर्फ धन कमाना और इकट्ठा करना नहीं होना चाहिए। बल्कि परमार्थ के लिए भी जीवन जीना चाहिए।

4. कर्म और भाग्य:

hindi-stories-for-childrens-karma-and-destiny
Image sources: bing.com

एक कुम्भकार जिसका नाम रामरतन था। उसे अपने भाग्य पर बहुत गहरी आस्था थी। वह हर बात में अपने भाग्य को सर्वश्रेष्ठ मानता था। एक बार वह बाजार से बर्तन बेचकर वापस अपने घर को जा रहा था। रास्ते में उसकी मुलाकात एक ऋषि से हुई।

रामरतन ने उस दिन अपने मन की बात पूछते हुए कहा- “महाराज! भाग्य ही सब कुछ होता हैं न!” ऋषि चुप रहे, रामरतन ने फिर से अपने प्रश्न पूछे “पुरुषार्थ से भाग्य श्रेष्ठ होता हैं न?” ऋषि ने पूछा- “अगर तुम्हारे मिट्टी के बर्तनों को बिना वजह कोई तोड़-फोड़ दे, कोई तुम्हारे धन को छीन ले या तुम्हारे परिवार के साथ गलत व्यवहार करे तो तुम क्या करोगे?”

“मैं उससे लड़ पड़ूँगा। मारपीट कर लूँगा।” गुस्से में आकर रामरतन ने कहा। भाग्य को श्रेष्ठ मानकर चुपचाप सब कुछ देखते तो नहीं रहोगे ना? बिल्कुल नहीं! रामरतन के मुँह से निकला। “फिर तुम ही बताओ क्या श्रेष्ठ हैं। -भाग्य या पुरुषार्थ?” ऋषि ने आगे कहा, “याद रहे, पुरुषार्थ ही भाग्य को बनाता हैं। जैसा पुरुषार्थ, वैसा ही भाग्य होता हैं।”

कुम्भकर का भ्रम दूर हो गया। भाग्य और पुरुषार्थ का संबंध उसे अच्छे से समझ में आ गया।

नैतिक सीख:

भाग्य कर्म से बनते हैं, न की कर्म से भाग्य।

5. स्वर्ग और नरक का रास्ता:

hindi-stories-for-childrens-the-path-to-heaven-and-hell
Image sources: bing.com

मुनिराम नाम का एक साधक जंगल में अपनी साधना में लीन था। एक बार तेजप्रताप नाम का एक सैनिक उसके पास आया। उसने कहा- “हे महात्मन एक जिज्ञासा हैं, जिसने मन को अशान्त कर रखा हैं। कृपया मेरी जिज्ञासा का समाधान कर मन को शांति प्रदान करें। “कहो मित्र, क्या पूछना चाहते हो?” मुनिराम ने कहा।

तेजप्रताप ने पूछा- गुरुदेव! क्या स्वर्ग और नरक की बात यथार्थ हैं? तुम कौन हो? मुनिराम ने पूछा। मैं एक योद्धा हूँ। तेजप्रताप ने कहा। “अरे! तुम एक योद्धा हो? किस राजा ने तुम्हें योद्धा बनाया? तुम तो एक भिखारी जैसे लगते हो। मुनिराम ने कहा।

और पढ़ें: 5 Moral Short Story in Hindi – छोटी कहानियां नैतिक शिक्षा के साथ

यह सुनकर योद्धा आग-बबूला हो गया। आंखे लाल हो गई, भुजाये फड़कने लगी। उसने म्यान से तलवार निकाल ली और चीखा- खामोश! आगे एक शब्द भी बोला तो तेरा सिर धरती पर लुढ़कता नजर आएगा। इन बातों का मुनिराम पर कोई असर नहीं हुआ।

उसने सैनिक का उपहास करते हुए फिर कहा- अच्छा, तो तुम तलवार भी रखते हो? किन्तु लगता है इसकी धार निकम्मी हो गई हैं। यह मेरा गला नहीं काट सकेगी, इसे म्यान में रख लो।

इतना सुनते ही तेजप्रताप ने प्रहार करने के लिए तलवार उठाई। ठहरो! मुनिराम ने कहा- मित्र! यही नरक का द्वार हैं। तेजप्रताप चकित हो गया। उसने तलवार म्यान में डाल ली और हाथ जोड़कर मुनिराम को प्रणाम किया। मुनिराम ने कहा- मित्र यही स्वर्ग का द्वार हैं।

नैतिक शिक्षा:

स्वर्ग और नरक का रास्ता हम अपने कर्म के अनुसार निर्धारित कर सकते हैं।

Leave a Reply