1. दोस्ती का अंत – End of friendship:
चंपकवन में एक बारहसिंघा रहता था। उस वन में कोई अन्य जानवर नहीं रहता था। चंपकवन हमेशा हरा-भरा रहता था। कुछ समय बाद चंपकवन में एक बकरी आकर रहने लगी। बारहसिंघा और बकरी में धीरे-धीरे घनिष्ट दोस्ती हो चुकी थी। दोनों हमेशा एक साथ रहते थे। उस वन में एक लोमड़ी भी आकर रहने लगती हैं। लोमड़ी भी बारहसिंघा और बकरी के साथ दोस्ती करना चाहती थी। लेकिन, उसका स्वभाव उन दोनों को पसंद न होने की वजह से, वें दोनों लोमड़ी से दूर ही रहते थे।

कुछ समय तक ऐसा ही चलता रहा, लोमड़ी अकेले ही रहती थी। एक दिन लोमड़ी के दिमाग में कुछ विचार आया। उसने पास के जंगल में जाकर कुछ जानवरों जैसे बंदर, खरगोश, सियार को चंपकवन में आने के लिए कहा। लेकिन, लोमड़ी का स्वभाव सभी को पता था कि वह बहुत ही लालची और चापलूस हैं। जरूर इसमें इसकी कोई चाल होगी, इसलिए उसके साथ कोई जानवर नहीं आया।
अब लोमड़ी, बारहसिंघा और बकरी को देखकर और अधिक जलन तथा नफरत करने लगी थी। क्योंकि, उसके साथ कोई नहीं रहता था। एक दिन वह एक पेड़ के पीछे छिपकर देख रही थी कि बकरी और बरसिंघा किसी बात को लेकर आपस में बातचीत कर रहे हैं। दोनों कुछ परेशान नजर आ रहे थे। दोनों को देख लोमड़ी के दिमाग में कुछ ख्याल आता हैं। उसने सोचा अगर ये दोनों अलग-अलग हो जाएं तो शायद कोई मेरा दोस्त बन जाए, क्यों न मैं इन दोनों के बीच फूट डाल दूँ।
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अगली सुबह लोमड़ी बारहसिंघा के पास जाती हैं और बकरी के खिलाफ बहुत भला-बुरा कहकर दोनों के बीच नफरत का बीच बो देती हैं। वह उसी शाम बकरी से अकेले मिलकर, बारहसिंघा के खिलाफ बकरी को भड़का देती हैं। अब बकरी और लोमड़ी दोनों अलग-अलग रहने लगते हैं। धीरे-धीरे लोमड़ी उन दोनों को और भड़काने लगती हैं। जिसके कारण दोनों एक दूसरे की जान के दुश्मन बनते जा रहे थे।

एक दिन सुबह-सुबह बकरी नदी से पानी पीकर लौटी थी कि बीच रास्ते में उसकी मुलाकात बारहसिंघा से हो गई। उसने उसे बताने के लिए अपने आप से जोर-जोर से बोलने लगी कि अब तो नदी का पानी भी सूख गया हैं, अब यहाँ रहना ठीक नहीं हैं। यह कहते हुए बकरी आगे चली जाती हैं। लेकिन, उसकी बातों को सुन बारहसिंघा सोच में पड़ जाता हैं, क्या सच में नदी का पानी सूख गया हैं। उसने सोचा चलो एक बार नदी तक घूम ही आते हैं।
बारहसिंघा जब नदी के पास पहुँचा तो देखता हैं नदी उफान पर थी और नदी में बहुत सारा पानी था। बारहसिंघा को बकरी के ऊपर बहुत गुस्सा आता हैं। वह सोचता हैं कि अब बकरी मुझे इस वन में नहीं देखना चाहती हैं। इसलिए वह मेरे सामने ऐसा बोलते हुए गई हैं। बारहसिंघा गुस्से से भरा हुआ वापस वन में आता हैं और देखता हैं कि बकरी हरी -हरी घास को खा रही होती हैं।
वह उसके पास जाता हैं और दोनों में तू-तू, मैं-मैं होने लगती हैं। इसके बाद दोनों में लड़ाई शुरू हो जाती हैं दोनों की सींग एक दूसरे को लगने के कारण लहलुहान होकर गिर जाते हैं और वहीं पर दोनों दम तोड़ देते हैं। लोमड़ी यह सारी घटना झाड़ी में छिपकर देख रही होती हैं। इस तरह दोनों के बीच में तीसरे ने अपनी कूटनीति के कारण विजय प्राप्त कर ली।
नैतिक शिक्षा:
हमें किसी के कहने पर अधिक विश्वास नहीं करना चाहिए, हमें किसी भी चीज में अंतर करने के लिए अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल करना चाहिए।
2. किसान और उसके बच्चे – Kisan aur uske bacche:

नहरपुर गाँव में भोला नाम का एक किसान रहता था। उसके पास एक बहुत बड़ा खेत था, जिसमें अनाज की पैदावारी अधिक होती थी। जिसे वह बाजार में बेचकर पैसे कमाता था। किसान के दो बेटे थे, जोकि बहुत आलसी थे। जिन्हे मेहनत करना बिल्कुल पसंद नहीं था। धीरे-धीरे किसान बूढ़ा होता चला गया।
एक दिन किसान को लगा कि अब उसके जीवन का आखिरी समय चल रहा हैं। उसे चिंता होने लगी कि मेरे बच्चे बहुत आलसी हैं, जोकि खेतों में काम करना बिल्कुल नहीं चाहते। किसान जब अपनी अंतिम साँस ले रहा था तो उसने अपने दोनों बच्चों को अपने पास बुलाकर कहा कि बेटा अपने खेत में मैंने एक खजाना छिपाकर रखा हैं। लेकिन वह जगह मेरे दिमाग में नहीं आ रही हैं। तुम दोनों पूरे खेत के हर कोने में खुदाई करो हो सकता हैं कहीं तुम्हें वह खजाना मिल जाए। यह कहते हुए उसने अपने प्राण त्याग दिए।
अगले दिन से किसान के दोनों बेटोंं ने पूरे खेत की कई बार खुदाई की लेकिन उन्हें कोई खजाना नहीं मिला। कुछ महीने बीतने के बाद एक दिन बड़े भाई ने छोटे से कहा पिताजी झूठ नहीं बोलेंगे। खजाना जरूर खेत में ही होगा हमें एक बार फिर से पूरे खेत की हल से जुताई करके देखना चाहिए। दोनों भाई हल से खेत की जुताई करते हैं। लेकिन उन्हें कोई खजाना नहीं मिलता। दोनों भाई थक-हार कर खेत के किनारे बैठकर खेत को निहारते हैं।
छोटा भाई कहता हैं भईया अब तो खेत की कई बार अच्छी तरह से जुताई हो गई हैं। क्यों न हम इसमें बीज डाल दें। दोनों ने खेत में बीज डाल दिए और इस बार बारिश भी अच्छी हो गई। देखते-दखते उनके खेतों में लहलहाती फसल तैयार हो जाती हैं। जब फसल कटती हैं तो उन्हें बहुत सारा अनाज मिलता हैं। दोनों भाई समझ जाते हैं कि हमारे पिताजी कौन से खजाने की बात कर रहे थे। इस तरह से अब किसान के दोनों बेटे खेत में अधिक मेहनत करने लगते हैं।
नैतिक शिक्षा:
बिना मेहनत के कुछ भी प्राप्त करना संभव नहीं हैं।
3. साधु और राजा – Sadhu aur Raja:

एक समय की बात हैं। किसी वन में एक साधु रहता था। जोकि अपना जीवन यापन गाँव में भिक्षा मांगकर करता था। एक बार साधु भिक्षा माँगने किसी राजा के दरबार में पहुंच जाता हैं। राजा ने साधु महात्मा का बहुत आदर सत्कार किया और उन्हे भिक्षा भी दी। राजा ने साधु महात्मा से कहा- “महाराज मैं आप से एक प्रश्न पूंछना चाहता हूँ” साधु ने कहा- पूछो।
राजा ने साधु से कहा- लोग आपस में लड़ाई झगड़ा क्यों करते हैं? साधु महात्मा राजा के सवाल को सुनकर कुछ देर के लिए शांत हो गए। राजा ने पूछा क्या हुआ महात्मा जी? साधु, राजा से कहता हैं- मैं भिक्षा माँगने निकला हूँ न की तुम्हारे मूर्खतापूर्ण प्रश्नों के जबाब देने। महात्मा की बात को सुनकर राजा गुस्सा हो जाता हैं। वह कहता हैं- “आप मेरे दरबार में जब से आए हो, मैं आपकी सेवा सत्कार में ही लगा हूँ, जब मैंने एक प्रश्न पूछा तो आप मुझे मूर्ख बोल रहे हो। निकल जाओ मेरे दरबार से।
साधु राजा की बातों को चुपचाप सुनता रहा। जब राजा थोड़ा शांत हुआ तो साधु ने उसे समझाते हुए कहा – “जब मैंने आपके अनुरूप जबाब नहीं दिया तो आप क्रोधित हो उठे और मेरे ऊपर जोर-जोर से चिल्लाने लगे। यदि मैं भी आपके समान अपने अंदर क्रोध को आने दिया होता तो दोनों के बीच झगड़ा हो जाता। इसलिए कहा जाता हैं क्रोध ही झगड़े का मूल कारण हैं।
अगर आपको अपने जीवन में सुख-शांति चाहिए तो अपने क्रोध पर काबू करना पड़ेगा। जिसके लिए आपको निरंकार प्रभु के साथ नाता जोड़कर हमेशा इसका ऐहसास करना होगा कि हमें ईर्ष्या द्वेष, बुराई, निंदा, नफरत तथा क्रोध को त्यागना पड़ेगा।
नैतिक सीख:
झगड़े-लड़ाई का प्रमुख कारण हमारा क्रोध हैं। हमें अपने क्रोध को नियंत्रित रखना चाहिए।
4. घनश्याम की चाय – Ghnashyam ki chai:

धामपुर गाँव के किनारे घनश्याम की एक चाय की टपरी थी। वह बहुत ही स्वादिष्ट चाय बनाता था। जिसके कारण उसकी चाय को पीने के लिए अधिकतर लोग एकठ्ठा होते थे। एक दिन उसी गाँव के एक व्यक्ति ने उससे पूछ लिया कि “घनश्याम तुम चाय में ऐसा क्या डालते हो जिससे तुम्हारी चाय बहुत ही स्वादिष्ट लगती हैं”। घनश्याम उस व्यक्ति से कहता हैं- मैं चाय में बिना पानी मिले हुए गाय का ताजा दूध, घर पर बना हुआ चाय-मसाला, लौंग, इलायची और अच्छी किस्म की अदरक डालता हूँ।
एक दिन घनश्याम शहर समान लेने गया था। उसे शहर में एक चाय की दुकान दिखी उसने सोचा चलो इसकी चाय पी कर देखते हैं। वह चाय की दुकान पर गया तो देखता हैं वहाँ पर चाय 20 रुपए की थी जिसे पीकर घनश्याम को कोई टेस्ट नहीं मिला। वह सोचता हैं यही वह कारण हैं कि लोग ऐसे ही अमीर बनते हैं। वह अपनी दुकान की चाय के दाम बढ़ाकर 10 रुपए से 20 रुपए कर देता हैं।
अगले दिन उसकी दुकान पर ग्राहक उससे पूछते हैं “क्या हुआ घनश्याम भाई तुमने चाय के दाम को दुगुना कर दिए”। वह कहता हैं महंगाई इतनी ज्यादा हैं कि मुझे इस दाम पर कुछ पैसे नहीं बचते थे। फिर भी आप हमारी चाय पी कर देखो कितनी स्वादिष्ट हैं। इस तरह से उसकी कमाई ठीक-ठाक होने लगी।
कुछ दिन बाद वह दूध में पानी मिलाने लगा तथा घर के बने चाय-मसाले की जगह बाजार का मसाला डालने लगा। अब उसकी चाय किसी भी ग्राहक को नहीं भाती थी। जिसके कारण उसकी दुकान पर लोगों का आना-जाना कम होने लगा। एक समय ऐसा आया कि अब उसकी दुकान पर कोई नहीं आता था। घनश्याम अपनी दुकान पर ग्राहकों के कम आने के कारण को समझता हैं व चाय के दाम तथा उसकी गुणवत्ता पहले जैसी कर देता हैं। इस तरह से फिर से लोग उसकी दुकान पर आना शुरू कर देते हैं।
नैतिक सीख:
लोभ, लालच के चक्कर में हम अपना बड़ा नुकसान कर देते हैं।
5. गुरुकुल में शिक्षा – Gurukul men shiksha:

बहुत समय पहले की बात हैं किसी गुरुकुल में बहुत से बच्चे शिक्षा लेने आते थे। उस गुरुकुल में मंगेश नाम का एक सहपाठी भी शिक्षा ले रहा था। लेकिन उसका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता था। जिसके कारण उसे आचार्य के सामने लज्जित होना पड़ता था। जबकि, उसके साथ के सहपाठी उसे बुद्धू, मूर्खराज कहकर बुलाते थे। जब कक्षा में गुरुजी उसे समझाते थे तो उसे कुछ समझ नहीं आता था। जिसका प्रमुख कारण यह था कि वह अपने आप को सबसे कमजोर समझता था।
एक दिन जब बहुत समझाने के बाद भी उसे कुछ समझ नहीं आ रह था तो आचार्य ने कहा- ” बेटा मंगेश जब तुम्हारा मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता तो तुम गुरुकुल छोड़कर अपने गाँव चले जाओ। वहाँ पर अपने माता-पिता के काम में भी हाथ बंटा सकते हो। मुझे ऐसा लगा रहा हैं कि तुम्हारे भाग्य में शिक्षा लिखी हुई ही नहीं हैं। मंगेश अपने गुरुदेव के चरणों को स्पर्श करता हैं और वह वापस अपने गाँव की तरफ निकल पड़ता हैं।
कुछ दूर पैदल चलते हुए वह थकान और भूखा महसूस करने लगता हैं। उसे एक कुंआ दिखाई देता हैं। वह सोचता हैं कि चलो मेरे पास जो सत्तू हैं उसे यहीं पर खा लेता हूँ और कुंए से पानी भी पी लूँगा। उसी कुंए से एक औरत पानी भर रही थी। मंगेश की निगाह जगत पर पड़े हुए गड्ढे पर पड़ती हैं। वह उस औरत से कहता हैं कि आपने घड़े रखने के लिए अच्छे गड्ढे बनवाएं हैं। औरत उसकी बात को सुनकर कहती हैं। जगत पर यह गड्ढे बनाए नहीं गए हैं। बल्कि यह घड़े को रखते-रखते बन गए हैं। इसी प्रकार से आप इस पत्थर को देखो जिसपर रस्सी आते-जाते निशान बन गए हैं।
मंगेश सोचता हैं जब मिट्टी का घड़ा रखते-रखते यहाँ पर गड्ढा बन सकता हैं तो मेरे किसी भी चीज को बार-बार अभ्यास करने से उसे क्यों नहीं सीख सकता। वह वापस फिर से गुरुकुल जाता हैं। वह अपने मन की बात को अपने गुरुदेव को बताता हैं। इस तरह से वह फिर से विद्या सीखना शुरू कर देता हैं। आगे चलकर वह बालक मंगेश एक बहुत बड़ा संस्कृत का विद्वान बनता हैं।
नैतिक सीख:
एक ही चीज को बार-बार करने से उस चीज मे पारंगत हो जाता हैं।