1. जैसी करनी वैसी भरनी – Fill as you like:

एक वन में नीलू नाम का एक छोटा बंदर रहता था। जोकि, बहुत ही नटखट और शरारती था। उसको दूसरे जानवरों को परेशान करने में बहुत मजा आता था। कभी वह अचानक किसी पेड़ से नीचे कूद जाता, जिससे नीचे खड़े जानवर डर जाते फिर नीलू बंदर खुश होकर ताली बजाने लगता। कभी किसी पेड़ पर चढ़कर उसके फल को तोड़-तोड़ कर नीचे फेक देता। इसके अलावा उसने अपनी हद उस दिन पार कर दी, जब वह पेड़ पर लगे घोंसलों को उठा-उठा कर नीचे फेकने लगा।
वह जानवरों को परेशान करने के लिए हर दिन नई-नई तरकीब खोजता रहता था। उसकी इस शैतानी हरकत से जंगल के सभी जानवर परेशान रहते थे। एक बार नीलू बंदर को मस्ती सूझी। उसने शरारती बंदरों के साथ मिलकर एक गड्ढा खोदना शुरू कर दिया। कुछ दिन बाद गड्ढा बहुत गहरा हो गया। उसने उस गड्ढे को घाँस-फूस से ढँक दिया। जिससे वहाँ पर कोई जानवर आए तो उस गड्ढे में गिर जाए। इस तरह से नीलू बंदर को पेड़ पर बैठकर ताली बजाने और उसके ऊपर हँसने का मौका मिल जाएगा।
लेकिन, उसकी शैतानी हरकतों के कारण अब उसकी तरफ कोई जानवर नहीं आता था। जिसके कारण वह उस गड्ढे के बारें में भी भूल चुका था कि उसने कहाँ पर गड्ढा खोदा था। एक दिन नीलू बंदर उछलते-कूदते कही से आ रहा था, अचानक वह उसी गड्ढे में जा गिरा और जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसके माता-पिता आए और उसे गड्ढे से बाहर निकाला। लेकिन नीलू बंदर बुरी तरह से जख्मी हो गया था।
इस बात को जब जंगल के अन्य जानवरों ने सुना तो वे बोले – “जैसी करनी वैसी भरनी, आज नहीं तो निश्चय कल” उसके माता-पिता नीलू बंदर को समझाते हैं कि “जरा आप सोचो आज आपके स्थान पर कोई, और जानवर होता तो उसका भी हाल यही होता” जिस तरह आपको दर्द हो रहा हैं, ठीक इसी प्रकार उसे भी दर्द होता।
नीलू बंदर को अपने माता-पिता की बात समझ में आ जाती हैं। वह अपने माता-पिता से वादा करता हैं कि वह अब जंगल के किसी जानवर को परेशान नहीं करेगा। धीरे-धीरे उस ओर भी जानवरों का आना जाना शुरू हो गया। जिसके कारण अब जंगल में रौनक का माहौल रहने लगा। जंगल के सभी जानवर एक दूसरे के सुख-दुख में साथ देते और खुश रहते थे।
नैतिक सीख:
जैसी करनी वैसी भरनी, जो भी किसी के लिए गड्ढा खोदता हैं एक दिन जरूर वह उसी गड्ढे में गिरता हैं।
2. गुस्सा न करें – Don’t get angry:

एक बार की बात हैं माधोपुर गाँव में एक साधु अकेले अपनी कुटिया में रहता था। साधु के पास अक्सर लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर आते थे। जिसका निराकरण साधु करता तथा अंत में हर किसी को एक बात जरूर कहता था कि “गुस्सा न करें”। वह साधु जब भी अपने प्रवचन देता यह शब्द जरूर बोलता था। लोगों को दिखाने के लिए वह हमेशा अपने चेहरे पर मुस्कान बनाए रखने की कोशिश करता था।
साधु एक बार किसी गाँव में प्रवचन करने गया था। वह अपने प्रवचन में गाँव के लोगों को बहुत अच्छी-अच्छी बाते सीखा रहा था। उसकी बातें सुन गाँव के लोग बहुत प्रेरित हुए तथा सही मार्ग चुनने के लिए लालाईत हो गए थे। एक लड़का जोकि किसी शहर से आया हुआ था, जिसकी उम्र महज पंद्रह साल थी। जोकि, प्रवचन को सुनने के बाद साधु के पास जाता हैं और साधु से प्रश्न करता हैं।
हमें अपने जीवन में खुश रहने के लिए क्या करना चाहिए? “साधु उस लड़के को जबाब देते हुए कहता हैं कि- अगर जीवन में खुश रहना चाहते हो तो “गुस्सा करना छोड़ दो”। लड़के ने फिर से साधु से कहा हमे खुश रहने के लिए क्या करना चाहिए? साधु ने तेज आवाज में कहा “गुस्सा करना छोड़ दो”। लड़के ने फिर से कहा मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया। आपने क्या कहा एक बार फिर से बता दें। साधु ने जूंझलाते हुए कहा, कितनी बार बताऊँ “गुस्सा करना छोड़ दें”।
लड़के ने फिर से साधु से कहा एक बार और बता दो महाराज हमें जीवन में खुश रहने के लिए क्या करना चाहिए। इस बार साधु ने अपने पास पड़े एक डंडे से लड़के को दे मारा और उसे डांटा तथा अपने पास से भाग जाने के लिए कहा। लड़का बहुत होशियार था उसने साधु से पूँछ ही लिया महाराज गुस्सा न करना जीवन में खुश रहने का मूल मंत्र हैं तो आपने मुझ पर गुस्सा क्यों किया।
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लड़के की बातों को सुन साधु लज्जित हो गया। उसने साधु से कहा हिंसक व्यक्ति शांति का पाठ कैसे पढ़ा सकता हैं। जो खुद क्रोध से भरा हो। हमें पहले खुद गुस्से से मुक्त होना चाहिए तब हम दूसरों को इसके लिए प्रेरित कर सकते हैं। गुस्से से बचने का एक मात्र साधन यह हैं कि हमें सत्य के मार्ग पर चलते हुए प्रभु परमात्मा से नाता जोड़कर रखना चाहिए।
नैतिक सीख:
हम दूसरों के अंदर जो परिवर्तन लाना चाहते हैं पहले हमें अपने अंदर वही परिवर्तन लाना पड़ेगा।
3. पक्षियों से प्रेम – Love for birds:

सविता नाम की एक लड़की थी। जिसे पक्षियों से बहुत लगाव और प्रेम था। वह प्रतिदिन अपनी छत पर पक्षियों के लिए दाना डालकर उनके साथ खेलती थी। उसे आकाश में उड़ते हुए पक्षी बहुत अच्छे लगते थे। पक्षी जब आकाश से आते और दाना खाकर आकाश में उड़ जाते तो उनकी आजादी देख सविता को बहुत अच्छा लगता था। उसका मन भी इसी तरह आकाश में उड़ने का करता था।
सविता का जन्मदिन आने वाला था, सभी लोग उसे बिना बताए कुछ न कुछ सप्राइज़ गिफ्ट देने तथा अलग ढंग से उसका जन्मदिन मनाना चाहते थे। उसके माता-पिता उसकी रुचि के अनुसार उसे रंग बिरंगे पक्षी देने के लिए सोच रहे थे। सविता के जन्मदिन पर घर को अच्छे से सजाया गया। जिसको देख सविता बहुत खुश हुई। सविता अपने जन्मदिन पर केक काटती हैं। उसके दोस्त भी उसे अपना-अपना गिफ्ट देते हैं।
उसके माता-पिता उसका सप्राइज़ गिफ्ट, पिजरे में बंद कई तरह की रंग बिरंगी चिड़ियों को देते हैं। जिसे देख सविता बहुत खुश होती हैं। अपने माता-पिता के प्रति अपना आभार जताती हैं। लेकिन, अपने माता-पिता से कहती हैं कि अगर ये पक्षी पिंजरे में रहेंगे तो आकाश में कैसे उड़ेंगे। कैसे हमारी छत पर आएंगे। जिस तरह हमें आजादी चाहिए होती हैं ठीक इसी प्रकार इन्हें भी आजादी चाहिए। सविता की बातों को सुन उसके माता-पिता अपनी बच्ची के प्रति बहुत गौरवान्वित महसूस करने लगे। सविता और उसके माता-पिता ने पक्षियों को आजाद कर दिया।
नैतिक सीख:
हमें पशु-पक्षियों के प्रति दया की भावना रखनी चाहिए तथा उन्हें परेशान नहीं करना चाहिए और न ही उन्हें पिंजरे में कैद करके रखना चाहिए।
4. सही और गलत की पहचान – Recognition of right and wrong:

किसी गाँव में बलराम नाम का एक मजदूर रहता था। जोकि, बहुत निर्धन था, उसके घर में उसकी पत्नी तथा एक छोटी बेटी रहती थी। मजदूर ने किसी तरह से एक-एक पैसे एकठ्ठा करके अपने गाँव के सेठ राधेश्याम के पास जमा किए। मजदूर ने सेठ राधेश्याम से कहा “जब मेरी बेटी शादी योग्य हो जाएगी तब मुझे यह पैसा चाहिए होगा”।
धीरे-धीरे लगभग पंद्रह वर्ष बीत गए। मजदूर, सेठ राधेश्याम के पास जाता हैं और अपने दिए हुए पैसों को वापस माँगता हैं। सेठ के अंदर लालच आ जाता हैं और उसे यह कहते हुए पैसे देने से माना कर देता हैं कि “तुमने मुझे पैसे कब दिए थे, मैंने पैसे लेते समय तुमको कुछ लिखकर दिया हो तो दिखाओ या फिर कोई सबूत दिखाओ”।
मजदूर उसकी बातों को सुनकर बहुत चिंतित होता हैं। उसने अपने राज्य के राजा के पास जाने के लिए सोचा। वह राजा के पास जाकर, सेठ को दिए हुए अपने पैसों के बारें में बताता हैं। राजा सेठ को बुलाता हैं, लेकिन राजा के सामने भी सेठ उसके पैसे देने के लिए मना कर देता हैं। राजा सेठ के ऊपर ज्यादा जोर दबाव नहीं बना सकता था। क्योंकि, उसके पास कोई ठोस सबूत नहीं था। राजा ने दोनों को अपने अपने घर जाने के लिए कहा।
और कहानी देखें: जन्मदिन पर एक अनोखा उपहार – A unique gift on birthday
एक दिन राजा ने अपने राज्य से एक शानदार झाँकी निकाली। सभी लोग अपने-अपने घर के सामने से राजा को देख रहे थे। राजा सेठ राधेश्याम के घर से आगे बढ़ा ही था कि उसे मजदूर वह खड़ा दिखा और राजा ने उसे बुलाकर अपने रथ पर बैठा लिया। मजदूर को रथ पर बैठा देख सेठ राधेश्याम को शंका होने लगी कि यदि मजदूर ने यह पूरी घटना राजा को सच-सच बता दी तो उसकी खैर नहीं होगी।
अगले दिन सुबह-सुबह सेठ राधेश्याम राजा के दरबार में पहुँचा और राजा के सामने पच्चीस सौ रुपये देते हुए बोला। कल मैंने अपने पुराने बही खातों को देखा, जिसमें मजदूर बलराम ने मुझे एक हजार रुपये दिए थे। जोकि, पंद्रह वर्षों में पच्चीस सौ रुपया हो गया हैं। सेठ राजा के सामने यह भी कहता हैं कि अगर मजदूर बलराम ने मुझे वह तारीख भी बता दी होती तो पैसे देने में इतनी परेशानी न होती। इस तरह से राजा ने अपनी कूटनीति के माध्यम से मजदूर बलराम को न्याय दिलाई।
नैतिक सीख:
अपने दिमाग को सही जगह पर इस्तेमाल करने से सफलता जरूर मिलती हैं।
5. आलस का त्याग – Give up laziness:

एक गरीब व्यक्ति अपनी गरीबी को दूर करने के लिए संत हरीदास के पास जाता हैं। वह संत महात्मा से आशीर्वाद माँगता हैं कि हमारी गरीबी दूर हो जाए। लेकिन संत हरीदास उस व्यक्ति से कुछ नहीं बोलते। जबकि, अन्य लोगों को आशीर्वचन देते हुए कहते थे – “धनवान बनो, लक्ष्मी आपके घर में वास करें”। गरीब व्यक्ति अगले दिन फिर से संत हरीदास से आशीर्वाद लेने के लिए उनके आश्रम में जाता है। लेकिन, उस दिन भी हरीदास बिना कुछ बोले उससे आगे चले जाते हैं तथा अन्य लोगों को अपना आशीर्वाद देते हैं।
गरीब व्यक्ति सोचता हैं कि महात्मा जी मुझे क्यों आशीर्वाद नहीं देते बल्कि वहाँ बैठे अन्य लोगों को कहते हैं – “धनवान बनो, आपके घर में लक्ष्मी का वास हो”। अब गरीब व्यक्ति ने उनके आश्रम में जाना छोड़ दिया था। एक दिन संत हरीदास कही से प्रवचन करके वापस अपने आश्रम को आ रहे थे बीच रास्ते में उनको वही गरीब व्यक्ति मिला जोकि, ठेले पर सब्जियाँ बेच रहा था। अपने पास संत हरीदास को देखकर गरीब व्यक्ति ने महात्मा जी के पैर छूए और आशीर्वाद की कामना की, महात्मा जी ने उसको अपने मुखर शब्दों से कहा “धनवान बनो, लक्ष्मी आपके घर में वास करें!”
उस व्यक्ति ने महात्मा हरीदास से पूँछा महाराज जब मैं आपके आश्रम में जाता था तो आप मुझे आशीर्वाद नहीं देते थे। आज आपने बिना मांगे आशीर्वाद दे दिया। महात्मा जी ने उसे समझाते हुए कहा “मुझे पता था कि तुम गरीब हो, तुम्हारे पास लक्ष्मी नहीं हैं। जिसका प्रमुख कारण तुम्हारा आलसी होना था, तुम मेहनत करने से कतराते थे। इसलिए लक्ष्मी तुम्हारे पास नहीं रहती थी। अब तुम मेहनत कर रहे हो जिसके कारण तुम्हारे पास धन का आना शुरू हो चुका हैं।
महात्मा जी की बातों को सुन वह व्यक्ति अपने द्वारा किए गए आलस के लिए अपने आप को कोसता हैं। महात्मा जी को वचन देता हैं। “अब मैं अपने जीवन में आलस को कभी भी जगह नहीं दूंगा तथा अपनी मेहनत के बल पर पैसे कमाऊँगा। महात्मा जी उसको कहते हैं- “धनवान बनो, आपके घर में लक्ष्मी वास करें” कह कर चले जाते हैं।”
नैतिक सीख:
किस्मत और भाग्य के सहारे नहीं बैठना चाहिए, क्या पता किस्मत हमारे सहारे न बैठी हो।