एक गाँव था, रामपुर। उसकी पश्चिम दिशा में एक बहुत बड़ा आम का पेड़ था। उस पर चिड़ा, तोता और कौवा रहा करते थे। तीनों में घनिष्ट मित्रता थी। तीनों प्रातःकाल होते ही अपने-अपने खाने की खोज में निकल जाते और अपना पेट भरकर शाम होते-होते वापस पेड़ पर अपने घोंसले में आ जाते। कौवा चालाक था, फिर भी दोनों मित्र उससे मित्रता निभा रहे थे।
एक दिन की बात हैं कि पास के गाँव में कुछ चोर रात्रि को चोरी करने आए। वे एक सेठ के घर से रुपये, पैसे, गहनों के साथ-साथ मिठाई के चार लड्डू भी चुरा लाए। चोर उसी वृक्ष के नीचे बैठकर चोरी के सामान का बंटवारा कर रहे थे।
उसी समय अपने पास आते हुए किसी के पैरों की आहट पाकर चोर मूल्यवान सामान, रुपये-पैसे लेकर भाग गए। लेकिन, जल्दी भागने की वजह से मिठाई के लड्डू वहीं भूल गए। मिठाई के लड्डू प्लास्टिक की थैली में बंधे थे। प्रातःकाल होते ही सर्वप्रथम कौए की ही दृष्टि उन लड्डुओं पर पड़ी।
उसे पेड़ से नीचे उतरते देखकर तोता भी पेड़ से नीचे आ गया। थोड़ी देर में चिड़ा भी नीचे आ गया। तब कौवा अपनी तिरछी नजर से लड्डुओं की थैली के चारों ओर चक्कर लगा-लगा कर देखने लगा। चारों तरफ से नजर घुमाकर देखने पर उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि थैली में मिठाई के चार लड्डू हैं।

अब उसने कहा- “देखो मित्रों! यह मिठाई के चार लड्डू हैं, शायद कोई दानी हम लोगों के लिए छोड़ गया है। अब समस्या यह है कि हम हैं तीन, और लड्डू है चार, एक लड्डू अधिक है, यह किसे मिले यही मैं सोच रहा हूँ।
कौवे की बात सुनकर तोते ने मुस्कुराते हुए कहा- “कौवे काका! तुम्हारा शरीर हम दोनों से बड़ा है। अतः तुम्हें ही चौथा लड्डू मिलना चाहिए। कौवा चौथा लड्डू खाना तो चाहता था। लेकिन, वह किसी का एहसान नहीं लेना चाहता था। वह किसी अनोखी चाल से ही उस लड्डू को खाने का उपाय सोच रहा था।
ईमानदारी दिखाते हुए बोला- ‘राम-राम’ ऐसा अन्याय मैं नहीं कर सकता हूँ भाइयों। बड़ा हुआ तो क्या हुआ, अधिकार तो सभी का बराबर है। इसके लिए कोई उपाय सोचना पड़ेगा।
इतने में चिड़ा अपनी चोंच पर जीभ फेरते हुए बोला- “कौवा काका! हम दोनों मित्र कहा कह रहे हैं कि चौथा लड्डू आपका ही है। हमें एक-एक मिल रहा है, वही बहुत है, आप ज्यादा सोचने के चक्कर में पड़िए। लेकिन, कौवा चालक था, उसने कहा- नहीं! नहीं! मैं कोई पेटूराम थोड़ी ही हूँ। मेरा एक सिद्धांत है कि- मिल-बाँटकर खाने से लोग बैकुंठ जाते हैं।
थोड़ी देर सोचकर कौवा फिर से बोला- “एक विचार मेरे मस्तिष्क में आ रहा है। यदि आप लोगों को स्वीकार हो तो बताऊँ।” चिड़ा और तोते ने बड़ी उत्सुकता से पूछा- हाँ-हाँ, बताओ ना। कौवा गंभीर होकर कहने लगा- “देखो मित्रों हम तीनों आधे घंटे के लिए लड्डुओं के पास सो जाते हैं। जिसे सुंदर स्वप्न आएगा, उसे ही चौथा लड्डू खाने को दिया जाएगा।
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तोता और चिड़ा भोले थे। अतः उन्होंने कौवे की बात को मान लिया। तीनों लड्डुओं की थैली के पास सो गए। कौवे को तो दोनों को सुलाने का बहाना चाहिए था। उसके मुँह में से लार टपक रही थी। उसे नींद कहां आ रही थी? तोता और चिड़े को जब नींद आ गई तो कौवे ने चुपके से एक लड्डू उठाया और दूर जाकर लड्डू को खाकर वापस पेड़ के नीचे आ गया।
फिर नींद से उठने का बहाना बनाकर अंगड़ाई लेता हुआ दोनों को उठाने लगा- “अरे भाई! उठो ना, आधे घंटे से ज्यादा समय हो गया हैं।” तोता और चिड़ा आंख मलते हुए उठे। ज्योंही उनकी नजर लड्डुओं पर पड़ी तो देखा कि तीन ही लड्डू है। तोते ने आश्चर्य से पूछा- “कौवे काका! यह क्या हुआ? मिठाई के लड्डू तो चार थे, ये तीन कैसे रह गए?”
कौवे ने मुस्कुराते हुए कहा- “वही तो मैं आप लोगों को बताने जा रहा हूँ। हम सब या निश्चय करके सोए थे कि जिसको भी सुंदर सपना आएगा वही चौथा लड्डू खायेगा।” चिड़ा चिड़चिड़ाते हुए बीच में ही बोल उठा- “अभी तो हम नींद से उठे हैं। अपने-अपने सपनों का वर्णन करेंगे, फिर निश्चय होगा कि किसका सपना सुंदर है। उसी को चौथा लड्डू मिलना चाहिए। उसे तो पहले ही कोई खा गया, ऐसा मालूम होता है।
कौवा बीच में हँसता हुआ बोला- अरे भाई! आप लोग मेरी बात तो पूरी सुनते ही नहीं हो, अपनी ही अपनी हांक रहे हो? वहीं घटना तो मैं आप लोगों को सुनाने जा रहा हूँ। “अब ध्यान से सुनो- आप लोगों के साथ मैं भी सो गया। नींद आते ही मुझे सपना आया, इसमें साक्षात हनुमान जी के दर्शन हुए। उन्होंने मुझे उठाया और कहा- उठ चौथा लड्डू खाकर सो जा।”
इस पर मैंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की- हे महावीर! इसी पर विवाद चल रहा है। और आप मुझे खाने को कह रहे हो। इस पर हनुमान जी क्रोधित होकर अपनी गदा उठाकर कहने लगे- बेकार की बातें सुनने का मुझे समय नहीं हैं। इसे खाता है कि नहीं? मैं उनके क्रोध और गदा की मार के भय से भयभीत हो गया और वह चौथा लड्डू मजबूरी में मुझे खाना ही पड़ा।
ऐसा सुनते ही दोनों को कौए पर बहुत क्रोध आया। उन्होंने कहा- “हमें आज ज्ञात हुआ कि वास्तव में तुम चालाक हो। सभी पक्षियों ने तुम्हारी बुराई की थी। लेकिन हमने तुमसे मित्रता की, ताकि तुम में अच्छे गुण आ सके। सच्ची मित्रता निभा सको। लेकिन तुम कपटी और धोखेबाज निकले।
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आज से हमारी तुम्हारे साथ मित्रता समाप्त हैं। “जो प्राणी अपने दोस्तों के साथ छल-कपट करता है, उसका कोई मित्र नहीं बन सकता।” ऐसा कहकर तोता और चिड़ा, अपना-अपना लड्डू लेकर दूर एक नीम के पेड़ पर जा बैठे, वहीं उन्होंने अपने घोंसले बना लिये।
कौवा शर्म से अपना मुँह लटकाए, उनकी तरफ दीन भाव से टुकुर-टुकुर देख रहा था। अब वह अपने किए पर पछता रहा था कि यदि मैं ऐसा नहीं करता तो मेरे मित्र मुझसे नाता नहीं तोड़ते।
नैतिक सीख:
लालच के चक्कर में पड़कर अपने रिश्ते खराब नहीं करना चाहिए।